डॉ. आनंद पाटील
दक्षिण भारत के हिन्दुओं की व्यथा-कथा से राष्ट्र अभी पूर्णत: परिचित नहीं है। यहां अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, मजहबी उन्माद और हिन्दुओं के कन्वर्जन की समस्या अत्यंत भयावह है। विशेष रूप से केरल में तुष्टीकरण के अनेकानेक रूप हैं। तथाकथित अल्पसंख्यकों (मजहबी-मिशनरी) को संतुष्ट करने के लिए किसी-न-किसी रूप में हिन्दुओं को उत्पीड़न का लक्ष्य बनाना साधारण बात है। हिन्दू नेताओं के निरंतर संघर्ष और वामपंथी सरकार की नाटकीय निष्क्रियता इसके प्रमाण हैं।
अनेक प्रसंगों में यह उद्घाटित होता रहा है कि केरल में हिन्दुओं के हितों की उपेक्षा की जाती है। उन्हें प्राप्त/ प्रदत्त लाभों में या तो कटौती की जाती है, या समाप्त ही कर दिया जाता है। तिस पर यदि कोई हिन्दू अपने धर्म में ‘निर्विवाद आस्था’ रखने वाला हो (क्योंकि अनास्थावादी हिन्दू भी हैं), तो उसे हतोत्साहित, प्रताड़ित, उत्पीड़ित एवं दंडित किया जाता है। एक ऐसा ही अजीबोगरीब आदेश 30 नवंबर, 2021 को पलक्कड (केरल) के जिला दमकल अधिकारी द्वारा अपने एक अग्निशमन एवं बचाव अधिकारी (एफआरओ) को जारी किया गया था। पीड़ित एफआरओ अयप्पा स्वामी (सबरीमाला) के भक्त हैं। उपरोक्त आदेश अयप्पा स्वामी के भक्तों को न केवल हत्सोत्साहित करने वाला, अपितु दंडित करने वाला ही प्रतीत होता है। केरलवासी हिन्दुओं ने इस आदेश को प्रतीकात्मक दृष्टि से ‘दमनकारी’ और बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन माना है।
व्रत रखने पर भत्ता काटने के आदेश
शोर्णुर (केरल) के अग्निशमन एवं बचाव अधिकारी ने दमकल विभाग द्वारा दमकलकर्मियों के लिए नियत आचार संहिता का पालन करते हुए अयप्पा स्वामी के व्रत के पालनार्थ निर्धारित अवधि के लिए केश और दाढ़ी न काटने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने निवेदन में स्पष्ट किया कि वे इस अवधि के दौरान काम पर (आॅन ड्यूटी) रहेंगे। निवेदन को दृष्टिगत रखते हुए विभाग ने उन्हें काम पर तो मान लिया परंतु उन्हें मिलने वाला स्मार्ट एवं विशेष भत्ता रद्द कर दिया। उल्लेखनीय है कि सबरीमाला अयप्पा स्वामी का व्रत रखने वाले कर्मचारी अपने उच्च अधिकारियों को ठीक उसी प्रकार सूचित करते हैं, जैसे हज जाने वाले सरकारी कर्मचारी सूचित करते हैं। परंतु, उल्लेखनीय है कि इस प्रकार वेतन में कटौती का कभी कोई आदेश जारी नहीं हुआ।
क्या है मंडला पूजा व्रतअयप्पा स्वामी के भक्त मकर संक्रांति तक 41 दिनों का कठोर ‘मंडला पूजा व्रत’ रखते हैं। सबरीमाला जाकर ही मकर संक्रांति के दिन अयप्पा स्वामी के रुद्र्राभिषेक तथा देव-ज्योति दर्शन के उपरांत उनका यह व्रत पूर्ण होता है। इस अवधि में वे संन्यस्त एवं ब्रह्मचारी की भांति संतमय जीवन व्यतीत करते हैं। केवल काले वस्त्र धारण करते हैं; दाढ़ी, केश, नाखून इत्यादि नहीं काटते; जूते-चप्पल नहीं पहनते; अपने ही हाथों से बना हुआ शुद्ध शाकाहारी अन्न ग्रहण करते हैं। कुल मिलाकर वे अपने जीवन में घर कर चुकीं सभी कृत्रिमताओं से बचते हैं और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का यत्न करते हैं। इस प्रक्रिया में वे सभी सुखोपभोगों का त्याग कर देते हैं। बहुतांश अयप्पा भक्त अपने निवासस्थान से सबरीमाला तक पैदल ही यात्रा करते हैं। यह यात्रा अत्यंत कष्टप्रद होती है। हिन्दुओं में इस व्रत को कठोरतम व्रतों में गिना जाता है।
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ध्यातव्य है कि पुलिस तथा दमकल विभाग के कर्मचारियों को स्मार्ट और विशेष भत्ता मिलता है, जिसमें वर्दी के साथ-साथ काम की दृष्टि से आवश्यक रखरखाव सम्मिलित होता है। दमकल विभाग ने अपने कर्मचारी का काम पर रहना तो स्वीकार किया, परंतु स्मार्ट भत्ते सहित विशेष भत्ता रद्द कर दिया। तर्क यह दिया कि दमकल विभाग के कर्मचारी केश और दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते। स्मार्ट भत्ता उसी के लिए दिया जाता है। ऐसे में विभाग ने कर्मचारी का केश और दाढ़ी न काटने वाला निवेदन तो मान लिया, परंतु भत्ता रद्द कर दिया। यह आदेश इस कारण विवादास्पद है कि सबरीमाला क्षेत्र एवं परिसर में कार्यरत सभी सुरक्षाकर्मियों को इस बात की अनुमति है कि वे अयप्पा भक्तों की तरह दाढ़ी एवं केश न काटें तथा जूते-चप्पल न पहनें।
आदेश के पीछे नीयत
ऐसे में इस प्रकार का विचित्र आदेश हिन्दू कर्मचारियों सहित सामान्य हिन्दुओं में आशंका का कारण बना हुआ है। कुछ लोग मानते हैं कि इस आदेश को अयप्पा स्वामी के व्रतधारी हिन्दू कर्मचारियों पर लागू करने की दृष्टि से एक ‘नूतन प्रयोग’ के रूप में जारी किया गया था। यदि इसका प्रतिकार न होता, तो इसे सभी व्रतधारी कर्मचारियों पर अलग-अलग रूप में लागू किया जाता। अत: केरलवासी हिन्दू इसकी आड़ में किसी षड्यंत्र के होने की आशंका देख रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सिख संप्रदाय में कृपाण रखने की अनुमति है और मुस्लिमों के लिए सरकारी कार्यालयों में इबादत के लिए विशेष स्थान आवंटित किए जाते हैं। ऐसे में, हिन्दुओं की आस्था पर इस प्रकार के आघात को मूलभूत अधिकारों का हनन ही कहा जा सकता है।
मित्रता का झांसा और सलीब!केरल की एलडीएफ एवं यूडीएफ सरकारें हिन्दुओं की आस्था पर आघात करने का हरसंभव प्रयास करती रही हैं। जब हिन्दुओं की आस्था अमिट एवं अडिग रही, तो सबरीमाला में वावर स्वामी दरगाह का प्रचार-प्रसार कर श्री अयप्पा स्वामी एवं वावर स्वामी की मित्रता का मिथ रचा गया और लोगों को भावात्मक दृष्टि से गुमराह करने का प्रयास किया गया। चूंकि हिन्दू जन्मजात पंथनिरपेक्ष रहे हैं, इसलिए मित्रता के इस मिथ को ‘सांप्रदायिक सद्भाव’ के रूप में देखा जाता रहा है। परंतु हिन्दुओं के कोमल स्वभाव को देखते हुए इवैन्जेलिक (इंजील) ईसाई समूहों ने सबरीमाला तीर्थ की पहाड़ियों पर अतिक्रमण कर वहां अनगिनत क्रॉस लगा दिए हैं। इस संदर्भ में पूंकावनम मंदिर भूमि पर कब्जे की घटना को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। अनेकानेक हिन्दू तीर्थस्थानों पर मजहबी और रीलिजनिस्ट अतिक्रमण करने का धृष्टतापूर्ण कार्य सतत कर रहे हैं। यह सब हिन्दू विरोधी सरकारों की शह पर घटित हो रहा है।
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उल्लेखनीय है कि स्मार्ट भत्ता सहित विशेष भत्ता रद्द हो जाने से कर्मचारियों को केवल मूल वेतन ही मिल सकेगा। उदाहरण के लिए राज्य सरकार के कर्मचारियों का प्रारंभिक वेतनमान रु. 50,200/- है, जबकि मूल वेतन रु. 23,000/- है। यदि स्मार्ट भत्ता सहित विशेष भत्ता काट लिया जाता है, तो कर्मचारियों के हाथों में केवल रु. 27,200/- ही पहुंचेंगे। ऐसे में प्रश्न उपस्थित होता है कि मजदूरों के हितों (कर्मचारी हित) की दुहाई देने वाली वामपंथी सरकार क्या कर्मचारियों पर कुठाराघात नहीं कर रही है? उसमें भी विशेष रूप से हिन्दुओं को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
केरल निवासी हिन्दुओं, यहां तक कि वामपंथ के झंडाबरदार हिन्दुओं ने इसे उन्हें हतोत्साहित करने वाले तथा एक तरह से दंडित करने वाले आदेश के रूप में देखा है। अल्पसंख्यकपरस्त सरकार द्वारा हिन्दुओं के जीवन को निरंतर तनावग्रस्त बनाने के उद्देश्य से रचे-गढ़े जा रहे षड्यंत्र के रूप में देखते हुए इस आदेश को औरंगजेब द्वारा हिन्दू बने रहने के लिए लगाए गए ‘जजिÞया कर’ के रूप में ही लिया है। केरल के कुछ हिन्दू यह भी प्रश्न कर रहे हैं कि क्या अल्पसंख्यकों के लिए इस प्रकार के उद्दंड आदेशों की कल्पना की जा सकती है? स्मरणीय है कि दक्षिण में तथाकथित अल्पसंख्यकों की सुविधा और उनके त्योहारों की दृष्टि से ही सरकारी छुट्टियां निर्धारित की जाती हैं। तुष्टीकरण की नीति में छुट्टियों वाला यह पक्ष भी उल्लेखनीय है। दक्षिण में, विशेषत: केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में हिन्दुओं की भावनाओं की प्राय: उपेक्षा की जाती है।
हिंदू आस्था को चुनौती देने की धृष्टताभारतीय भक्ति परंपरा में भक्ति का उद्भव दक्षिण में बताया जाता है -‘भक्ति द्राविडं ऊपजी’। दक्षिण में भव्य एवं दिव्य मंदिर हैं। हिन्दुओं के लिए सभी मंदिर और देवी-देवता आस्था के प्रतीक हैं। सैद्धांतिक दृष्टि से धर्म एवं आस्था का विरोधी वामपंथ हर जगह अलग तरह से अपना रूप बदल लेता है। उसका बहुरूपियापन स्पष्ट उजागर है। पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासन के दौरान भी दुर्गा पूजा पर कभी रोक नहीं लगी। यह देखा जा सकता है कि जैसे-जैसे हिन्दू संख्या में कम या आस्था की दृष्टि से दुर्बल होते जाते हैं, शैतानी ताकतें अपना रंग बदलने लगती हैं। पश्चिम बंगाल में वैचारिक दृष्टि से वामपंथ के निकट पड़ने वाली ममता बैनर्जी की सरकार ने हाल ही में दुर्गा पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया था। केरल में हिन्दू श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से उत्पन्न किए गए सबरीमाला विवाद में महिलाओं के प्रवेश वाले विवाद को विस्मृत नहीं किया जा सकता। वह पूरी तरह से राज्य प्रायोजित आंदोलन था। स्मरणीय है कि सबरीमाला में अय्यप्पा स्वामी मंदिर हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है। अत: सरकार सबरीमाला अयप्पा स्वामी के भक्तों को हतोत्साहित कर हिन्दुओं को एक तरह से चुनौती देने की धृष्टता कर रही है।
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हिन्दू एकजुटता और प्रतिकार ही समाधान
मृदु स्वभाव के लोगों को प्राय: दबाया और नेस्तनाबूद कर दिया जाता है। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है। यह भी कि हिन्दुस्थान की सरहदें सदियों से सिकुड़ती ही रही हैं। अत: सभ्यता के विकास में सामना, प्रतिरोध एवं प्रतिकार आवश्यक तत्व हो जाते हैं। ब्रिटिश इतिहासकार अर्नोल्ड टॉयन्बी ने स्पष्ट किया है कि जब भी कोई सभ्यता ‘चुनौतियों’ का सामना करने में असमर्थ होती है, तो उसमें ‘गिरावट’ आती है। ‘चुनौतियों का सामना करना’ अर्थात् ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ को अंगीकार करना।
यद्यपि उपरोक्त ‘अजीबोगरीब आदेश’ जिला दमकल अधिकारी द्वारा जारी किया गया था, तथापि सुजीत कुमार जे.एस., प्रादेशिक दमकल अधिकारी (पलक्कड) द्वारा 9 दिसंबर, 2021 को उसे गलत करार देते हुए निरस्त कर दिया गया। केरलवासी हिन्दू बताते हैं कि बड़े स्तर पर मंत्रणा के बाद ही इस आदेश का निरसन हुआ है। इस आदेश को हिन्दुओं को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से किए गए ‘एक प्रयोग’ के रूप में देखा जा रहा है। संयोग से राज्य का गृह विभाग मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के पास है। अत: अनेक स्तरों पर तथा संचार माध्यमों में इस आदेश का विरोध होने के उपरांत ही इसे निरस्त किया गया है। स्थानीय समाचार पत्र तथा वेब-पत्रिकाओं ने इस आदेश की निंदा करते हुए पूरी घटना को जनजागरणार्थ प्रस्तुत किया था। यह घटना स्पष्ट दर्शाती है कि जब तक हिन्दू अपने हितों और धर्म (आस्था) के प्रति जाग्रत नहीं होंगे, उन्हें हतोत्साहित करने वाले ऐसे आदेश तथा कार्रवाइयां होती रहेंगी। दृढ़संकल्पित तथा एकजुट होकर प्रतिकार से ही स्थितियां हिन्दुओं के अनुकूल हो सकती हैं। अर्नोल्ड टॉयन्बी का उक्त संदर्भ प्रसंगावधान से अविस्मरणीय है।
इन दिनों ‘जीरो टॉलरेन्स फॉर एन्टीसेमिटिज्म’, ‘फाइट अगेन्स्ट एन्टीसेमिटिज्म’ का खूब बोलबाला है। सारे यहूदी एकजुट होकर यहूदी विरोधी भावना का प्रतिकार कर रहे हैं। हिन्दुओं को यहूदियों के इस जागृति अभियान से निश्चय ही सीख लेने की आवश्यकता है। विशेष रूप में, दक्षिण भारत में हिन्दुओं को अत्यंत सजगता के साथ अभियान खड़ा करने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
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