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कूका आंदोलन पर विशेष : जब बाल गोभक्त बिशन सिंह ने अंग्रेज जिलाधीश कोवन की दाढ़ी खींच ली

WEB DESK by WEB DESK
Jan 17, 2022, 04:07 am IST
in भारत, दिल्ली
कूका आंदोलन पर जारी डाक टिकट

कूका आंदोलन पर जारी डाक टिकट

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17 जनवरी, 1872 को 12 वर्ष के बिशन सिंह के सामने उसके सद्गुरु राम सिंह कूका को जब अंग्रेज जिलाधीश कोवन ने गाली दी तो उस बालक ने कूद कर दोनों हाथों से कोवन की दाढ़ी पकड़ ली। लाख प्रयास करने के बाद भी कोवन अपनी दाढ़ी नहीं छुड़वा सका और अंत में कोवन के सिपाहियों ने उस बालक के दोनों हाथ काट दिए और फिर उसे गोली मार दी गई।

—डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन

17 जनवरी, 1872 की प्रातः ग्राम जमालपुर (मालेरकोटला, पंजाब) के मैदान में भारी भीड़ एकत्र थी। एक-एक कर 50 गोभक्त सिख वीर वहां लाए गए। उनके हाथ पीछे बंधे थे। उन्हें मृत्युदण्ड दिया जाना था। ये सब सद्गुरु रामसिंह कूका के शिष्य थे। अंग्रेज जिलाधीश कोवन ने इनके मुंह पर काला कपड़ा बांधकर पीठ पर गोली मारने का आदेश दिया; पर इन वीरों ने साफ कह दिया कि वे न तो कपड़ा बंधवाएंगे और न ही पीठ पर गोली खाएंगे। तब मैदान में एक बड़ी तोप लायी गयी। अनेक समूहों में इन वीरों को तोप के सामने खड़ा कर गोला दाग दिया जाता। गोले के दगते ही गरम मानव खून के छींटे और मांस के लोथड़े हवा में उड़ते। जनता में अंग्रेज शासन की दहशत बैठ रही थी। कोवन का उद्देश्य पूरा हो रहा था। उसकी पत्नी भी इस दृश्य का आनन्द उठा रही थी।
इस प्रकार 49 वीरों ने मृत्यु का वरण किया; पर 50वें को देखकर जनता चीख पड़ी। वह तो केवल 12 वर्ष का एक छोटा बालक बिशन सिंह था। अभी तो उसके चेहरे पर मूंछें भी नहीं आयी थीं। उसे देखकर कोवन की पत्नी का दिल भी पसीज गया। उसने अपने पति से उसे माफ कर देने को कहा। कोवन ने बिशन सिंह के सामने राम सिंह को गाली देते हुए कहा कि यदि तुम उस धूर्त का साथ छोड़ दो, तो तुम्हें माफ किया जा सकता है।
यह सुनकर बिशन सिंह क्रोध से जल उठा। उसने उछलकर कोवन की दाढ़ी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे बुरी तरह खींचने लगा। कोवन ने बहुत प्रयत्न किया; पर वह उस तेजस्वी बालक की पकड़ से अपनी दाढ़ी नहीं छुड़ा सका। इसके बाद बालक ने उसे धरती पर गिरा दिया और उसका गला दबाने लगा। यह देखकर सैनिक दौड़े और उन्होंने तलवार से उसके दोनों हाथ काट दिए। इसके बाद उसे वहीं गोली मार दी गयी। इस प्रकार 50 कूका वीर उस दिन बलिपथ पर चल दिए।
गुरु राम सिंह कूका का जन्म 1816 ई की वसन्त पंचमी को लुधियाना के भैणी ग्राम में जस्सासिंह बढ़ई के घर में हुआ था। वे शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। कुछ वर्ष वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे। फिर अपने गांव में खेती करने लगे। वे तब से अंग्रेजों का विरोध करने तथा समाज की कुरीतियों को मिटाने को कहते थे। उन्होंने सामूहिक, अन्तरजातीय और विधवा विवाह की प्रथा चलाई। उनके शिष्य ही ‘कूका’ कहलाते थे।
कूका आन्दोलन का प्रारम्भ 1857 में पंजाब के विख्यात बैसाखी पर्व (13 अप्रैल) पर भैणी साहब में हुआ। गुरु राम सिंह जी गोसंरक्षण तथा स्वदेशी के उपयोग पर बहुत बल देते थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी।
मकर संक्रान्ति मेले में मलेरकोटला से भैणी आ रहे गुरुमुख सिंह नामक एक कूका के सामने मुसलमानों ने जानबूझ कर गोहत्या की। यह जानकर कूका वीर बदला लेने को चल पड़े। उन्होंने उन गोहत्यारों पर हमला बोल दिया; पर उनकी शक्ति बहुत कम थी। दूसरी ओर से अंग्रेज पुलिस एवं फौज भी आ गयी। अनेक कूका मारे गए और 68 पकड़े गए। इनमें से 50 को 17 जनवरी को तथा शेष को अगले दिन मृत्युदण्ड दिया गया।
अंग्रेज जानते थे कि इन सबके पीछे गुरु राम सिंह कूका की ही प्रेरणा है। अतः उन्हें भी गिरफ्तार कर बर्मा की जेल में भेज दिया। 14 साल तक वहां काल—कोठरी में कठोर अत्याचार सहकर 1885 में सदगुरु राम सिंह कूका ने अपना शरीर त्याग दिया।

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