नक्सलबाड़ी की हिंसात्मक घटनाओं को लेकर पश्चिम बंगाल के मंत्रियों में गहरा मतभेद है और यह दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। पिछले दिनों ममता सरकार के कुछ मंत्री नक्सलबाड़ी के अशांत हलके का दौरा करने गए थे। पर दो सदस्यों में तो हाथापाई तक की नौबत आ गई। नक्सलबाड़ी के दौरे पर गए उपजाति कल्याण मंत्री देव प्रकाश राय ने एक मुलाकात में कहा कि मैंने अन्य मंत्रियों से साफ कह दिया है कि वे नक्सलबाड़ी के प्रश्न पर स्पष्ट नीति अपनाएं।
उन्होंने बड़े क्षुब्ध स्वर में कहा कि अगर यह सत्य है कि नक्सलबाड़ी का आन्दोलन, भूमि आन्दोलन है तो फिर इस इलाके के बड़े—बड़े कृषक आन्दोलनकारी कैसे हो सकते हैं? अगर यह भूमिहीनों का आन्दोलन है, तो बड़े-बड़े खेतिहर कम्युनिस्ट पार्टी का कार्ड दिखाकर कैसे बच जाते हैं! और दूसरों की जमीन पर कैसे कब्जा कर लेते हैं? इस भूमि आन्दोलन के नाम पर असहाय नारियों की इज्जत क्यों लूटी जाती हैं! क्यों उन पर पाशविक अत्याचार किए जाते हैं?
राय ने कहा कि मैंने विश्वनाथ मुखर्जी व हरेकृष्ण कोणार से स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि ‘लैण्ड हेंगर ने अब सेक्स हैंगर’ का रूप धारण कर लिया है। क्या आप लोग इस समस्या का समाधान करेंगे? राय के शब्दों में उपद्रवी अंचलों में हुई आम सभाओं में कुछ मंत्रियों ने अपने भाषणों में जब भी ‘जमीन की भूख’ पर जोर दिया, लोगों ने बाधाएं उपस्थित कीं। हरेकृष्ण कोणार ने एक जनसभा में जैसे ही अपने भाषण में इस आन्दोलन को ‘भूमि आन्दोलन’ कहा, कई हजार लोगों ने जबरन उन्हें आगे कुछ और बोलने से रोक दिया। लोग चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे कि हम अपनी जमीन सरकार को सौंप देते हैं, बदले में वह यहां शांति स्थापित करे, परन्तु किसी भी मंत्री ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। राय के अनुसार कोणार उस दिन जनता के हाथों बुरी तरह पिट जाते अगर सुशील घाड़ा व राय उन्हें बचा न लेते। मंत्रियों की असफलताओं ने जनसाधारण में प्रतिरोध की शक्ति भर दी। राय ने कहा कि विश्वनाथ मुखर्जी, हरेकृष्ण कोणार और ननी भट्टाचार्य तो आन्दोलन के नाम पर गुण्डागर्दी करने वालों को कोई चेतावनी देने के पक्ष में नहीं थे। परंतु बाद में सुशील घाड़ा, अमर चक्रवर्ती व देव प्रकाश राय के दबाव में उन्हें झुकना पड़ा।
प्रत्यक्ष गवाही: मंत्रियों में
राय ने बताया कि बुराजोट व सुबुल भिट्टा अंचल में भूमिहीन नेपाली कृषकों के 25-30 घर हैं। उन्हें उग्रवादी कम्युनिस्टों द्वारा लूटा गया, अपमानित किया गया और उन पर अत्याचार किए गए। विश्वनाथ मुखर्जी और हरेकृष्ण कोणार इसकी जांच करने गए। उन्होंने लौटकर उन्होंने बताया कि वहां कुछ भी नहीं हुआ है। उन्होंने उसी गांव की एक महिला पर किए गए बलात्कार और पाशविक अत्याचार के समाचार को भी गलत बताया। इस पर मुखर्जी और राय में झड़प हो गई। दूसरे दिन राय ने उस महिला, उसके पति व चार बच्चों को मंत्रियों के सामने ला खड़ा किया और मुखर्जी व कोणार की जांच की सत्यता को चुनौती दी। मुखर्जी के उस महिला से जिरह किए जाने पर राय ने कहा कि क्या आप अपराधियों की ओर से बात कर रहे हैं? विडंबना तो यह कि मंत्रियों में हाथापाई तक की नौबत आ गई।
अगर यह सत्य है कि नक्सलबाड़ी का आन्दोलन, भूमि आन्दोलन है, तो फिर इस इलाके के बड़े-बड़े कृषक आन्दोलनकारी कैसे हो सकते हैं? अगर यह भूमिहीनों का आन्दोलन है, तो बड़े-बड़े खेतिहर कम्युनिस्ट पार्टी का कार्ड दिखाकर कैसे बच जाते हैं और दूसरों की जमीन पर कैसे कब्जा कर लेते हैं? इस भूमि आन्दोलन के नाम पर नारियों की इज्जत क्यों लूटी जाती है!
मंत्री ही विद्रोही नेता हैं
राय ने मुखर्जी और कोणार पर यह आरोप लगाया कि अराजकता की सृष्टि करने वाले हमलावर कम्युनिस्टों की नृशंसता को दोनों ही मंत्रियों ने छोटे आकार में देखने की कोशिश की है। राय ने यह रहस्योद्घाटन किया कि नक्सलबाड़ी का जो आन्दोलन कृषक सभा के नाम पर हो रहा है, उसके सभापति विश्वनाथ मुखर्जी हैं और सचिव हैं हरेकृष्ण कोणार। यही कारण है कि वे आंदोलनकारियों की सीधी निन्दा नहीं कर सकते।
कम्युनिस्टों की मनमानी
राय ने कहा कि इस आंदोलन का प्रसार शिंगुली, शौरिनि, गयावाड़ी व मिरिक गांव के चायबगानों तक हो चुका है। इस पहाड़ी अंचल के इर्द-गिर्द अवकाशप्राप्त सैनिकों के निवास हैं और उग्रवादी कम्युनिस्ट उन्हें अपनी ओर खींचना चाहते हैं। उग्रवादी कम्युनिस्ट ग्रामीणों को यह कह कर डराते हैं कि वे रुपए, पैसे से उनकी मदद करें अन्यथा परिणाम बहुत बुरा होगा। वे किसी अपरिचित व्यक्ति को अपने इलाके में नहीं जाने देते। अफसोसनाक है कि वद्रोहियों के हाथ से पशु—पक्षियों भी मुक्त नहीं हैं। वे उन्हें भी अपना निशाना बनाते हैं और अपने डेरे पर ले जाते हैं। इधर विद्रोही दल के एक प्रमुख नेता बाबूराम मुण्डा ने कहा है, ‘यह आग बुझी नहीं है बल्कि और जलेगी।’ मुंडा ने यह भी कहा कि वे संयुक्त मंत्रिमंडल की बात भी नहीं मानेंगे, क्योंकि इस खिचड़ी सरकार के प्रति उनकी तनिक भी आस्था नहीं है। उन्होंने शांति मिशन को सावधान करते हुए कहा कि यदि शांति कायम करनी है तो सभी को लाल झंडे के नीचे आकर खड़ा होना होगा, अन्यथा विद्रोह की आग कभी बुझ नहीं सकती, जलती ही रहेगी।
तीसरी कम्युनिस्ट पार्टी?
दूसरी ओर वीजिंग रेडियो ने यह टिप्पणी की है कि भारत में यद्यपि कई कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं पर कोई कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है। इसका अर्थ यहां यह लगाया जा रहा है कि चीन ने भारत की वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी की निंदा की है और देश में एक नई क्रांतिकारी पार्टी बनाने की ओर संकेत किया है। वर्तमान वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी के उग्रपंथी क्रांतिकारी तत्व एम. एस. नंबूदरीपाद और ज्योति बसु जैसे लोगों के नेतृत्व के आलोचक हैं। उनका ख्याल है कि ये नेता गैर-कम्युनिस्ट ताकतों से समझौते करके और संयुक्त मंत्रिमंडल में प्रविष्ट होकर दक्षिणपंथी सुधारवादियों के शिकार बन गए हैं। इनके अनुसार वर्तमान संयुक्त सरकारों में शामिल होने व अवसरवादी समझौते करने से गृहयुद्ध के जरिए वास्तविक क्रांति में विलंब होगा। ये उग्रपंथी कम्युनिस्ट पश्चिम बंगाल व केरल में अधिक मजबूत हैं। पर यह पता नहीं चला है कि आंध्र के सुंदरैया ैसे उग्रपंथी कम्युनिस्ट या मॉडरेट वामपंथियों के बीच कोई मार्ग निकालने की कोशिश कर रहे हैं अथवा नहीं। कहा जाता है कि रणदिवे और वासव पुनैया उस नए गुट के नेता हैं जो तीसरी कम्युनिस्ट पार्टी बनाने की योजना बना रहे हैं।
कर्मचारियों को भड़काने के प्रयास
विश्वस्त सूत्र से यह भी ज्ञात हुआ है कि वामपंथी एवं दक्षिणपंथी कम्युनिस्ट पार्टी इस बात का प्रयास कर रही हैं कि आगामी 30 मार्च के भीतर ही भारत के समस्त भागों में फैले केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के आंदोलन को छेड़ा जाए। ज्ञात हुआ है कि दोनों दलों के नेताओं द्वारा इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए प्रारंभिक बातचीत प्रारंभ हो चुकी है और अनुमानत: सभी महत्वपूर्ण एवं आवश्यक बातों को लेकर दोनों दलों में समन्वय भी स्थापित हो चुका है।
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