गत कई दशकों से पूरे विश्व,विशेषकर विकासशील देशों में यह भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक है। इसके लिए माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत का भी सहारा लिया गया है, लेकिन सचाई इससे भिन्न है। मानवशक्ति आर्थिक विकास का एक अहम साधन है, लेकिन तभी जब यह मानव संसाधन शिक्षित और कौशल प्राप्त हो। भारतीय मध्यम वर्ग यह जानकर आश्चर्यचकित होगा कि मानव जाति के सामने नवीनतम खतरा अधिक जनसंख्या से नहीं, बल्कि उस प्रवृत्ति से है जिसके फलस्वरूप कई देशों में जनसंख्या हृास आरंभ हो गया है। मुस्लिम देशों को छोड़कर शेष विश्व में गर्भनिरोधकों के प्रयोग के कारण 1972 की छह बच्चे प्रति महिला की जनन क्षमता दर घटकर 1990 के दशक में 2.9 बच्चे प्रति महिला हो गई है। रूस की जनसंख्या में प्रतिवर्ष 75,00,000 की कमी आ रही है जिसे पुतिन ने 'राष्ट्रीय संकट' कहा है। जर्मनी, बुल्गारिया तथा रोमानिया में भी जनसंख्या बहुत तेजी से घट रही है। लेकिन इसके विपरीत मुस्लिम देशों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
दुर्भाग्यवश अधिकांश भारतीय बुद्धिजीवी और नीति-निमार्ता इस तथ्य को समझना नहीं चाहते। इसी प्रवृत्ति ने लेबनान, कोसावा, बोस्निया आदि देशों की पंथनिरपेक्ष और बहुसांस्कृतिक संरचना को नष्ट कर दिया। इसी प्रकार के जनसांख्यिकीय परिवर्तन का खतरा मेसीडोनिया और फ्रांस पर भी मंडरा रहा है। 1990 में मेसीडोनिया में मुस्लिमों की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का आठ प्रतिशत थी। आज उनकी जनसंख्या कुल जनसंख्या की एक तिहाई है। फ्रांस की भी कमोबेश यही स्थिति है। हाल ही में फ्रांस में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा की गई हिंसक घटनाएं वहीं के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में हो रहे परिवर्तन का ही परिणाम हैं।
इस तीव्र जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दीर्घकालिक परिणामों को समझने के लिए निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करना आवश्यक है—
- भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केवल मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या की प्रतिशतता में निरन्तर तीव्र वृद्धि हुई है। शेष समुदायों के लोगों की जनसंख्या की प्रतिशतता में कमी आई है।
- 2001 की जनगणना से यह पता चलता है कि पिछले दशक के दौरान (1991—2001) मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर लगभग 36 प्रतिशत थी, जबकि हिन्दुओं की वृद्धि दर 23 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत रह गई।
- दो प्रसिद्ध जनसंख्याविदों— पी.एन. मारी भट्ट और ए.जे. फ्रेंसिस जेवियर ने अपने एक लेख में यह उजागर किया कि मुस्लिमों की वृद्धि दर, जो स्वतंत्रता के पहले हिन्दुओं से लगभग 10 प्रतिशत अधिक थी, अब 25 से 30 प्रतिशत अधिक हो गई है। यानी मुस्लिम आबादी अभी हिन्दुओं से लगभग 45 प्रतिशत अधिक तेजी से बढ़ रही है।
- भट्ट तथा जेवियर ने यह भी कहा कि अंग्रेजी मीडिया के एक वर्ग का यह कथन गलत है कि 2001 की जनगणना हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिमों की वृद्धि दर में अपेक्षाकृत अधिक तेजी से गिरावट दशार्ती है।
- 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम आबादी केवल 13.4 प्रतिशत है, लेकिन 0—6 वर्ष के आयु वर्ग के मुस्लिम बच्चों की संख्या इसी आयु वर्ग के हिन्दू बच्चों की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक है। यानी उन्हें आरंभ में ही 7.6 प्रतिशत की बढ़त हासिल है। आने वाले 30—40 वर्ष में उनकी वृद्धि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
कुल मिलाकर आने वाले वर्षों में भारत पर व्यापक जनसांख्यिकीय परिवर्तन का साया मंडरा रहा है। आने वाले दशकों में हिन्दुओं और सिखों की जनसंख्या में वर्ष दर वर्ष युवकों की संख्या घटती जाएगी, जबकि बुजुर्गों के अनुपात में वृद्धि होगी। लेकिन मुस्लिमों में कई दशकों तक युवकों का अनुपात इन दोनों समुदायों के युवकों के अनुपात से अधिक रहेगा। मुस्लिम युवकों की संख्या में वृद्धि गैर-इस्लामिक समाजों के लिए शुभ संकेत नहीं है। जैसा कि सैमुएल हटिंग्टन द्वारा भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में उजागर किया गया है। आबादी के कारण यह समाज गंभीर संकट में है।
आश्चर्य है कि इन परिस्थितियों में भी तथाकथित भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग यह समझने को तैयार नहीं है कि क्यों ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने अपने देशवासियों से यह कहा कि प्रत्येक ब्रिटिश परिवार को पांच बच्चे पैदा करने चाहिए? हाल के वर्षों में यूरोपीय देशों ने अधिक बच्चे पैदा करने वाले युगलों को नकदी प्रोत्साहन देने की घोषणा की है? आस्ट्रेलिया के चांसलर पीटर ने कहा, ''एक बच्चा पिता के लिए, दूसरा माता के लिए और एक देश के लिए पैदा करें।''
कुछ संदेह करने वाले कह सकते हैं कि वैश्विक हाहाकार क्यों? समस्या क्या है? उत्तर है कि वर्ष 1900 में मुस्लिम आबादी विश्व की जनसंख्या का 12 प्रतिशत, जो 1992—93 में बढ़कर 18 प्रतिशत, और 2003 तक 20 प्रतिशत हो गई और 2005 तक 30 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। इसी अनुपात में विश्व में जिहाद और इस्लामिक आतंकवाद के बढ़ने की भी आशंका है। नियल फरगूसन (एक सामरिक विश्लेषक जो हार्वर्ड विश्वविद्यालय में समकालीन इतिहास का अध्यापन करते हैं) ने अप्रैल, 2004 में लंदन से प्रकाशित 'दि संडे टाइम्स' में लिखा कि यूरोप आने वाले 50 वर्ष में मुस्लिम—बहुल महाद्वीप बन जाएगा।
उनकी इस चेतावनी ने यूरोप के अधिकांश देशों को सावधान कर दिया है। कुछ उत्साही भविष्यवाणियों ने यूरोप का नामकरण 'यूरेबिया' के रूप में किया है। भारत में भी हिन्दुओं की जन्मदर यूरोपीय औसत की ओर शीघ्रता से अग्रसर है। 2001 की जनगणना के अनुसार कोलकाता जिले में हिन्दुओं की जन्म दर केवल 1.0 प्रतिशत थी, जो कि जर्मनी, इटली और स्पेन की जन्म दरों तथा 2.1 की दर से काफी कम थी। पश्चिम बंगाल के 49 जिलों में मुस्लिम पहले ही कुल जनसंख्या के 30 प्रतिशत से अधिक हैं। 12 जिलों में वे बहुसंख्यक स्थिति में हैं।
समय आ गया है कि भारतीय मध्यम वर्ग और नीति—निमार्ता भारतीय क्षितिज पर मंडरा रहे हमारे अस्तित्व के लिए घातक जनसांख्यिकीय संकट के दीर्घकालीन परिणामों को समझें। उपर्युक्त तथ्य उन लोगों के लिए चेतावनी है, जो भारत में पंथनिरपेक्षता को दीर्घकाल तक सुनिश्चित कराना चाहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व इस खतरे के प्रति सचेत हो गया है, लेकिन हम भारतीय अभी भी उनींदी अवस्था में हैं।
टिप्पणियाँ