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मलय से बने मलेशिया का प्राचीन सांस्कृतिक वैभव

by प्रो. भगवती प्रकाश
Jan 28, 2022, 02:06 am IST
in भारत, धर्म-संस्कृति, दिल्ली
2500 वर्ष प्राचीन हिन्दू सभ्यता के पुरावशेष

2500 वर्ष प्राचीन हिन्दू सभ्यता के पुरावशेष

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मलेशिया में बुजंग घाटी में जहां 2500 वर्ष प्राचीन हिन्दू सभ्यता के पुरावशेष, 15वीं सदी तक हिंदू शासकों की परंपरा, शिलालेखों, ताम्रपट्टिकाओं, पाण्डुलिपियों में संस्कृत-तमिल भाषा का उपयोग, हिंदू-बौद्ध मंदिरों के अवशेष मिले

वर्तमान मलेशिया की अपेक्षा प्राचीन पौराणिक मलय का भौगोलिक क्षेत्र, भू-सांस्कृतिक विस्तार, सांस्कृतिक वैभव और भाषाई प्रसार व्यापक रहा है। वायु पुराण, रामायण व महाभारत आदि में मलय प्रायद्वीप एवं सम्पूर्ण मलय द्वीपसमूह के सन्दर्भ मिलते हैं। मलेशिया, ब्रुनेई, इण्डोनेशिया के एक बडेÞ भाग, सिंगापुर और पूर्वी तिमोर में जहां मलय भाषा का प्रसार है, वहीं, वहां के प्राचीन अभिलेखों में देवनागरी व पल्लव आदि भारतीय लिपियों का चलन रहा है। विगत 500 वर्षों में मलेशिया की 61.3 प्रतिशत जनसंख्या का इस्लामी मतान्तरण होने पर और औपनिवेशिक शासन में मलय का लेखन रोमन व अरबी लिपियों में आरम्भ हो गया। लेकिन वहां के प्राचीन साहित्य, कला, जनजीवन व संस्कृति पर रामायण, महाभारत सहित हिन्दू वाङ्मय व परम्पराओं का व्यापक व गहरा प्रभाव दिखाई देता है। मलय प्रायद्वीप के अन्तर्गत प्रायद्वीपीय मलेशिया, दक्षिण थाईलैण्ड व म्यांमार का धुर दक्षिणी सिरा सम्मिलित होता है। मलय भाषा का चलन मलय प्रायद्वीप के बाहर ब्रुनेई, इण्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप, सिंगापुर व पूर्वी तिमोर तक है। मलय द्वीप समूह में मलय प्रायद्वीप के बाहर जावा, बाली, सुमात्रा, लुजोन, हल्माहेड़ा, बोर्निओ, न्यू गिनी, सुलावेसी, फिलीपीन, सिंगापुर व पूर्वी तिमोर आदि भी सम्मिलित होते हैं। 

भाषा, लिपि व मलय साहित्य में संस्कृत
संस्कृत से विकसित प्राचीन मलय भाषा में 70 प्रतिशत संस्कृत शब्द रहे है। आज भी मलय में 50-60 प्रतिशत शब्द संस्कृत के है। प्राचीनतम मलय साहित्य में ‘हिकायत सेरी राम’ है जो रामायण का मलय भाषा में रूपान्तरण है। इस पर आधारित कई छाया नाट्य वहां चलन में रहे हैं, जिनमें ‘हिकायत महाराज वन’ भी एक है। मलय भाषी ‘हिकायत सेरी राम’ की 14वीं सदी पाण्डुलिपियों में एक प्रति आॅक्सफोर्ड ब्रिटिश बोल्डियन पुस्तकालय में है, जिस पर आर्कबिशप लॉड का 1633 का दिनांक अंकित है। मलय भाषा में महाभारत ‘हिकायत पेरांग पाण्डव जय’ (14 वीं सदी) और जावानी भाषा में ‘भारतयुद्ध’ नाम से है। ‘हिकायत पेरांग पाण्डव जय’ का सन्दर्भ 1638 में लिखी ‘बुस्तान अल-सलातिन आॅफ अल रानिरी’ में भी है। रोमन में लिखित मलय भाषा की ‘चरित्र राम’ नामक रामायण की 1812 की एक प्रतिलिपि भी ब्रिटिश पुस्तकालय में है। (चित्र 1) मलय भाषी ‘हिकायत पेरांग पाण्डव जय’ की प्राचीन मूलप्रति से 26 नवम्बर 1804 को की गई प्रतिलिपि भी ब्रिटिश पुस्तकालय में (चित्र 2) है।

संस्कृत व तमिल भारतीय लिपियों में शिलालेख
मलेशिया व मलय द्वीप समूह में मिले सभी प्राचीन शिलालेख व ताम्रपट्टों में संस्कृत व तमिल भाषाओं और लिपियों में देवनागरी व पल्लव आदि भारतीय लिपियों का उपयोग किया गया है। 

केदाह का संस्कृत अभिलेख व बुजांग घाटी : प्राचीन बुजांग घाटी में 1086 ईस्वी का संस्कृत शिलालेख केदाह में मिला है। वहां 300 ईस्वी के धातु के औजार व हिन्दू प्रतीक भी मिलते रहे हैं। छठी सदी का ‘केण्डी बुकित बातु पाहत हिन्दू मन्दिर’ (चित्र 3) केदाह में विशाल हिन्दू साम्राज्य का प्रमाण है। 

केदुकन का शिलालेख : केदुकन बुकित का शक सम्वत 605 (683 ईस्वी) अंकित पल्लव लिपि का शिलालेख मलेशिया में दक्षिण भारतीय पल्लव लिपि का चलन बतलाता है (चित्र 4)। मलय द्वीपसमूह के क्षेत्र में चौथी सदी से 13वीं सदी के बीच के सर्वाधिक शिलालेख संस्कृत के हैं। इनमें अधिकांश में देवनागरी व पल्लव आदि भारतीय लिपियों का प्रयोग हुआ है। समस्त प्राचीन पाण्डुलिपियों, शिलालेखों व ताम्रपट्टिकाओं में संस्कृत, पाली, प्राकृत, देवनागरी व पल्लव ही है। इन अभिलेखों में त्रिशूल, स्वास्तिक, शंख आदि हिन्दू प्रतीक चिन्हों का उपयोग भी होता रहा है।

हिन्दू-बौद्ध मन्दिर
सम्पूर्ण मलय क्षेत्र में हिन्दू-बौद्ध एक्य की दृष्टि से हिन्दू देवताओं व भगवान बुद्ध के संयुक्त पूजा विधान की दृष्टि से चतुर्भुज या अष्टभुज गौतम बुद्ध को अवलोकितेश्वर स्वरूप में दिखाया है। आठवीं सदी की मुकुट युक्त अष्टभुज अवलोकितेश्वर प्रतिमा (चित्र 8) में विष्णु व बुद्ध का संयुक्त स्वरूप है। बुजंग घाटी में जहां 2500 वर्ष प्राचीन हिन्दू सभ्यता के पुरावशेष मिले हैं, उसका प्राचीन नाम भुजंग घाटी था। भुजंग सर्प का संस्कृत नाम है। वहां 50 से अधिक मन्दिरों व चैत्यगृहों के अवशेष मिले हैं।

प्राचीन हिन्दू सभ्यता के पुरावशेष 2500 वर्ष

भारतीय संस्कृति प्रधान राज्य शासन

सिंघपुरा (सिंगापुर) से राणा विक्रम (1362-75)

पादुका श्री महाराज (1375-89)

राजा परमेश्वर (1344-1414)

राजा बेसर मुदा उपाख्य चेकम दरक्ष (1414-24)

आधुनिक मन्दिर : 17वीं सदी से भी कई हिन्दू मन्दिर बने हैं। इनमें 18वीं सदी का ‘पोयोथा मूर्ति गणेश मन्दिर’ (चित्र 10), बातु गुफा का मुरूगन मन्दिर (चित्र 6-7), महामरिअम्मन मन्दिर (चित्र 11), श्री कण्डीस्वामी मन्दिर (चित्र 12), श्री शक्ति देवस्थानम् मन्दिर (चित्र 13) आदि प्रमुख हैं। श्री शक्ति देवस्थानम् के पांच मंजिला मन्दिर में 51 शक्तिपीठों के विग्रह और उसके 96 स्तम्भों पर हिन्दुत्व के 96 सिद्धान्त उद्धृत किए गए हैं। इनके साथ ही वहां गणपति, नवग्रह व अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं।

हिन्दू साम्राज्यों की सुदीर्घ परम्परा
मलय प्रायद्वीप में हिन्दू व बौद्ध राजाओं की लम्बी श्रृंखला रही है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार दूसरी व तीसरी सदी से भारतीय संस्कृति प्रधान राज्य शासन व राजाओं की अक्षुण्ण परम्परा रही है। सिंघपुरा (सिंगापुर) से राणा विक्रम (1362-75), पादुका श्री महाराज (1375-89), राजा परमेश्वर (1344-1414) (चित्र 14), राजा बेसर मुदा उपाख्य चेकम दरक्ष (1414-24) की हिन्दू शासक परम्परा रही है। सोलहवीं सदी के पुर्तगाली लेखक टाम पायर्स के अनुसार राजा परमेश्वर के पुत्र बेसर मुदा को अपने जीवन के अन्तिम वर्ष में इस्लाम कबूल करना पड़ा था। जेहादी आक्रमणों से मलय सल्तनत की स्थापना से मलय की दो तिहाई जनता मतान्तरित हो गई।

इस प्रकार मलय के ज्ञात इतिहास में दूसरी सदी से पन्द्रहवीं सदी तक सल्तनत काल के पहले हिन्दू व बौद्ध राजा रहे हैं। ढाई हजार वर्षों के भुजंग घाटी के पुरावशेषों में मन्दिरों व बौद्ध विहारों के अवशेष सम्पूर्ण मलय क्षेत्र के वृहत्तर भारत से भू-सांस्कृतिक एकता के प्रमाण हैं।
(लेखक उदयपुर में पैसिफिक विश्वविद्यालय समूह के अध्यक्ष-आयोजना व नियंत्रण हैं)

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