पंजाब में अक्सर नेता बेअदबी के मामले में तभी मुखर हाेते हैं, जब मामला सिखों की पांथिक भावना से जुड़ा हो। लेकिन टियाला के काली माता मंदिर में बेअदबी के बाद हिंदू संगठनों के शहर बंद के आह्वान और उग्र तेवरों ने नेताओं के इस माइंडसेट को तोड़ा है।
पटियाला के काली माता मंदिर में एक युवक ने माता की प्रतिमा को अपवित्र करने की कोशिश की। इसके बाद हिंदू संगठनों ने पंजाब बंद का आह्वान किया। कामयाब बंद के बीच आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान देर शाम मंदिर पहुंचे। हिंदू संगठनों ने उनका जबरदस्त विरोध किया। हिंदू संगठन के पदाधिकारियों का आरोप है कि क्यों उनके बंद में आम आदमी पार्टी से कोई नेता या कार्यकर्ता नहीं आया। अब जबकि बंद कामयाब रहा तो वे वोट की राजनीति करने आ गए।
हिंदू कार्यकर्ताओं ने मान का जबरदस्त विरोध किया। इस विरोध का असर यह हुआ कि अब पंजाब के दूसरे नेता भी न सिर्फ घटना की निंदा करने के लिए मजबूर हुए, बल्कि यह संदेश भी गया कि अब हिंदुओं को पंजाब में दूसरे दर्जे का नागरिक नहीं माना जा सकता। हिंदू अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ इस तरह से खिलवाड़ नहीं होने देगा। काली माता तख्त के सदस्य अविनाश शर्मा ने रोष जताते हुए कहा, ''इस राज्य में किसी को हमारी चिंता ही नहीं है। न नेता हमारी ओर ध्यान देते हैं और न प्रशासन। यह पहला मौका है, जब हिंदू इस तरह से एकजुट हुए हैं।''
उन्होंने कहा कि नेता मौके का फायदा उठाने की ताक में रहते हैं। भगवंत मान के विरोध के पीछे यही वजह थी। इसका असर यह हुआ कि अब कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने भी घटना पर रोष व्यक्त किया है। अकाली दल ने भी घटना पर रोष जताया। हिंदू संगठन के नेता सुखदेव ने बताया कि इससे निश्चित ही पंजाब में हिंदुओं के प्रति सोच बदलेगी। लंबे समय से हमें दबाया जा रहा है, क्योंकि नेताओं के एजेंडे में हम हैं नहीं, इसलिए प्रशासन भी हमारी ओर ध्यान नहीं देता। अब काली माता मंदिर मामले को ही देख लीजिए। पुलिस ने आरोपी को पकड़ा, लेकिन यह जांच ही नहीं की कि वह यहां आया कैसे? इसके पीछे कौन है? हमने पुलिस सेे बार-बार आग्रह किया। इसके बाद भी हमारी मांग की ओर ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए हमें सड़क पर उतर कर शहर बंद कराना पड़ा।
उन्होंने बताया कि आरोपी युवक की पहचान जरूर की, लेकिन इसके पीछे कौन है? उसने यह हरकत क्यों की? क्या किसी ने उसे उकसा कर यहां भेजा? इसकी जांच होनी चाहिए। आरोपी युवक का नाम राजदीप सिंह जो कि पीके नैनकलां गांव का रहने वाला है। जानकारों का कहना है कि राज्य में इस बार जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ रही है, इससे हिंदू मतदाता को एकजुट होने का मौका मिला है। उन्हें पहचान मिली है, क्योंकि कांग्रेस राज में पंजाब में हमेशा ही हिंदुओं को दबाया गया है। भाजपा के आने के बाद अब दूसरे दलों को भी हिंदू मतदाताओं का महत्व समझ में आ रहा है।
पंजाब में हिंदुओं की संख्या कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 38.5 प्रतिशत है। राज्य में 45 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हिंदू मतदाताओं की संख्या अधिक है। मोगा विधानसभा क्षेत्र के 1.84 लाख मतदाताओं में करीब एक लाख शहरी हिंदू मतदाता हैं। बठिंडा में 62 प्रतिशत मतदाता शहरी मतदाता हैं। वोट संख्या के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में हिंदू मतदाताओं की संख्या 83 लाखा 56 हजार के आसपास है। इसलिए अब हिंदुओं की अनदेखी राजनीतिक दलों पर भारी पड़ सकती है। इसलिए अब पंजाब के नेता अपना रवैया हिंदुओं के प्रति बदल रहे हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस खरड़ के विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी शर्मा ने बताया कि पंजाब में आतंकवाद के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान हिंदुओं को उठाना पड़ा। बहुत से लोग तो यहां से पलायन ही कर गए। पंजाब में आतंकवाद खत्म होने के बाद भी हिंदुओं को एक तरह से दबाने की कोशिश होती रहती है। अभी तक हिंदू नेता ही अपने दम पर एकता दिखाने की कोशिश करते थे। लेकिन जब तक सियासी नेतृत्व मजबूत नहीं होगा, तब तक इस तरह की दिक्कत रहेगी। इस बार यह धारणा टूटती नजर आ रही है। पंजाब में बड़ी पार्टी के तौर पर भाजपा के चुनाव लड़ने के फैसले को राज्य हिंदू मतदाताओं के लिए काफी अच्छा माना जा रहा है। इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। निश्चित ही इससे पंजाब के हिंदुओं को मजबूती मिलेगी। उनकी बात और मुद्दों की ओर भी ध्यान दिया जाएगा। यहां तक कि उनके मसले अब विधानसभा तक पहुंचना भी संभव होगा।
डॉ. शर्मा ने उम्मीद जताई कि अब काली माता मंदिर जैसी घटनाएं रोकने के लिए प्रशासन पर भी दबाव बना है। इसलिए वह हिंदुओं के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पुख्ता करने की ओर भी ध्यान देंगे, जो सुरक्षा के लिहाज से अभी तक उपेक्षित थे।
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