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जड़ से जोड़ने का झरोखा

अरुण कुमार सिंह by अरुण कुमार सिंह
Jan 10, 2022, 06:38 pm IST
in भारत, छत्तीसगढ़
समिति द्वारा संचालित एक प्रशिक्षण केंद्र में कथाकार का प्रशिक्षण लेतीं बहनें

समिति द्वारा संचालित एक प्रशिक्षण केंद्र में कथाकार का प्रशिक्षण लेतीं बहनें

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इस समय एकल श्रीहरि कथा सत्संग समिति द्वारा 72,000 संस्कार केंद्र और 20 कथाकार प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं। इन केंद्रों से निकले युवा सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और संस्कृति की धारा बहा रहे हैं  

छत्तीसगढ़ में जशपुर जिले की दुलदुला तहसील में एक गांव है पंडरी। यहां अंजना भूपति नामक एक कथावाचिका प्रतिदिन धार्मिक प्रवचन करती हैं। वह भी तब जब गांव वालों के पास समय होता है। इसके साथ ही वे लोगों को स्वच्छता के बारे में बताती हैं। यह भी कहती हैं कि हर हालत में बच्चों को पढ़ाना है। वे अन्य कार्यकर्ताओं के साथ गांव के लोगों को जैविक खेती के लिए भी प्रेरित करती हैं। इन सबका प्रभाव यह हो रहा है कि गांव के लोगों में हर तरह की जागृति आ रही है। लोग अपनी संस्कृति, परंपरा के प्रति भी सजग हो रहे हैं। अब कोई उन्हें अपनी परंपरा से दूर नहीं कर पा रहा।

अंजना भूपति उन कथाकारों में से एक हैं, जिन्हें एकल श्रीहरि कथा सत्संग समिति ने प्रशिक्षण देकर तैयार किया है। आज इनकी तरह 1,000 से अधिक कथाकार कच्छ से लेकर कछार तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के सैकड़ों सुदूर गांवों में कार्य कर रहे हैं। इन सबके पीछे है एकल श्रीहरि कथा सत्संग समिति।

उल्लेखनीय है कि यह समिति एकल अभियान की पूरक संस्था है। कह सकते हैं कि एकल विद्यालय यदि शिक्षा को समर्पित है, तो संस्कार पक्ष की जननी है एकल श्रीहरि कथा सत्संग समिति। समिति की स्थापना 1996 में हुई थी। इन दिनों समिति अपनी रजत जयंती मना रही है। समिति का मुख्य उद्देश्य है एकल अभियान की पंचमुखी शिक्षा में से एक मूल्य आधारित संस्कार शिक्षा द्वारा सुदूर और पर्वतीय क्षेत्रों में बसे लोगों का सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक उत्थान।

इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समिति द्वारा पूरे देश में 72,000 संस्कार केद्र भी चलाए जा रहे हैं। इन केंद्रों को चलाने के साथ-साथ समिति ग्रामीण क्षेत्र के सभी वर्ग के युवाओं को कथाकार का प्रशिक्षण देती है। श्रीहरि कथा सत्संग समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती मीरा अग्रवाल ने बताया कि अब तक समिति ने पूरे देश में 1,100 कथाकारों को तैयार किया है। इस समय लगभग 600 युवा कथाकार का प्रशिक्षण ले रहे हैं। यानी 2022 में ये सभी युवा कथाकार बन जाएंगे। समिति ने कुछ वर्ष में ही इन कथाकारों की संख्या 10,000 करने का लक्ष्य तय किया है। उन्होंने यह भी बताया कि इस समय कथाकारों को प्रशिक्षित करने के लिए अयोध्या, वृंदावन, नवद्वीप, झारसागुड़ा, डिब्रूगढ़, गुवाहाटी, मधुबनी, देवघर, सिलीगुड़ी, राजनांदगांव, हरिद्वार, नासिक, नागपुर, मंडला, नाडियाद, जम्मू और जयपुर में 20 कथाकार प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं। इनमें प्रशिक्षित युवा अपने-अपने क्षेत्र में ही धर्म जागरण के साथ-साथ व्यसनमुक्ति, सामाजिक समरसता, स्वच्छता आदि के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। यही नहीं, ये युवा ग्रामोत्थान के विभिन्न प्रकल्पों, जैसे- कंप्यूटर, जैविक खेती, लोगों को सूचना का अधिकार आदि की जानकारी दे रहे हैं।


अंजना भूपति उन कथाकारों में से एक हैं, जिन्हें एकल श्रीहरि कथा सत्संग समिति ने प्रशिक्षण देकर तैयार किया है। आज इनकी तरह 1,000 से अधिक कथाकार कच्छ से लेकर कछार तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के सैकड़ों सुदूर गांवों में कार्य कर रहे हैं।


 

विशेष बात यह है कि इन कथाकारों/आचार्यों के निर्माण के लिए समिति द्वारा वनवासी ग्रामीण अंचलों से ही बंधु-भगिनियों का चयन किया जाता है। इसके बाद उन्हें समिति के देशभर में स्थापित प्रशिक्षण केंद्रों में पूरे अनुशासन, संयम और नियम के अनुसार नौ महीने तक प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के बाद ये कथाकार रामायण, श्रीमद्भागवत कथा और शिवकथा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सांस्कृतिक अलख जगाते हैं। इसके अलावा ये कथाकार ग्राम-ग्राम में जाकर धर्म सभाओं का आयोजन और सामूहिक व्यसन-मुक्ति का संकल्प करवाते हैं

एकल श्रीहरि की ही एक अन्य संस्कार आधारित योजना है श्रीहरि रथ योजना। इस योजना ने वनवासी क्षेत्रों में अद्भुत चमत्कार किया है। इसके अंतर्गत एक मिनी ट्रक को रथ का स्वरूप दिया जाता है, जिसमें छोटा-सा मंदिर होता है। यह रथ गांव-गांव घूमता है। रथ के मंदिर में भगवान की पूजा-अर्चना होती है और सायंकाल को उसी रथ पर स्क्रीन लगाकर रामायण, महाभारत तथा अन्य संस्कारप्रद फिल्में दिखाई जाती हैं। इन सबका लोगों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ रहा है। इस कारण लोगों में सामाजिक समरसता तथा नई जागृति आ रही है। लोग न केवल अपने संस्कारों के प्रति जागरूक हो रहे हैं, बल्कि कन्वर्जन करने वाले तत्व कमजोर हो रहे हैं।

संस्कार पक्ष के साथ ही गोमाता की रक्षा और उसके पोषण को लेकर भी समिति कार्य कर रही है। फरवरी, 2021 में वृंदावन में साधु-संतों की उपस्थिति में गो-ग्राम योजना की रूपरेखा तैयार की गई। इसके बाद पश्चिम बंगाल के नादिया अंचल से इसकी शुरुआत की गई। योजना के अंतर्गत दूध न देने वाली गाय को एकल गांव के किसान परिवार में देकर गोबर और गोमूत्र से निर्मित उत्पादों द्वारा उस परिवार को स्वावलंबी बनाने का प्रण लिया गया है। योजना के प्रथम चरण में 8,000 गोमाता को 8,000 किसान परिवारों में पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक पश्चिम बंगाल और झारखंड के कई गांवों में 250 गायें दी जा चुकी हैं।  

एक गांव में किसान को गाय सौंपते समिति के कार्यकर्ता

इसके अतिरिक्त समिति की देखरेख में वनयात्राओं का आयोजन किया जाता है। नगर और जनजातीय क्षेत्रों के बीच सद्भावपूर्ण वातावरण के निर्माण तथा प्रकृति के संरक्षण में लगे वनवासियों के जीवन को पास से देखने, जानने, समझने तथा उनकी समस्याओं के निराकरण हेतु अपना योगदान देने की मानसिकता को तैयार करने के लिए वनयात्राओं का आयोजन किया जाता है। इन वनयात्राओं का नगरीय समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ा है और वह ग्रामीण समाज से एकात्म हो गया है।

अपनी स्थापना के बाद से ही समिति ने जनजातीय समाज को एकजुट करने, उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने और उन्हें संस्कारित करने का जो बीड़ा उठाया है वह अनवरत चल रहा है। 25 वर्ष की इस यात्रा में समिति को प्रभु श्रीराम का असीम आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। इससे उत्साहित होकर समिति ने 2030 तक भारत के 4,00,000 जनजातीय ग्रामों में संस्कार केंद्रों की स्थापना का लक्ष्य रखा है।
उम्मीद है कि समिति आने वाले कुछ वर्षों में जनजातीय क्षेत्रों में ऐसा माहौल बना पाएगी, जहां भेदभाव, कुसंस्कार, अशिक्षा और भारत-विरोधियों के लिए कोई जगह नहीं होगी। 

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