आलोक गोस्वामी, साथ में टी. सतीशन
अभी इस जनवरी की 14 तारीख को ही प्रदर्शित हुई केरल के मशहूर अभिनेता उन्नी मुकुंदन की मलयालम फिल्म 'मेप्पादियन' एक आम सिने दर्शक को लुभा रही है। फिल्म देखने वाले सिर्फ उन्नी के अभिनय की ही तारीफ नहीं कर रहे हैं बल्कि वे कहानी, पटकथा और खास तौर पर निर्देशक के साहसिक प्रयास की भी प्रशंसा कर रहे हैं जिन्होंने पहली बार कोई फीचर फिल्म निर्देशित की है। मुश्किल राहों से जूझते हुए एक नौजवान की कामयाबी पाने की इस कथा में भारत की संस्कृति, स्वभाव और सहकार की भावना का दर्शन हुआ है तो वहीं यह दिखाया गया है कि जीवन में सकारात्मकता का कितना बड़ा योगदान होता है।
लेकिन क्योंकि यह फिल्म केरल से है, और क्योंकि यह फिल्म भारतीय संस्कृति का खुलकर दर्शन कराती है, इसलिए केरल के सेकुलर वामपंथियों और लिबरल जमात ने इस फिल्म के लिए तरह—तरह की भ्रामकता फैलानी शुरू की है। उन्हें इस बात से चिढ़ है कि फिल्म में हीरो को सबरीमला मंदिर जाते, भगवान के आगे शीश नवाते क्यों दिखाया गया है? उन्हें चिढ़ है कि एक दृश्य में दिखाई एक एंबुलेंस पर संघ विचार परिवार से जुड़ी दीन—दुखियों की सेवा को समर्पित संस्था 'सेवाभारती' लिखा क्यों दिखाया गया है? उन्हें चिढ़ इस बात से भी है कि फिल्म में नकारात्मक भूमिका में मुस्लिम किरदार क्यों दिखाया गया है?

यानी उन्हें चिढ़ है, क्योंकि उन्हें चिढ़ना ही है। इस फिल्म के विरुद्ध सेकुलर वामपंथियों ने झंडा इसलिए भी उठाया हुआ है क्योंकि इस फिल्म के अभिनेता उन्नी ने हनुमान जयंती पर सगर्व हनुमान जी की मूर्ति की फोटो ट्वीट की थी। उन्नी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके जन्मदिन की बधाई प्रेषित की थी। लिबरलों की नजर में उन्नी का 'कसूर' यह भी है कि वे देशभक्त हैं और देश के दुश्मनों को खुलेआम फटकारते हैं। यही सब बातें तो ईंधन का काम करती हैं वामपंथियों के किसी को निशाने पर लेने में! तिस पर निर्देशक विष्णु मोहन खुद देशभक्त युवा हैं।
बेशक, वामपंथियों के देश में बचे—खुचे इकलौते गढ़ केरल के 'लाल जिहादी', लिबरल और शहरी नक्सली उन्नी मुकुंदन की मलयालम फिल्म 'मेप्पादियन' के प्रदर्शित होने के दिन से ही बौखलाए हुए हैं। इंटरनेट और सोशल साइट्स पर आसन जमाकर बैठे कम्युनिस्ट और उनके प्यादे इस फिल्म के लिए 'प्रो—बीजेपी', 'प्रो—आरएसएस' और 'फासिस्ट सवर्ण हिंदुओं की फिल्म' और न जाने क्या—क्या विशेषण दे रहे हैं! इन विशेषणों को पुष्ट करने के लिए वे उपरोक्त 'कसूर' गिना रहे हैं। यानी फिल्म के एक दृश्य में सेवाभारती की एम्बुलेंस दिखना, नायक का सबरीमाला सहित दूसरे मंदिरों में जाना, वहां परंपरानुसार वेश पहनना, हिंदू संस्कृति की झलक दिखाना आदि आदि।
फिल्म में 'सेवाभारती' की एंबुलेंस क्यों दिखाई गई? इस पर फिल्म के निर्देशक विष्णु मोहन का कहना है कि जब वे फिल्म बना रहे थे तो उन्होंने कई एम्बुलेंस संचालकों से संपर्क किया था, उनसे कुछ दिन के लिए उनकी एंबुलेंस किराए पर देने को कहा था। लेकिन उन सभी ने मोटे पैसे की मांग की। उन्होंने जितने पैसे मांगे उनमें सबसे कम किराया था 20,000 रुपये प्रतिदिन था। विष्णु के सामने बजट की समस्या था लिहाजा उन्होंने सेवाभारती से बात की जिसने उन्हें 13 दिन की शूटिंग के लिए अपनी एम्बुलेंस मुफ्त में दे दी।

अब दूसरी बात। पहले भी ऐसी कम से कम दो फिल्में आ चुकी हैं जिनमें रा.स्व.संघ की शाखा दिखाई गई है। ऐसी सैकड़ों मलयालम फिल्में आ चुकी हैं जिनमें नायक, नायिकाएं और दूसरे किरदार पूजा करते, मंदिरों में जाते दिखाए गए हैं। कई फिल्मों के किरदार चर्च और मस्जिदों में जाते भी दिखाए जाते रहे हैं। लेकिन उन फिल्मों का तो कभी किसी ने विरोध नहीं किया। फिर यह सेकुलर चिढ़ 'मेप्पादियन' पर ही क्यों उबली पड़ रही है?
दरअसल यह चिढ़ उन्नी मुकुंदन की वजह से ज्यादा दिखती है। उन्नी स्वभाव से राष्ट्रीय विचार वाले हैं। सेकुलर फिल्म समीक्षकों के उनके प्रति मुंह बिचकाने को इतना काफी है। और तो और, अन्य व्यावसायिक अभिनेताओं, अभिनेत्रियों से उलट, वे अपनी हिन्दू पहचान छुपाने में कभी संकोच नहीं करते। अन्यों से उलट वे कभी इस बात पर लज्जा महसूस नहीं करते कि वे गणेशोत्सव में जाते हैं! उन्नी बालगोकुलम की जन्माष्टमी शोभा यात्रा में शामिल हुए थे। सेकुलर फिल्मकारों की तरह उन्हें संघ या संघ विचार परिवार के किसी कार्यक्रम में जाने से कभी कोई परहेज नहीं रहा।
यह एक कोरा और चुभने वाला सत्य है कि यदि आपके लेखन, अभिनय, कला, प्रस्तुति आदि में हिंदू धर्म और राष्ट्रीयता का पुट होता है तो आपके लिए उस केरल में प्रतिष्ठा पाना लोहे के चने चबाने जैसा ही होता है, जहां हर अकादमिक संस्था, मीडिया, गैरसरकारी संगठन आदि में कामरेड जड़ें जमाए हुए हैं। यदि आप केरल में वक्ता हैं और अपने भाषण में हिंदू धर्म और राष्ट्रीयता के बारे में बोलते हैं तो आपकी आवाज दबाने की कोशिश की जाती है। इसी तरह यदि आप फिल्म निर्देशक हैं, तो हिंदू धर्म और राष्ट्रीयता के प्रतीकों को झलकाने पर आपके लिए निर्माता या निवेशक ढूंढना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि, जैसा पहले बताया, केरल को 'लाल जिहादियों', शहरी नक्सलियों और कट्टर इस्लामवाद का प्रसार—केंद्र बना दिया गया है। माकपा के राजनीतिक नेतृत्व में, सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) दोनों ही, राष्ट्र विरोधी ताकतों को तुष्ट करने की प्रतिस्पर्धा में लगे हैं।
‘विरोध के पीछे है संकुचित सोच’'मेप्पादियन' पहली फिल्म है युवा निर्देशक विष्णु मोहन की। दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले उन्होंने किसी फिल्म निर्देशक के सहायक तक के नाते काम नहीं किया था। लेकिन इसके बावजूद इस फिल्म में उनकी पैनी दृष्टि और गंभीर सोच साफ झलकती है। फिल्म के दर्शक उनके पहले प्रयास की तारीफ कर रहे हैं। प्रस्तुत हैं 'मेप्पादियन' के निर्देशक विष्णु मोहन से पाञ्चजन्य की बातचीत के प्रमुख अंश
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केरल की लिबरल जमात आपकी इस फिल्म के विरोध में क्यों उतर आई है? उनके निशाने पर कौन है? उन्नी मुकुंदन या फिल्म या फिर निर्देशक यानी आप? …क्यों? क्या उनके इस विरोध को हिंदू धर्म या राष्ट्रीयता का विरोध माना जा सकता है? विरोधियों को चिढ़ है कि आपकी फिल्म में सेवाभारती की एम्बुलेंस दिखती है! |
लेकिन 'मेप्पादियन' पूरे साहस के साथ, खुलकर राष्ट्रविरोधी ताकतों और उनके साइबरवीरों के मंसूबों तथा सपनों को ध्वस्त करते हुए सफलता की तरफ बढ़ रही है। बॉक्स आॅफिस के गणित में भी निर्देशक विष्णु मोहन की मेहनत रंग ला रही है। संतोष की बात है कि पांथिक मान्यताओं और पार्टी लाइन को धता बताते हुए दर्शक अच्छी—खास संख्या में इस मलयाली फिल्म को देखने सिनेमाघरों तक पहुंच रहे हैं। कोरोना महामारी के प्रकोप के बावजूद फिल्म अच्छा प्रदर्शन कर रही है। इतना ही नहीं, राष्ट्रविरोधी ताकतों के मंसूबों को परास्त करते हुए यह फिल्म खाड़ी देशों में भी सराही जा रही है और बॉक्स आफिस पर हिट हो रही है। फिल्म के निर्माता अैर निर्देशक, दोनों को ही भरोसा है कि यह फिल्म जल्दी ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी कामयाबी की नई इबारत लिखेगी।
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