महेश दत्त
रंज की जब गूफ्तगू होने लगी हैं
आप से तुम, तुम से तू होने लगी हैं
बात पिछले हफ्ते 13 तारीख की है। पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी पीटीआई के संसदीय दल की बैठक चल रही थी। बैठक के आरंभ में ही रक्षा मंत्री परवेज खटक और प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच तू-तू मैं-मैं हो गई। खटक पहले खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में रक्षा मंत्री हैं। खटक ने अपने राज्य के लिए गैस और बिजली की आपूर्ति की मांग की और प्रधानमंत्री को धमकी दी कि उन्हीं की वजह से उनको प्रधानमंत्री बनाया गया है। जब इस तू-तू मैं-मैं के बीच वाणिज्य मंत्री हमीद अजहर ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो रक्षा मंत्री ने उन्हें बीच में न पड़ने की हिदायत दी। बात कितनी बढ़ी कि प्रधानमंत्री ने मीटिंग छोड़कर बाहर जाने की कोशिश की और कहा कि अगर आप लोगों को मुझ पर भरोसा नहीं है तो मैं सत्ता विपक्ष को सौंप देता हूं। जी हां, प्रधानमंत्री को रक्षा मंत्री धमकी देते हैं, ऐसा भी पाकिस्तान में ही होता है। याद रखिए, बैठक संसदीय दल की थी, जाहिर है इसमें कोई पत्रकार नहीं होते, न ही कोई बाहर का व्यक्ति होता है, इसके बावजूद सारी घटना फौज के पसंदीदा टीवी चैनल एआरवाई पर रिपोर्ट कर दी जाती है। इसके तुरंत बाद तमाम पाकिस्तान के चैनल इस घटना की बात करने लग जाते हैं।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। अगले दिन संसद की कार्यवाही के दौरान सत्तासीन पार्टी के सदस्य नूर आलम खान ने संसद में कहा कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया है और सत्तासीन पार्टी की पहली तीन पंक्तियों में बैठे सदस्यों पर देश छोड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए ताकि भ्रष्टाचार के मामलों के आरोपी देश न छोड़ सकें। यानी सरकार का ही सदस्य सरकार के ही मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उनके देश से बाहर जाने पर पाबंदी की मांग कर रहा था। इन पहली तीन पंक्तियों में स्वयं प्रधानमंत्री भी बैठे होते हैं।
विपक्ष का भी रुख बदला
इस घटनाक्रम से दो दिन पहले विपक्ष के दो नेताओं की एक मुलाकात उल्लेखनीय है। यह मुलाकात शहबाज शरीफ और मौलाना फजलुर रहमान के बीच हुई जिसमें यह तय किया गया कि आगामी 25 जनवरी को इमरान सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने पर फैसला करने के लिए तमाम विपक्षी दलों की बैठक बुलाई जाएगी। बहुत दिन नहीं हुए जब यही विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर भरोसा नहीं करता था। उसे लगता था कि जब तक फौज साथ न दे, अविश्वास प्रस्ताव की सफलता का कोई संयोग नहीं बन सकता। यानी, पाकिस्तान में बदलाव की हवा चल चुकी है।
इस सप्ताह मिनी बजट, जिसे पास करने पर आईएमएफ ने जोर दिया था, उसे पारित कर दिया गया है। इसे पारित करने के पीछे एकमात्र उद्देश्य आईएमएफ से मिलने वाली एक अरब डॉलर की राशि है। लेकिन इसमें कुछ ऐसी शर्तें भी हैं जिनसे पाकिस्तान रिजर्व बैंक लगभग पूरी तरह आईएमएफ के कब्जे में चला जाता है। यह तय है कि इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान में महंगाई का जो तूफान आएगा, वह आम आदमी की कमर तोड़ देगा। पाकिस्तानी विपक्ष को लगता है कि सत्ता परिवर्तन से पहले यह बिल अगर इमरान सरकार पास करती है, तो इसके होने वाले दुष्परिणामों की जिम्मेदारी भी उसी पर पड़ेगी, जिसका विपक्ष को चुनावी फायदा होगा। इस बिल को पारित कराने के क्रम में फौज ने भी इमरान सरकार को कई संकेत दे दिए। बहुमत के लिए 172 मतों की आवश्यकता थी लेकिन इमरान सरकार को 163 वोट ही मिल पाए। बाकी के वोट दूसरी पार्टियों से उन्हें फौज ने दिलवाए। संदेश साफ था, बिना फौज की मदद के सरकार बहुमत में नहीं है। ऐसे में विपक्ष के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था। एक तरफ फौज के कहने पर सरकार का बिल पारित कराते हुए उन्होंने फौज को अपने पक्ष में किया, तो दूसरी तरफ सरकार के सिर पर आने वाली महंगाई की मुसीबतों का रास्ता खोल दिया।
इमरान के दांव की काट
कहते हैं, राजनीति के खिलाड़ी मैदान में उगती ताजा घास में होने वाली हलचल भी सुन लेते हैं। रक्षा मंत्री परवेज खटक का अचानक इस प्रकार बोलना इसी तरफ इशारा करता है। यह सोचना गलत होगा कि इमरान खान को इन बातों की जानकारी नहीं है। पिछले हफ्ते उन्होंने अपने पसंदीदा पत्रकार शबीर शाकिर को एक साक्षात्कार दिया जिसमें उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, कि उन्होंने अभी यह तय नहीं किया है की फौज का अगला मुखिया कौन होगा। अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं से बात करते हुए इमरान खान ने यह भी कहा कि वह मार्च में कुछ बड़ा फैसला कर सकते हैं। इशारा था, नए आर्मी चीफ की तैनाती। याद रहे कि आईएसआई के पिछले चीफ फैज हमीद को पेशावर का कोर कमांडर नियुक्त किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि उन्हें 1 साल का अनुभव मिल सके जो आर्मी चीफ बनने के लिए अनिवार्य है। मार्च में बड़ा फैसला करने वाली बात कहे जाने के बाद यह सुनने में आ रहा है कि फैज हमीद को स्थानांतरित किया जा रहा है। अगर ऐसा होता है, तो यह उनके अगले आर्मी चीफ बनने की राह में मुश्किल पैदा कर देगा। यह कोई नहीं चाहेगा कि इमरान खान को मार्च का महीना मिले ताकि वह फैज हमीद को अगला आर्मी चीफ नियुक्त करें। मौजूदा आर्मी चीफ बाजवा इस साल के अंत में सेवामुक्त हो रहे हैं।
अंतारंभ : नवाज की वापसी की सुगबुगाहटकालाबाग नवाब के दामाद डॉक्टर ताहिर तूसी लंदन में एक स्थापित डॉक्टर है, वहां पर उनकी तमाम जायदाद हैं और अस्पताल भी। पाकिस्तान के तमाम बड़े लोगों की वहां मेजबानी की जाती है। यह भी जानकारी है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, जो इन दिनों लंदन में ही रह रहे हैं, हर रविवार को उनके फार्म हाउस पर जाते हैं। डॉक्टर ताहिर तूसी से उनका पुराना खानदानी सम्बंध है। इस रविवार इसी फार्म हाउस पर नवाज शरीफ की मुलाकात पाकिस्तान से आए कुछ खास लोगों से कराई गई। माना जाता है कि यह लोग पाकिस्तान के ताकतवर विभागों से थे। उल्लेखनीय है कि यह टीम सिर्फ नवाज शरीफ से ही मुलाकात नहीं कर रही है, बल्कि उस देश में और भी मुलाकातें कर रही है। मुलाकात का विषय पाकिस्तान तो था, लेकिन पाकिस्तानी राजनीति नहीं। नवाज शरीफ को बताया गया है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय गारंटियों के चलते पाकिस्तान मजबूरियों में घिर गया है। जिसके कारण नवाज शरीफ को कुछ आंतरिक समझौतों के लिए राजी होना होगा। उन्हें अगले एक डेढ़ साल तक कुछ चीजें सहनी होंगी और पाकिस्तान में कुछ विशेष वर्गों के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई से बचना होगा, जिसके लिए वह पूर्व में अक्सर आमादा रहते थे। |
दरअसल मौजूदा हालात में इमरान खान पाकिस्तान की राजनीति में एक अस्थाई तत्व है। पाकिस्तानी राजनीतिक परिदृश्य में तमाम उहापोह की स्थिति के बीच स्थानीय हितों का अंतरराष्ट्रीय हितों के साथ टकराव है। चुनौती यह है, कि किस तरह स्थानीय हितों का अंतरराष्ट्रीय हितों के साथ सामंजस्य बिठाया जाए ताकि जनरलों का जलवा कायम रहे।
इसी हफ्ते पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को भी सामने लाया गया। इसमें भारत के साथ संबंधों पर भी बात की गई है। यह जिक्र तो किया गया कि हम भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं लेकिन उसके बाद तमाम नीति में सिर्फ यही गिनती गिनाई गई कि भारत ने हमारे साथ क्या-क्या कर दिया। न कहीं यह कहा गया कि क्या व्यापार नीति होगी या कैसे संबंध सुधारे जाएंगे। पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी ने इस पर कहा कि इससे बेहतर रिपोर्ट इंग्लैंड के विश्वविद्यालय के किसी पहले साल के छात्र से लिखवाई जा सकती थी। इसके बावजूद इस रिपोर्ट को बनाने में 7 साल लग गए। इस रिपोर्ट को बनाने में जिन लोगों से बात की गई, उनमें नजम सेठी का भी नाम शामिल है, लेकिन नजम सेठी ने कहा कि मेरे साथ हुई मुलाकात 1 घंटे चली थी लेकिन उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई बात नहीं की गई थी।
क्या होगा डूरंड कागत शुक्रवार को पाकिस्तान के एक और वरिष्ठ पत्रकार सईद चौधरी ने यह खबर दी कि पाकिस्तान के ताकतवर विभाग अब आपस में यह बहस कर रहे हैं कि आखिर हमें इतने बम और मिसाइलों की जरूरत क्या है। सूक्ति वाक्य वही है : पाकिस्तान पर दबाव के जरिए बुनता अंतरराष्ट्रीय डिजाइन। पाकिस्तान के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी संसद में यह कह चुके हैं कि देश की अर्थव्यवस्था और पाकिस्तान का रिजर्व बैंक अब आईएमएफ के पास गिरवी रखा जा चुका है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि आईएमएफ का बिल ताकतवर विभागों ने दबाव के जरिए पास करवाया है। यानी कि दोनों ही राजनीतिक दलों ने वर्तमान परिस्थिति से अपना पल्ला झाड़ लिया है। इस बारे में पत्रकार इमरान शफकत ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लगता है यह देश, जो अब तक मुस्लिम देशों के समाज में केंद्र में है, उसे केंद्र से हटाने की कोशिश की जा रही है। जिस देश की अर्थव्यवस्था गिरवी हो, उसे टूटने में कितनी देर लगेगी। तमाम परमाणु हथियार होने के बावजूद सोवियत यूनियन को टूटने में कितना समय लगा। एक गिरवी अर्थव्यवस्था के बीच लोगों के लिए फाके पड़ने में देर तो ना लगेगी। ऐसा देश वही बेच कर अपना काम चलाएगा, जो उसके पास होगा। यानी जमीन, जिस पर आसपास के कुछ देशों का दावा है और कुछ देशों की जरूरत। दूसरा टेक्नोलॉजी, वह टेक्नोलॉजी, जिसकी कुछ खतरनाक इरादे रखने वाले देशों को जरूरत है। पत्रकार इमरान शफकत के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय डिजाइन में यह भी शामिल है कि डूरंड रेखा के दोनों तरफ रहने वाले दोनों को मिला दिया जाए। मतलब यह कि डूरंड रेखा का अस्तित्व खत्म कर दिया जाए। |
आप कह सकते हैं कि हम पाकिस्तान की राजनीति और उनकी नीतियों पर इतनी सूक्ष्मता से चर्चा क्यों कर रहे हैं। मेरा कहना सिर्फ इतना सा है :
यह आग और किसी शहर में लगी है मगर हमारे शहर से होकर धुआं गुजरता हैमीडिया के साथ भी फौज का रुख बदला
पिछले वर्ष एक पत्रकार असद अली तूर को उसके घर में कुछ लोगों ने हाथ-पैर बांधकर पीटा और धमकाया कि वह सरकार और फौज के खिलाफ कुछ ना लिखें, न बोले। इसको लेकर हुए प्रदर्शन में पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने फौज का नाम लेकर धमकी दी और तत्कालीन आईएसआई के मुखिया की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अगर ऐसा दोबारा हुआ तो उन्हें मजबूरन बताना पड़ेगा कि किस जनरल की पत्नी ने उसे क्यों गोली मारी। बताया जाता है कि जनरल फैज हमीद की पत्नी ने उन्हें उस समय पर गोली मारी थी, जब वह किसी दूसरी स्त्री के साथ में व्यभिचार में लिप्त थे। इसका नतीजा यह हुआ कि हामिद मीर को नौकरी से निकाल दिया गया और उनके किसी भी टेलीविजन चैनल पर आने पर पाबंदी लगा दी गई। पिछले महीने जब वह एक चैनल पर आए तो उस प्रोग्राम को तुरंत रुकवा दिया गया। लेकिन दो दिन पहले अचानक वह फिर से टेलीविजन चैनल पर नजर आए और यह प्रोग्राम चलने दिया गया। यह एक और संकेत था कि बदलाव की हवा चल निकली है। इस कार्यक्रम में बोलते हुए हामिद मीर ने कहा कि आने वाले दिनों में इमरान खान की पार्टी के दूसरे नेता खुलकर उनके विरुद्ध बोलेंगे। इतना ही नहीं, इमरान के विरुद्ध भ्रष्टाचार के ऐसे मामले सामने आएंगे कि लोग पिछले 75 सालों में हुए तमाम भ्रष्टाचार को भूल जाएंगे।
रसूखदारों के लिए अहम रहे हैं कालाबाग के नवाबकालाबाग के नवाब के दामाद डॉ. ताहिर तूसी पाकिस्तान में संभावित बदलाव की एक कड़ी बन रहे हैं। नवाब के दामाद होने और इससे पाकिस्तान के ताकतवर लोगों से सहज संपर्क होने से वे महत्वपूर्ण हो जाते हैं। आज की पीढ़ी सामंती परिवार के कालाबाग के नवाब (1910-1967) के बारे में बहुत नहीं जानती है लेकिन सच यह है कि पाकिस्तान का इतिहास उन छह सालों के जिक्र बिना अधूरा है, जिनमें वह तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के दूसरे सबसे ताकतवर व्यक्ति थे। उन्होंने 1940 के लाहौर के मंटो पार्क में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन में खुलकर आर्थिक दान दिया था। इस अधिवेशन में पाकिस्तान रिजर्वेशन पास करने के बाद समर्थन जुटाने के लिए आर्थिक आवश्यकता पर जिन्ना ने काफी जोर दिया था। कालाबाग के नवाब के तेजी से सत्ता में ऊपर आने के पीछे शिकार के लिए उपयुक्त उनके बड़े-बड़े मैदानों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। बड़े-बड़े पदों पर मौजूद लोगों को यहां शिकार के लिए आमंत्रित किया जाता था। जनरल अयूब खान, इस्कंदर मिर्जा, जुल्फिकार अली भुट्टो ऐसे ही कुछ जाने-पहचाने नाम थे। नवाब ने एटकिंसन कॉलेज और लंदन में पढ़ाई की थी जिसके चलते वह फरार्टेदार अंग्रेजी बोलते थे। जनरल अयूब खान उनसे बहुत प्रभावित थे और अपने शासनकाल में उन्हें पश्चिमी पाकिस्तान का गवर्नर बना दिया था। एक सैनिक तानाशाह और एक सामंत का यह रिश्ता छह साल तक चला। कालाबाग के नवाब एक कठोर शासक थे। उनका खुफिया तंत्र बहुत विश्वसनीय था। अपने सैन्य सचिव को उन्होंने यह बता कर हैरान कर दिया था कि उसकी नियुक्ति से पूर्व उन्होंने उसकी पृष्ठभूमि की जांच करवाई थी और वह जानते थे कि उसके दादा अपने क्षेत्र से हज करने वाले पहले व्यक्ति थे। अपने कार्यकाल के दौरान नवाब ने शासन से कोई तनख्वाह या मानदेय नहीं लिया और ना ही अपने परिवार के किसी सदस्य को कभी गवर्नर हाउस में रहने दिया। अनुशासन और समय की पाबंदी का वह बहुत ध्यान रखते थे। वह अकेले शख्स थे जो अयूब खान से विरोध की अभिव्यक्ति कर सकते थे। एक समय पर उन्होंने अयूब खान से उनके बेटे के भ्रष्टाचार की बात उठाई थी जिस पर अयूब खान ने चिढ़कर कहा था कि क्या मेरी औलादों को इस मुल्क में रहने का हक नहीं है। नवाब साहब अयूब खान की इस प्रतिक्रिया से हैरत में पड़ गए थे और बाद में एक जगह पर उन्होंने इस संदर्भ में कहा था की अयूब खान के पतन का कारण उसके बेटे का भ्रष्टाचार ही बनेगा। |
एत्थे कुछ वी हो सकदा है
व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि पाकिस्तान एक देश की परिभाषा पर पूरा नहीं उतरता। यह अमीर और ताकतवर लोगों के दास जैसा है। जिसके पास सत्ता है या धन है, ऐसा व्यक्ति इस देश में कुछ भी कर सकता है। लेकिन यह भी सच है कि देश की असली शासक वहां की फौज ही है। ऐसा किसी सामान्य देश में नहीं होता कि किसी प्रधानमंत्री को गोली मार दी जाए और 70 साल बाद भी यह न मालूम हो कि वह हत्या किसने की। एक चुने गए प्रधानमंत्री को, जिसने टूटे हुए देश को संभाला हो, उसे एक दिन सवेरे गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दिया जाए। किसी प्रधानमंत्री को झूठे-सच्चे केस में फंसाकर सजा सुना दी जाए और वह समर्थकों को लिये सड़क पर पूछ रहा हो कि आखिर मुझे क्यों निकाला। या फिर यह भी कि एक प्रधानमंत्री को सजायाफ्ता मुजरिम बना कर जेल में डाला जाए और जेल से इलाज के नाम पर विदेश भेज दिया जाए जहां से वह अपनी राजनीति करता रहे। यह पाकिस्तान है। यहां कुछ भी हो सकता है। अफजल साहिर की पंजाबी नज्म है : एत्थे कुछ वी हो सकदा है :
उड़दी जांदी मक्खी कोलों बांदर टूकर खो सकदा है/
एत्थे कुछ वी हो सकदा है।
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