ताजा समाचारों के अनुसार, चीन ईरान में एक बड़ा महावाणिज्य केन्द्र खड़ा करने जा रहा है। खबर है कि यह बंदरअब्बास में बनेगा। दोनों देशों के बीच 25 साल के लिए इस करार पर दस्तखत हो चुके हैं। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि करार के तहत शुरुआत किस क्षेत्र से होगी। ईरान का चीन से नजदीकी बढ़ाने का यह नया कदम भारत के लिए एक चुनौती की तरह देखा जा रहा है।
ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीराब्दोल्लहिआन ने पिछले दिनों अपनी पहली चीन यात्रा के दौरान यह जानकारी दी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भेंट के बाद उन्होंने इस करार के तहत होने वाले कामों की घोषणा की। इसके अनुसार, चीन ईरान के बंदरअब्बास में अपना एक बड़ा कारोबारी केंद्र खड़ा करने वाला है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान ने अमेरिका तथा इस्राएल के साथ अपने बढ़ते तनाव के बीच चीन की तरफ कदम बढ़ाने शुरू किए हैं। भारत के लिए इसमें चिंता की बात यह है कि ईरान में चीन के इस केन्द्र के साथ ही, चीन के पांच हजार सैनिक भी ईरान में ही तैनात रहेंगे।
चीन के साथ ईरान की बढ़ती निकटता भविष्य में भारत के लिए चुनौती की तरफ संकेत कर रही है। कारण, भारत का ईरान के चाबहार बंदरगाह पर अरबों रुपये का निवेश है, लेकिन खतरा यह है कि चीन की वहां बढ़ती दखल से कहीं उस परियोजना पर संकट न खड़ा हो।
हालांकि ईरानी विदेश मंत्री ने अभी यह नहीं बताया कि वह कौन सी परियोजना है जिस पर दोनों देशों ने काम शुरू किया है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल मार्च महीने में तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रुहानी के कुर्सी पर रहते ईरान तथा चीन द्वारा इस 'रणनीतिक करार' पर हस्ताक्षर किए थे।
इस करार में आर्थिक, सैन्य तथा सुरक्षा सहयोग पर जोर दिया गया है। ध्यान रहे, कि ईरान और चीन, दोनों ही अपने—अपने स्तरों पर अमेरिकी पाबंदियों को झेल रहे हैं। लेकिन चीन अमेरिकी पाबंदियों को दरकिनार करके ईरान से सस्ती कीमत पर तेल खरीद रहा है।
ईरान के विदेश मंत्री अपनी चीन यात्रा में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का बहुत ही गोपनीय संदेश ले गए थे। रईसी प्रशासन का वादा तो है कि ईरान एशिया पर केंद्रित विदेश नीति ही अपनाएगा। लेकिन चीन के साथ उसकी बढ़ती निकटता भविष्य में भारत के लिए चुनौती की तरफ संकेत कर रही है। कारण, भारत का ईरान के चाबहार बंदरगाह पर अरबों रुपये का निवेश है, लेकिन खतरा यह है कि चीन की वहां बढ़ती दखल से कहीं उस परियोजना पर संकट न खड़ा हो।
ईरान का चीन के साथ 25 साल का यह करार 400 अरब डॉलर का है। 2018 के मई महीने में अमेरिका के परमाणु करार से बाहर होने के बाद ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की जकड़ कसती गई है। इस कारण ईरान में पैसे की भारी किल्लत है। लेकिन चीन के साथ हुए इस करार से उसे काफी पैसा मिला है। इतना ही नहीं चीन ने ईरान से अपना तेल आयात भी बहुत बढ़ा दिया है।
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