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हम जम्मू-कश्मीर के दो टुकड़े नहीं होने देंगे!

by WEB DESK
Jan 21, 2022, 04:04 am IST
in भारत, दिल्ली
पाञ्चजन्य के प्रथम वर्ष का दूसरा अंक पौष शुक्ल 11, संवत् 2004 (1948) में उन दिनों प्रकाशित हुआ था, जब पाकिस्तान भारत पर हमले की तैयारी पर ‘तैयार रहो’ शीर्षक

पाञ्चजन्य के प्रथम वर्ष का दूसरा अंक पौष शुक्ल 11, संवत् 2004 (1948) में उन दिनों प्रकाशित हुआ था, जब पाकिस्तान भारत पर हमले की तैयारी पर ‘तैयार रहो’ शीर्षक

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पाञ्चजन्य के प्रथम वर्ष का दूसरा अंक पौष शुक्ल 11, संवत् 2004 (1948) में उन दिनों प्रकाशित हुआ था, जब पाकिस्तान भारत पर हमले की तैयारी कर रहा था। उसके आवरण पृष्ठ पर ‘तैयार रहो’ शीर्षक से संपादकीय लिखा गया था। उसमें सरकार और जनता, दोनों से पाकिस्तान की मक्कारी को लेकर सावधान रहने का आह्ववान किया गया था। इसी अंक में ‘हम जम्मू और कश्मीर के दो टुकड़े नहीं होने देंगे!’ शीर्षक से आवरण कथा भी प्रकाशित की गई थी। इन दोनों को यहां पुन: प्रकाशित किया जा रहा है 

जत्थेदार उधम सिंह नागौर ने पंडित नेहरू को पत्र लिखकर बताया है कि किस प्रकार एबटाबाद में मुसलमानों की सभा में भाषण देते हुए मुस्लिम नेताओं ने कहा कि भारत में अपहृत 50,000 मुसलमान स्त्रियों का बदला लेने के लिए हमें कश्मीर जीतना है और फिर दिल्ली को विजय करना है

तैयार रहो!
कश्मीर मोर्चे से जो समाचार आ रहे हैं वे अच्छे नहीं है! भारतीय फौज इंच—इंच भूमि के लिए अपना रक्त बहाकर भी आगे बढ़ने में असमर्थता का अनुभव कर रही है। आक्रमणकारियों ने गोरिल्ला ढंग को छोड़कर जमकर लड़ना प्रारंभ कर दिया है। उनके प्रबल प्रतिरोध के सम्मुख भारतीय फौज को अनेक स्थानों पर पीछे हटना पड़ा है।

इसका क्या कारण है?
कश्मीर युद्ध में भारतीय फौज की असफलता पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध पत्रकार जोसेलिन हेनेसी ने ‘संडे टाइम्स’ में लिखा है, ‘‘पिछले सप्ताह में आक्रमणकारियों ने अधिक शक्ति अनुभव गोरिल्ला युद्ध को छोड़कर जमकर लड़ाइयां लड़ी हैं जिसके परिणामस्वरूप भारतीय फौजों को पीछे हटना पड़ा है। भारतीय सूत्रों से पता चला है कि केवल उरी क्षेत्र में 19000 आक्रमणकारी हैं और अपनी पुंछ स्थित फौज को जोड़कर तो वे भारतीय सेना से 1 के साथ 2 के अनुपात में हो जाते हैं। उरी, पुंछ, जम्मू क्षेत्र को साफ करने के लिए कम से कम 2 डिवीजन चाहिए। यह भारतीय सैनिक शक्ति की आज परिसीमा है। और इसलिए मंत्रिमंडल उसे आज्ञा देने में झिझकता है, क्योंकि उससे भारत पाकिस्तान हमले के लिए बिल्कुल खुला हो जाएगा। भारत पर पाकिस्तान का हमला एक ऐसी संभावना है जिसे गंभीरतापूर्वक लिया जा रहा है।’’

भारत पाकिस्तान द्वारा हमला करने के इरादों और उनको कार्य रूप में परिणत करने के लिए पाकिस्तान की तैयारियों के समाचार लगातार आ रहे हैं।
निम्न समाचार प्रकाशित हुए हैं—

  • पाकिस्तान शीघ्रातिशीघ्र युद्ध के लिए फौज और सामग्री संगठित कर रहा है। विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि हजारों आदमी और लड़ाकू पठान पश्चिमी पंजाब और विशेषत: पूर्वी पंजाब तथा कश्मीर के सीमावर्ती जिलों में एकत्रित किए जा रहे हैं।
  • यह भी पता चला है कि उनमें पूर्वी पंजाब से दिल्ली और पटियाला की ओर जाने वाली सड़कों को लाल रंग में दिखाने वाले नक्शे धड़ाधड़ बांटे जा रहे हैं। रावलपिंडी, झेलम और कसूर से फौजी हलचलें हो रही हैं।
  • पश्चिमी पंजाब की पाकिस्तानी सरकार ने पूर्वी पंजाब के संपर्क लायसन अफसरों तथा अन्य अधिकारियों को, जो बलात मुसलमान बनाए गए पुरुषों तथा स्त्रियों को खोजने के लिए वहां पर भेजे गए हैं, स्यालकोट, झेलम, रावलपिंडी, गुजरात तथा अन्य जिलों में जाने से रोक दिया है जिससे कि ये लोग पाकिस्तानी युद्ध तैयारियों की हवा न पा सकें।
  • मृदुला साराभाई पश्चिमी पंजाब से वहां की सरकार के सहयोग के कारण वापस लौट आई हैं।
  • पाकिस्तानी सेना के भारी जमाव रावलपिंडी, स्यालकोट, झेलम, गुजरात, कसूर तथा गुजरांवाला जिलों में तथा बहावलपुर में है।
  • पश्चिमी पंजाब के मुसलमानों में बंदूकें खुलेआम बांटी जा रही हैं। पूरे पंजाब के सीमावर्ती जिलों में घबराहट फैली हुई है और अमृतसर, गुरदासपुर तथा फिरोजपुर जिलों से हजारों लोग दिल्ली तथा अन्य जगहों के लिए जा चुके हैं।
  • जत्थेदार उधम सिंह नागौर ने पंडित नेहरू को पत्र लिखकर बताया है कि किस प्रकार एबटाबाद में मुसलमानों की सभा में भाषण देते हुए मुस्लिम नेताओं ने कहा कि भारत में अपहृत 50,000 मुसलमान स्त्रियों का बदला लेने के लिए हमें कश्मीर जीतना है और फिर दिल्ली को विजय करना है।
  • लंदन से अभी-अभी समाचार मिला है कि पाकिस्तानी फौज खुले रूप से कश्मीर भारत सीमा पर भेजी जा रही है। स्यालकोट के पास पाकिस्तानी फौज का भारी जमाव है।

समाचार साफ है। टीका करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
हालत नाजुक है। देश की सुरक्षा और नवार्जित स्वतंत्रता खतरे में है। पाकिस्तानी प्रदेश से घृणा और विद्वेष के घोर काले बादल उठ रहे हैं। वे कभी भी युद्ध रूप में रक्त की नदियां बहाते हुए हमारी भूमि पर बरस सकते हैं।

क्या हम तैयार हैं?
यदि हम तैयार हैं तो अमृतसर से हिंदुओं के भागने की खबरें क्यों आ रही हैं? तो फिर हमारी फौजें तीव्रगति से शत्रु का सफाया करती हुई आगे क्यों नही बढ़ रही हैं?

हम लड़ाई नहीं चाहते। इसमें बर्बादी है। किंतु लड़ाई को रोकने का एक ही तरीका है कि हम पाकिस्तान को समझा दें कि हमें छेड़ना बर्र के छत्ते में हाथ डालना है, शंकर के प्रलय नेत्र को खुलने के लिए निमंत्रण देना है।
हम पग—पग पर झुकने का स्वभाव छोड़ें। मानसिक दुर्लबता को दूर करें। शांति के नाम पर शांति की हत्या न करें। सत्य के नाम पर असत्य का पुरस्कार न करें। मातृभूमि की रक्षा के लिए भारत माता की तीस करोड़ संतान तैयार रहे।

क्या नेता फिर हथियार डाल देंगे?
सुरक्षा समिति के हाथ में कश्मीर के भाग्य का निर्णय देकर हमारे नेताओं ने अपने हाथों हमारे प्राकृतिक अधिकार पर हस्तक्षेप करने के लिए संसार को निमंत्रण दिया है। भारत के विभाजन की तरह आज कश्मीर के विभाजन का प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। सुरक्षा समिति स्वार्थी गुटों का अड्डा है। कश्मीर विभाजन के पीछे अंग्रेजों का भी षड्यंत्र है। हमारी बुजदिली के कारण तीन जून का इतिहास फिर दुहराया जाने वाला है।

शेख अब्दुल्ला का दृष्टिकोण
यद्दपि शेख अब्दुल्ला अभी तक यही कह रहे हैं कि कश्मीर भारत में ही सम्मिलित होगा, किन्तु यह कहने का उनका आधार केवल आर्थिक है। उनका कहना है कि कश्मीर की उपज ,शिल्प तथा उद्योग के लिए पाकिस्तान में कोई स्थान नहीं। कश्मीरी मुसलमानों की आय के साधन पाकिस्तानी नहीं, भारतीय हैं। 

नेशनल कान्फ्रेंस ने इस संबंध में कुछ आंकड़े भी गुप्त रूप से एकत्र किए हैं। उनसे पता चलता है कि पिछले दस साल में केवल एक हजार मुसलमान कश्मीर यात्रा के लिए आए थे, जबकि हिन्दू तीन लाख की संख्या में गए। इसी प्रकार पाकिस्तान का सूखा मेवा भी कश्मीर के सूखे मेवे का मुकाबला करता है। इस प्रकार पाकिस्तान कश्मीर की उपज के लिए मंडी का काम नहीं कर सकता। इस आधार पर शेख अब्दुल्ला और उनकी नेशनल कान्फ्रेंस काश्मीर को भारत संघ में रखने के लिए उत्सुक है। ठीक यही बात 13 जनवरी को शेख अब्दुल्ला ने न्यूयॉर्क में कही है। उन्होंने कहा, ‘आर्थिक हितों के लिए कश्मीर भारत के साथ जाएगा।’

स्पष्ट है कि धर्म, सभ्यता और संस्कृति के बंधनों को छोड़कर केवल ‘आर्थिक’ दृष्टि से विचार करने वाले अपने मत पर दृढ़ता से डटे नहीं रह सकते। कश्मीर और भारत को जोड़ने वाला आधार संस्कृति है, स्वार्थ नहीं, आत्मा है, पेट नहीं; सजीव भावना है, जड़ तर्क नहीं।

अब्दुल्ला का प्रभाव
शेख अब्दुल्ला कश्मीर को भारत संघ में रखने के पक्ष में हैं। यह ठीक है किन्तु क्या कश्मीर के मुसलमान शेख साहब की बात मानने के लिए तैयार हैं? इधर कश्मीर से जो कुछ समाचार मिले हैं, वे इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वहां के मुसलमानों पर अब्दुल्ला का प्रभाव बहुत अधिक नहीं है। जम्मू, पुंछ क्षेत्र के मुसलमानों ने तो खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया है। राज्य की सेना के मुसलमान सिपाही तो पहले ही आक्रमणकारियों से मिल गए थे।…     

 

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