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जमीनों पर सलीबी नजर क्रॉस, कन्वर्जन और कब्जा

WEB DESK by WEB DESK
Jan 15, 2022, 01:34 pm IST
in भारत, तमिलनाडु
सांप्रदायिक अतिक्रमण

सांप्रदायिक अतिक्रमण

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तमिलनाडु में सरकारी जमीन पर मिशनरी के कब्जे की घटनाएं आम होने लगी हैं। ऐसी एक घटना तिरुवन्नामलाई में उजागर हुई है जहां चर्च ने पहाड़ी वन क्षेत्र में 5 एकड़ से अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया। आश्चर्य यह कि इन अवैध कार्यों में डीएमके के नेता अपनी सरकारी निधि का भी योगदान कर रहे हैं। इससे कन्वर्जन को बल मिला है और चर्च का राजनीति में हस्तक्षेप भी बढ़ा है

 डॉ. आनंद पाटील
भू-राजनीति की दृष्टि से प्राय: अधिक्रांत कश्मीर (पीओके), तिब्बत को चीन का हिस्सा करार देना और नेपाल को भारत का अंग न बनाना इत्यादि चर्चा के विषय होते हैं परंतु देश के भीतर सुनियोजित ढंग से हो रहे सांप्रदायिक अतिक्रमणों पर हमारी सोच प्राय: कुंद पड़ जाती है। संबंधित घटनाएं एवं सूचनाएं भी लोगों तक नहीं पहुंचतीं क्योंकि ऐसे मुद्दों पर न तो ट्विटर ट्रेंड चलाए जाते हैं, न ही मुख्य धारा का मीडिया इसका संज्ञान लेता है। देश के भीतर रीलिजनिस्ट और मजहबियों द्वारा हो रहे अतिक्रमणों को भी भू-राजनीति (जियोपॉलिटिक्स) की दृष्टि से देखने-समझने की आवश्यकता है। 

तमिलनाडु के कई जिलों में ऐसे अतिक्रमण हुए हैं, हो रहे हैं। नागापत्तनम जिले में ऐसे अनेक स्थानों पर कब्जा हो चुका है, जहां मंदिरों में पूजा-अर्चना बंद करनी पड़ी है और हिन्दू उपासक वहां जाने से डरते-कतराते हैं। ऐसे ही अतिक्रमण की एक घटना इधर तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में उजागर हुई है। तिरुवन्नामलाई के एक पर्वत पर इलयमकन्नी क्षेत्र में कैथोलिक चर्च ने वन भूमि पर कब्जा कर लिया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि अतिक्रमित भूमि पर बना यह चर्च वेल्लोर डायोकेसन कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित है। इस घटना के प्रकाश में आते ही स्थानीय लोग चिंतातुर स्वर में कह रहे हैं कि हिन्दुओं के तीर्थस्थलों को लक्ष्य बना कर सामाजिक-सांस्कृतिक ध्वंस उत्पन्न करना गंभीर चिंता का विषय है।

तिरुवन्नामलाई का इलयनकन्नी गांव तमिलनाडु वन विभाग के अंतर्गत पर्वत पर 150 फुट की ऊंचाई पर 160 एकड़ में फैला हुआ है। 1961 में इस पर्वत की चोटी पर कुछ ईसाइयों ने वन भूमि पर कब्जा किया और सबसे पहले एक क्रॉस (सलीब) स्थापित किया। धीरे-धीरे वहां के असहाय और कमजोर लोगों को कन्वर्ट करना आरंभ किया। 1982 में स्थानीय कन्वर्टेड लोगों के समर्थन से कैरमल माउंटेन मठ टेम्पल नामक चर्च का निर्माण किया। फिर, कार पार्किंग आदि जैसी सुविधाओं के लिए पुन: पांच एकड़ भूमि पर कब्जा किया। दिसंबर, 2021 में यह अतिक्रमण उजागर हुआ

कैसे उजागर हुआ अतिक्रमण?
19 दिसंबर के दिन तिरुवन्नामलाई के जिलाधीश बी. मुरुगेसन एक वृक्षारोपण समारोह हेतु जब इस पर्वत क्षेत्र में पहुंचे तो यह देख कर हतप्रभ रह गए कि पर्वत क्षेत्र का बड़ा हिस्सा समतल कर दिया गया है और उस पर अबाध गति से निर्माण कार्य चल रहा है। उन्होंने राजस्व विभाग को तुरंत इस मामले की जांच करने के आदेश दिये और जांच में स्पष्ट हुआ कि यह भूमि किसी को पट्टे पर भी नहीं दी गई है। यह बताया जाता है कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ईसाई मिशनरियां अत्यंत सक्रिय थीं। ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न ईसाई संगठनों को भारत भूमि के बड़े-बड़े हिस्से लंबी अवधि के पट्टे पर उपलब्ध करा कर ईसाइयत के प्रचार-प्रसार हेतु सुविधा प्रदान की थी। ध्यातव्य है कि इस मामले में ऐसा कोई करार नहीं है। 

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हिन्दू मुन्नानी के जिला महासचिव (तिरुवन्नामलाई) आर. अरुण कुमार ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए 20 दिसंबर 2021 को जिलाधीश को एक ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में उन्होंने ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा कि तिरुवन्नामलाई में प्रार्थना घर और चर्चों के निर्माण में तेजी आई है। निर्माण की यह गतिविधियां अवैध हैं और ये प्रशासन की अनुमति के बिना है। कई स्थानों पर घरों में प्रार्थनाघर के नाम पर चर्च चल रहे हैं। उदाहरणस्वरूप उन्होंने तिरुवन्नामलाई के गिरिवलपाड़ा में रामकृष्ण होटल के सामने चल रहे एक प्रार्थना घर का उल्लेख किया है। उनके अनुसार इसे सरकार से कोई अनुमति नहीं मिली है। यह एक घर के रूप में प्रलेखित है परंतु इसे प्रार्थनाघर में परिवर्तित कर दिया गया है। यह भी उल्लेख किया है कि मदर माउंटेन चैपल के नाम पर ईसाइयों द्वारा कई इमारतें खड़ी की जा रही हैं। ऐसे ही पोलूर से वेल्लोर की सड़क पर रेलवे स्टेशन के पास एक सरकारी पहाड़ी पर ईसाई मिशनरी ने कब्जा किया है। उन्होंने संकेत किया है कि मिशनरियों के एजेंट गरीब हिन्दू और बच्चों को कन्वर्जन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मुख्यत: प्रार्थना के माध्यम से इलाज के झूठे वादे करके रोगग्रस्त पीड़ित हिन्दुओं को लक्ष्य बना रहे हैं।

उन्होंने उल्लेख किया है कि 1961 में तिरुवन्नामलाई के एक पर्वत पर ईसाइयों ने कब्जा कर लिया था। आरंभ में केवल एक क्रॉस ही स्थापित किया गया था। अब प्रतीत होता है कि संपूर्ण पर्वत ईसाइयों ने अपने कब्जे में ले लिया है। उन्होंने जिलाधीश से निवेदन किया है कि शीघ्रातिशीघ्र संपूर्ण पर्वत वन विभाग के अधीन होना चाहिए।

कन्वर्जन का खेल

स्थानीय लोग बताते हैं कि सांप्रदायिक दृष्टि से हो रहे अतिक्रमण और कन्वर्जन से भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने को ध्वस्त किया जा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व ‘कन्याकुमारी’ की वर्तनी में बदलाव कर ‘कन्याकुमेरी’  कर दिया गया था। यह घटना स्थानीय स्तर पर ही दबा दी गई थी। कन्याकुमारी के स्थानीय बताते हैं कि चाल छोटी हो या बड़ी, उद्देश्य एक ही है, येनकेनप्रकारेण कन्वर्जन। इस क्षेत्र को जब डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आधिपत्य में कर लिया तो इसका नाम ‘कोमोरिन’ कर दिया गया था। वहीं, ब्रिटिश शासन के दौरान इसे ‘केप कोमोरिन’ कहा गया। यह इस बात का प्रमाण है कि कन्वर्जन और अतिक्रमण के केंद्र में केवल हिन्दू स्थान एवं लोग ही नहीं हैं, अपितु शहरों और नगरों के नाम भी कन्वर्ट करने के प्रयास हो रहे हैं।

तमिलनाडु में ईसाइयों की संख्या में तेजी से वृद्धि का आकलन करने के लिए केवल कन्याकुमारी को ही उदाहरण के रूप में ग्रहण करें तो ध्यातव्य है कि स्वतंत्रता के बाद से जनसंख्या में ईसाइयों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। कन्याकुमारी के साथ-साथ कांचीपुरम, तिरुवल्लूर, तिरुचिरापल्ली, तंजावुर, नागापत्तनम इत्यादि जिलों में भी इनकी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। छोटे-छोटे गांवों में पादरियों की आवाजाही के बाद संपूर्ण गांव को ही कन्वर्ट कर दिया गया है। तमिलनाडु के तिरुवारूर जिले में विगत एक दशक में कन्वर्जन की घटनाओं में अचानक बढ़ोतरी हुई है। 

स्थानीय बताते हैं कि भूमि अतिक्रमण कर पहले अपने-अपने धार्मिक कार्य आरंभ कर दिये जाते हैं। पंथनिरपेक्ष हिन्दू उन स्थानों पर आना-जाना आरंभ कर देते हैं। धीरे-धीरे धर्मोपदेशों के माध्यम से उन्हें कन्वर्ट कर दिया जाता है। आज केवल तमिलनाडु की ही बात करें तो तमिल ईसाई देश में मौजूद कुल ईसाई जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत है। यह भी कि ईसाई जनसंख्या के मामले में तमिलनाडु केरल के बाद दूसरे स्थान पर आता है। ईसाई मिशनिरियों द्वारा हो रहे अतिक्रमण की घटनाओं को समझने के क्रम में यह प्रतिशत बहुत कुछ स्पष्ट कर जाता है।
जबकि सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के डॉ. जे.के. बजाज ने 24 अक्टूबर 2015 को लिखित रीलिजन डाटा आफ सेन्सस 2011 : 1  (दि नंबर्स डू मैटर) में स्पष्ट लिखा है कि ‘डेटा से पता चलता है कि अतीत में भारत के कई राज्यों में हिन्दुओं की हिस्सेदारी में भारी कमी देखी गयी थी।’ यद्यपि दक्षिण भारत की बात की जाए तो कन्वर्जन के उपरांत भी दस्तावेजों में लोग हिन्दू धर्म का ही उल्लेख करते हैं, जबकि वे वास्तविक जीवन में कन्वर्ट हो चुके हैं। इस दृष्टि से जनगणना का डेटा भी प्रभावित होता हुआ दिखाई देता है। ऐसे प्रच्छन्न ईसाई समाज को भीतर से सांस्कृतिक रूप में खोखला करने में जुटे हुए हैं।

इस मुद्दे पर हुई चर्चा में उन्होंने बताया कि इलयनकन्नी तिरुवन्नामलाई में एक गांव है। यह तमिलनाडु वन विभाग के अंतर्गत पर्वत पर 150 फुट की ऊंचाई पर 160 एकड़ में फैला हुआ है। उस पूरे क्षेत्र में 4,500 से अधिक लोग निवास करते हैं। 1961 में इस पर्वत की चोटी पर कुछ ईसाइयों ने वन भूमि पर कब्जा किया और सबसे पहले एक क्रॉस (सलीब) स्थापित किया, जो कि उनका कार्य पद्धति है। फिर, धीरे-धीरे वहां के असहाय और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को कन्वर्ट करने का कार्य आरंभ किया। बाद में 1982 में स्थानीय कन्वर्टेड लोगों के समर्थन से कैरमल माउंटेन मठ टेम्पल नामक एक चर्च का निर्माण किया। फिर, कार पार्किंग आदि जैसी सुविधाओं के लिए पुन: पांच एकड़ भूमि पर कब्जा किया। एक माह पूर्व चेंगम के द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) विधायक एम. पी. गिरी की उपस्थिति में पर्वत की तलहटी से ऊपर तक पक्की सड़क बनाने के लिए भूमि पूजन किया गया है। ध्यान देने की बात है कि डीएमके विधायक ने इस कार्य हेतु 30 लाख रुपये की निधि आवंटित की है। यह पूर्णत: सरकारी निधि है। आर. अरुण कुमार बताते हैं कि इस पर्वत पर अब कुल मिलाकर 27 एकड़ भूमि पर ईसाई मिशनरी का कब्जा हो चुका है। यह चिंता का विषय है।

कहा जा रहा है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए जिलाधीश द्वारा बेदखली नोटिस जारी कर दिया गया है। यद्यपि अतिक्रमण का मामला सार्वजनिक हो चुका है, तथापि बेदखली नोटिस अभी सार्वजनिक नहीं हो पायी है। इस पूरे मामले को उजागर करने में तमिलनाडु में हिंदू पक्षधर संगठन हिन्दू मुन्नानी की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई दे रही है।

मंदिरों की भूमि की लूट
तमिलनाडु में मंदिरों की भूमि के संबंध में 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु में अतिक्रमण केवल मंदिर भूमि और भवनों तक सीमित नहीं है, अपितु संपूर्ण मंदिर ही अतिक्रमित हो चुके हैं। तंजावुर में थोप्पुल पिल्लयार मार्ग पर स्थित शिव मंदिर को एक निवास में परिवर्तित कर दिया गया है। तंजावुर के बाहरी क्षेत्र में गणेश जी के एक मंदिर पर अतिक्रमण किया गया है। 

तमिलनाडु में मंदिरों से संबंधित भूसंपत्तियों के लिए काम करने वाले संगठन टेम्पल वर्शिपर्स सोसाइटी के अध्यक्ष टी. आर. रमेश बताते हैं कि तिरुवन्नमलाई मंदिर की भूसंपत्तियों पर बहुत सारे अतिक्रमण हैं। संबंधित मामलों पर न्यायालय में मुकदमे चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि ‘केवल तिरुवन्नामलाई मंदिर की लगभग 90 प्रतिशत भूसंपत्तियां पिछले 30-40 वर्षों से अतिक्रमित हैं और सरकार ने उन मामलों पर अब तक कुछ नहीं किया है।’ ध्यातव्य है कि पुराने मामले लंबित हैं और नए अतिक्रमणों का अबाध सिलसिला जारी है। न्यायालयीन प्रक्रिया और पद्धति को दृष्टिगत रखते हुए विचारणीय है कि क्या कभी उन मामलों पर भी सुनवाई होगी? 

कन्वर्जन भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को क्षति पहुंचा रहा है। दक्षिण भारत में, विशेषकर तमिलनाडु में, केवल मिशनरी एवं मजहबी ही अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, अपितु हिन्दू विरोधी सरकारें भी मंदिरों की भूमि अवैध रूप से सरकारी प्रकल्पों/ संस्थानों को आवंटित कर रही है। डीएमके के शासन काल में मंदिरों की भूमि शैक्षिक संस्थाओं सहित अनेक सरकारी संस्थाओं को आवंटित की जाती रही है। बहुत अतीत में न जाते हुए केवल पिछले दो दशकों में डीएमके के शासन काल में स्थापित संस्थानों को आवंटित भूमियों का आकलन करें तो स्पष्ट होता है कि बहुतांश मंदिरों की ही भूमि है। इससे चर्च की सत्ता और अल्पसंख्यकों को बल मिलता है और वोट बैंक मजबूत होता है। ऐसे अनेकानेक मामलों में टेम्पल वर्शिपर्स सोसाइटी सरकार से मंदिर भूमि वापस लेने के लिए संघर्ष कर रही है परंतु जब पूरी व्यवस्था को ही कन्वर्ट कर दिया गया हो तो स्थिति की गंभीरता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

मिशनरी की राजनीति में घुसपैठ
हिन्दू मुन्नानी के संस्थापक राम गोपालन ने 2015 में एक पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में द्रविड़ पार्टी और कम्युनिस्टों पर निशाना साधते हुए कहा था कि ‘कौन कहता है कि तमिलनाडु पंथनिरपेक्ष राज्य है? यह हिन्दू विरोधी राज्य है। वोट बैंक की राजनीति के कारण ही इनके दोहरे मापदंड और छलपूर्ण कृत्य हैं। इन्होंने व्यवस्था को भ्रष्ट कर दिया है।’ 

 

तिरुवन्नामलाई का धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व

तिरुवन्नामलाई तमिलनाडु के उत्तरी भाग में स्थित एक जिला है। इस नगर की गणना प्राचीन भारतीय विरासत के रूप में तथा हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक-आध्यात्मिक स्थानों में की जाती है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि यहां देवाधिदेव विष्णु के 40 और महादेव के 63 मंदिर हैं। मंदिरों की संख्या से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि तिरुवन्नामलाई हिन्दुओं के लिए धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण स्थान है। तिरुवन्नामलाई में ही पौराणिक कथाओं में वर्णित अरुणाचल पर्वत (814 मीटर ऊंचाई) है। इसकी गणना दक्षिण भारत में स्थित पांच प्रमुख शैव स्थानों में होती है। अरुणाचलम पर्वत के पौराणिक महत्व को वर्णित करने वाले आख्यानों से भी इसकी महत्ता स्वत: स्पष्ट होती है। शिव मंदिर अरुणाचलेश्वर इसी पर्वत की तलहटी में स्थित है। प्राचीन तमिल साहित्य में इस पर्वत को अन्नामलाई के साथ-साथ अरुणागिरी, अरुणाचलम, अरुणाई, सोनगिरी और सोनाचलम नामों से भी अभिहित किया गया है। तमिल परंपरा में इसे ‘ज्ञान प्रकाश से दीप्त पर्वत’ माना गया है। ध्यातव्य है कि 19वीं शताब्दी में विश्व विख्यात रमण महर्षि ने इसी भूमि को अपनी तपोभूमि के रूप में चुना था। वर्तमान में पौराणिक अनुश्रुतियों के अतिरिक्त तिरुवन्नामलाई अरुणाचलम पर्वत, प्राचीन अन्नामलैयार शिव मंदिर और रमण महर्षि आश्रम के कारण प्रसिद्ध है।

भू-राजनीति में भूमि अतिक्रमण और कन्वर्जन से सत्ता में हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाती है। चर्च का इतना एकाधिपत्य है कि चर्च जिसे कहेगा, अनुयायी उसी को मतदान करते हैं। अत: राजनेता उनके समर्थन के लिए लालायित रहते हैं। स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों (2019) से पूर्व तमिलनाडु के चर्चों ने डीएमके को समर्थन देने की घोषणा अकारण ही नहीं की थी। डीएमके के शासन काल में मंदिरों की भूमि लूट के रूप में प्रयुक्त होती रही है। 

हिन्दुत्व में विश्वास रखने वाले स्थानीय बताते हैं कि डीएमके का कन्वर्जन को खुला समर्थन है। अन्यथा चर्चों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में इन नेताओं का खुल कर जाना और चर्च निर्माण संबंधी गतिविधियों हेतु सरकारी निधि प्रदान करना संयोग नहीं कहा जा सकता। तिरुवन्नामलाई के मामले में भी डीएमके विधायक ने सरकारी निधि का आवंटन किया है।

ऐसे अतिक्रमणों से ज्ञात होता है कि कन्वर्जन का एजेंडा लेकर चलने वाले प्राय: हिन्दुओं के तीर्थस्थानों को लक्ष्य बना कर अपने पैर पसार रहे हैं। कन्याकुमारी में प्रमुख स्थानों पर स्थापित सलीब और चर्च इस बात के प्रमाण कहे जा सकते हैं। रामेश्वरम जैसी हिन्दू आस्था भूमि पर भी तीन-तीन चर्च इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हिन्दुओं के तीर्थस्थानों पर सुनियोजित अतिक्रमण एवं कन्वर्जन से सांस्कृतिक हमले किए जा रहे हैं।                  

 

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