महाराष्ट्र में सैकड़ों अनाथ बच्चों के जीवन को संवारने वालीं सामाजिक कार्यकर्ता सिंधु ताई सपकाळ का 4 जनवरी को पुणे में हृदयाघात से निधन हो गया। 73 वर्षीया सिंधु ताई लंबे समय से बीमार थीं और उनकी चिकित्सा पुणे के एक अस्पताल में चल रही थी। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी ने दु:ख प्रकट किया और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की। सिंधु ताई ने 1,400 अनाथ बच्चों को गोद लेकर उनके जीवन को सुधारा। उन्होंने उन बच्चों की उसी तरह देखभाल की, जिस तरह एक मां बपने बच्चों की करती है। इस कारण उन्हें अनाथ बच्चों की ‘मां’ कहा जाता था।
कभी रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर गुजारा करने वाली सिंधु ताई सपकाळ ने करोड़ों महिलाओं को बताया कि उन्हें अपने जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए। यदि जीवन में अंधेरा है, तो एक दिन उजाला भी होगा। इसी सोच के साथ उन्होंने जीवन में आने वाली हर आपदा का सामना किया। इसके साथ ही उन्होंने समाज सेवा का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि उनकी चर्चा देश-विदेश में होने लगी। तभी लोगों को पता चला कि सिंधु ताई सपकाळ नामक कोई महिला भारत में समाज सेवा करती है। इसी समाज सेवा के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नवंबर, 2021 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था।
सिंधु ताई का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक सामान्य गोपालक परिवार में 14 नवंबर, 1948 को हुआ था। रूढ़िवादी परिवार होने के कारण सिंधुताई को चौथी कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके बाद 10 साल की आयु में उनका विवाह 20 वर्ष के एक युवा से कर दिया गया। विवाह के बाद वह आगे भी पढ़ना चाहती थीं, लेकिन ससुराल वालों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। इसके बाद भी उन्होंने पढ़ने की जिद की तो उन्हें गर्भावस्था में ससुराल से बाहर कर दिया गया। उनके साथ दुर्भाग्य यह रहा कि उनका साथ उनके मायके वालों ने भी नहीं दिया।
इसके बाद वह दर-दर भटकती रहीं। भीख मांग कर गुजारा करने लगीं। उसी अवस्था में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया। उन्हीं दिनों उन्होंने अनाथ बच्चों के दर्द को समीप से देखा और उन्होंने उन बच्चों की सेवा करने का व्रत ले लिया। इसके बाद वे अनाथ बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था करने लगीं। इसके लिए उन्होंने दिन-रात भीख मांगी। जब समाज ने उनके संघर्ष को देखा तो लोग उनकी मदद करने आगे आए। इसके बाद उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनवाया। इसी आश्रम में उन्होंने सैकड़ों बच्चों का जीवन संवारा। उनके इस कार्य के लिए उन्हें 700 से अधिक सम्मान मिले। सम्मानस्वरूप उन्हें जो भी राशि मिली उसे उन्होंने अनाथ बच्चों पर खर्च कर दिया। इस कारण उनका बहुत बड़ा ‘परिवार’ है। उनके परिवार में 150 से अधिक बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। उन्हें डी वाई इंस्टिटूट आफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की ओर से डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है। उनके जीवन पर मराठी फिल्म ‘मी सिंधुताई सपकाळ’ बनी है, जो 2010 में प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्मोत्सव में भी दिखाया जा चुका है। स्व. सिंधु ताई सपकाळ को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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