हिन्दुओं के सामने खड़ी चुनौतियों को देखते हुए आगामी चुनाव में विश्व हिन्दू परिषद् की क्या रणनीति होगी?
हम चाहेंगे कि केन्द्र में ऐसी पार्टी सत्तारूढ़ हो, जो पूरी तरह से हिन्दू-हितों की रक्षा की गारंटी दे।
हिन्दू हितों से आपका क्या मतलब है?
प्रयाग में महाकुंभ के अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद् ने राजनीतिज्ञों को समर्थन देने के संबंध में एक दस सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया था। इनमें श्रीराम जन्मभूमि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मन्दिर आदि श्रद्धास्थानों को हिन्दू समाज को वापसी, विदेशी घुसपैठियों पर रोक, धर्मान्तरण और इस हेतु विदेशों से आ रहे धन पर कानूनी रोक, समान विशेषाधिकार हिन्दुओं को भी देना, धारा 370 और 371जी की समाप्ति, गोवंश हत्या रोकने के लिए केन्द्रीय कानून आदि सूत्र थे। जो पार्टी इन सूत्रों को मानेगी और अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगी, उसे ही समर्थन दिया जाएगा।
आप भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करेंगे?
नहीं। हम किसी के लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। किसी राजनीतिक पार्टी के मंच से कोई भी धर्माचार्य चुनावी भाषण नहीं करेगा। धर्माचार्य अपने स्तर पर या परिषद के मंच से देश की जनता से अपील करेंगे। हिन्दू जनता अपने आप तय करेगी कि कौन सी पार्टी उसके हितों की रक्षा कर सकती है।
क्या इसका अर्थ यह नहीं कि परिषद अब राजनीति में भी दखल दे रही है?
देखिए, हम हिन्दू हितों को किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। बुखारी और शहाबुद्दीन राजनीतिक नेता हैं और मुस्लिम मजहब के आधार पर राजनीति कर रहे हैं। वे देश को पुन: बांटने की साजिश रच रहे हैं। हम किसी भी कीमत पर देश को पुन: बंटने नहीं देंगे। जो इस देश में रहकर खुद को गुलाम समझते हैं वे पाकिस्तान जाएं या अरब जाएं, उनके लिए सीमाएं खुली हैं। हम राजनीति को प्रभावित नहीं कर रहे हैं पर जो राजनीति हिन्दू हितों को भी प्रभावित करती है उसे राष्ट्रीय दृष्टि देनी ही चाहिए। हम यही कर रहे हैं।
चर्चा है कि विश्व हिन्दू परिषद की मंदिर निर्माण योजना को विफल करने और चुनावी लाभ के लिए सरकार 31 अक्तूबर को चुनाव कराने जा रही है।
आपकी शंका निराधार नहीं है। यह प्रश्न विगत 27 और 28 मई को हरिद्वार में आयोजित धर्माचार्यों के विशेष सम्मेलन में चर्चा का विषय रहा। इसके लिए धर्माचार्यों ने गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में एक विशेषाधिकार समिति बनाई है। इस समिति को यह अधिकार दिया गया है कि चुनाव की तिथि और कांग्रेस की रणनीति देखते हुए वह 30 सितम्बर से रामशिलाओं के पूजन की शुरुआत और 9 नवम्बर को शिलान्यास की तिथि को बदल सकती है। समिति का निर्णय सभी संतों को मान्य होगा। संतों ने सरकार से कहा हुआ है कि वह चुनाव से पूर्व श्रीराम जन्मभूमि पर निर्णय करे। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो भीषण संघर्ष निश्चित है और इसके लिए सरकार दोषी होगी। (पाञ्चजन्य: 9 जुलाई, 1989)
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