भारत की संस्कृति की मुख्य धारा क्या है? इसको लेकर इधर काफी विवाद फैला है या फैलाया गया है। इससे दृष्टि में धुंधलापन आया है और साधारण जन दिग्भ्रमित हैं। आपके लिहाज से हमारी मुख्य सांस्कृतिक धारा कौन सी है?
इसका उत्तर देने से पहले इतिहास के कुछ तथ्यों को जानना आवश्यक है। इसके लिए पश्चिम के पूर्वाग्रस्त शोध परिणामों से बचकर ही सार्थक उत्तर की तलाश हो सकती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के सांस्कृतिक उत्खनन ने उस काल से लेकर अब तक, यानी इस तारीख तक हमारे शाश्वत संस्कृतिक प्रवाह की साक्षी दी है। पश्चिमी शोध शास्त्रियों के आर्य-अनार्य संघर्ष के सिद्धांत को तो अब उधर के विद्वान भी नकारने लगे हैं। अत: हमारी सांस्कृतिक धारा आदि काल से अब तक शाश्वत है। साथ ही, यह हिंदू धारा है। इससे भ्रम पैदा नहीं होना चाहिए। शक, हूण, नाग, मंगोल, मुगल, इस्लाम, ईसाइयत, इन सभी ने इस धारा को पुष्ट करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और हमें उसे स्वीकारना चाहिए, परंतु भारतीय सांस्कृतिक धारा को मिश्रण समझने की कदापि भूल नहीं करनी चाहिए। गंगा में अनेक नदी-नाले आकर गिरते हैं, लेकिन वे उसमें गिरकर गंगा बन जाते हैं। गंगा उनके मिलने के कारण उनका समूह नहीं कहलाती।
अपने भारत की मुख्य सांस्कृतिक धारा को हिंदू कहा है। आज हिंदू शब्द को लेकर संभ्रम है। आप हिंदू किसे स्वीकारते हैं?
हिंदू के बारे में कोई भ्रम नहीं है। हिंदू शब्द के बारे में अंग्रेज शासकों ने अवश्य गलतफहमी पैदा करने की कोशिश की जो गोरे साम्राज्यवाद की ही नीति है। हिंदू किसी संप्रदाय विशेष का द्योतक नहीं है। हिंदू अपने आप में अतिव्यापक और पूर्ण आध्यात्मिक अर्थ रखता है। जो भी इस देश में रहता है, चाहे किसी भी संप्रदाय का हो, किसी भी पूजा पद्धति को मानता हो, हिंदुस्थानी है। शर्त केवल इतनी है कि उसका इस भारत भूमि के प्रति भाव क्या है? अगर वह इसे अपनी पुण्य भूमि, मातृवत् मानता है तो वह हिंदुस्थानी है। हिंदू के लिए भारत भोग्या-भूमि नहीं, उसकी मातृभूमि है। इस देश का नाम हिंदुस्थान हिंदुओं के कारण ही तो है।
भारत में मुसलमान और ईसाई भी करोड़ों की संख्या में रहते हैं। हिंदू-मुसलमान दंगे भी प्राय: होते रहते हैं। फिर उनका कारण आप क्या समझते हैं?
इस समस्या को समझने से पहले हम यह अच्छी तरह जान लें कि भारत में रहने वाले मुसलमान या ईसाई हो गए। इन लोगों को यह जान लेना होगा कि इन्होंने पूजा-पद्धति बदली है, अपनी संस्कृति या विरासत नहीं। थोड़ी बहुत दिक्कत इसलिए है कि इस्लाम और ईसाइयत सैमेटिक संप्रदाय हैं और भारतीय स्वर लोकतांत्रिक व ‘एकम् सत् विप्रा: बहुधा वदंति’ वाला रहा है। मुल्ला-मौलवी जरूर यह चाहते हैं कि मुसलमान मुख्यधारा से कटे रहें ताकि उनका शासन जमा रहे। रही दंगों की बात यह विशुद्ध राजनीति है जिस पर आज सभी दल रोटियां सेंक रहे हैं।
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