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ममता की मनमानी, राज्यपाल से रार

by WEB DESK
Jan 10, 2022, 08:30 am IST
in भारत, पश्चिम बंगाल
राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

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ममता बनर्जी नीत पश्चिम बंगाल सरकार मनमाना रवैया अपनाते हुए न सिर्फ संवैधानिक प्रक्रियाओं की अवहेलना करते हुए कार्य कर रही है बल्कि संवैधानिक पदों की गरिमा को गिराने भी जुटी है। राज्य सरकार ने हाल ही में प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की अवैध तरीके से नियुक्ति कर दी जिस पर राज्यपाल द्वारा सवाल उठाने पर राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री ने राज्यपाल की शक्तियों को ही छीनने की बात कही

डॉ. अम्बा शंकर बाजपेयी
संविधान और कानून के शासन के प्रश्न पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच तनातनी चरम पर है। राज्यपाल ने कुलपतियों की अवैध नियुक्ति को लेकर उच्च शिक्षा मंत्री ब्रत्या बसु से जब जवाब तलब किया तो उन्होंने राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को ही धता बताते हुए कहा कि क्यों न राज्यपाल की शक्तियां मुख्यमंत्री को दे दी जाएं। दरअसल, प्रदेश सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थो चटर्जी ने प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख और पदेन कुलाधिपति राज्यपाल से चर्चा तक नहीं की और प्रदेश स्तरीय 25 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति कर दी। इन अवैध नियुक्तियों का मामला अदालत में विचाराधीन है और अगले वर्ष फरवरी माह में अदालत में इसकी अंतिम सुनवाई है। राज्यपाल ने इसी मामले में राज्य सरकार को इन कुलपतियों को हटाने का सुझाव देते हुए वर्तमान शिक्षा मंत्री बसु से जवाब तलब किया।

ट्वीट किया कि यह आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है कि राज्य को राज्यपाल से संबंधित औपनिवेशिक विरासत को जारी रखने की आवश्यकता है या नहीं। राज्यपाल ने इस पर प्रतिक्रिया दी कि ‘मैं आश्चर्यचकित था कि शिक्षा मंत्री ने मुझसे बात करने के बजाय यह कहा कि मुख्यमंत्री को कुलाधिपति बनाया जाएगा।‘ उनके इस रुख को देखते हुए राज्यपाल ने कहा कि ‘आप मुख्यमंत्री को कुलाधिपति बनाने के साथ ही उन्हें राज्यपाल भी बना दें।’

नियम बनाम अराजकता

मानवाधिकार के सवाल पर तनातनी
मानवाधिकार के मुद्दे पर भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनातनी देखने को मिली। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मानवाधिकार दिवस के अवसर पर ट्विटर पर पोस्ट एक संदेश में मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली ताकतों को हराने के लिए लोगों के बीच एकता का आह्वान किया। उधर, राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने मानवाधिकार दिवस पर ट्विटर पर पोस्ट किए गए वीडियोग्राफी संबोधन में कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के फलने-फूलने के लिए लोगों के अधिकारों की रक्षा करना आवश्यक है। उन्होंने कहा, ‘‘पश्चिम बंगाल ने मानवाधिकारों के उल्लंघन की एक मिसाल कायम की है। लोगों में डर ऐसा है कि वे इस पर खुलकर चर्चा तक नहीं कर सकते। ' 'राज्यपाल ने ट्विटर पर मुख्यमंत्री को टैग करते हुए कहा, ‘‘ममता बनर्जी आपके शासन में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है जो बेहद चिंताजनक है। बंगाल में कानून का नहीं बल्कि शासक का राज है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए।''

एसएचआरसी अध्यक्ष की नियुक्ति पर खींचतान
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) के अध्यक्ष की नियुक्ति पर भी तनातनी देखने को मिली। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए सिफारिश करने में विलंब कर रही थीं। नए अध्यक्ष की नियुक्ति में देर होने पर राज्य सरकार आयोग के एकमात्र सदस्य नपराजित मुखर्जी को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किए जाने का विचार कर रही थी। राज्यपाल ने इस पर चिंता जताते हुए अध्यक्ष की नियुक्ति की सिफारिश करने में देरी की समय सीमा की ओर इशारा किया और इसके बजाय पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के सदस्य नपराजित मुखर्जी के लिए पिच तैयार करने का आरोप लगाया।
उन्होंने धारा 21 के तहत राज्य आयोग के तीन प्रावधानों को रेखांकित करते हुए कहा कि अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो मुख्य न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश, राज्य में जिला न्यायाधीश या मानवाधिकारों से संबंधित मामलों की जानकारी रखने वाला हो।

पेगासस जांच के मुद्दे पर आमने-सामने
पेगासस जांच के मुद्दे पर भी राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनातनी दिख रही है। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर पेगासस का उपयोग करके फोन टैप करने की कथित घटना की जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित समिति की जानकारी मांगी थी।

उन्होंने निराशा जताई कि मुख्य सचिव एचके द्विवेदी ने उनके पत्र पर ‘संज्ञान तक नहीं लिया’। राज्यपाल ने कहा, ‘‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और गंभीर चिंता का विषय है कि उसका जवाब तो दूर रहा, उसका संज्ञान भी नहीं लिया गया है। यह गंभीर प्रशासनिक चूक का संकेत है और दिखाता है कि यह ‘संवैधानिक नियमों’ और ‘विधि का शासन’ नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुख्य सचिव को अंतिम अवसर दिया जा रहा है कि वह अधिसूचना जारी करें और अधिसूचना जारी करने के लिए अपनाई गई पूरी प्रक्रिया को भी सार्वजनिक करें।’’

बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र पर टकराव
हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को 15 किमी से बढ़ाकर 50 किमी किए जाने के केंद्र के फैसले पर भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनातनी देखने को मिली। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र के इस फैसले का विरोध करते हुए 7 दिसंबर को गंगा रामपुर में प्रशासनिक बैठक के दौरान राज्य पुलिस को कथित तौर पर निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि बीएसएफ अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किलोमीटर के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन न कर पाए।
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इस पर कहा कि ममता बनर्जी का राज्य पुलिस को दिया गया कथित निर्देश संघीय ढांचे और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संभावित खतरा हैं। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में धनखड़ ने अपील की कि वे तुरंत उपयुक्त कदम उठाएं और जनहित और राष्ट्रीय हित में मुद्दे का समाधान करें।

कानून से बेपरवाह ममता की मनमानी
ममता बनर्जी जबसे (2011) प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी हैं, तब से वे स्वेच्छाचारी ढंग से सरकार चला रही हैं, भले ही उन्हें इसके लिए कई बार अदालत की फटकार लगी हो कि प्रदेश सरकार संवैधानिक रूप से कार्य नहीं कर रही। अभी इसी माह के शुरू में अदालत ने राज्य सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल सेंट्रल स्कूल सर्विस कमीशन (एसएससी) के माध्यम से हुई नियुक्तियों में धांधली के लिए फटकार लगाई और उन्हें रद्द करने की बात कही। यही नहीं, 2018 में प्रदेश में हुए पंचायत चुनावों में हुई धांधली को लेकर भी अदालत ने सरकार को फटकार लगाई थी। 2019 में लोकसभा चुनावों में हुई धांधली हो, चुनावों के दौरान व चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश में हुई चुनावी हिंसा व राजनैतिक हत्या का मामला हो या 2021 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हुई राजनैतिक हिंसा और हत्या को लेकर अदालत ने ही फटकार नहीं लगाई बल्कि राज्यपाल ने भी कहा कि प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था जैसी कोई बात नहीं है, प्रदेश सरकार संवैधानिक प्रकियाओं का पालन नहीं कर रही है। इसीलिए राज्यपाल जगदीप धनखड़ सरकार को संविधान के नियमानुसार चलने की सलाह दे रहे हैं।

उच्च शिक्षा में अनियमितता पर राज्यपाल से टकराव
दोनों के बीच ताजा टकराव की मुख्य वजह प्रदेश में उच्च शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त अनियमितता है। प्रदेश में शिक्षा तृणमूल के शिक्षा माफिया या उनके अन्य तंत्रों द्वारा संचालित किया जा रहा है। प्रदेश में शिक्षा विभाग में अवैध रूप से नियुक्तियां की गईं जिसमें प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों का पालन तो नहीं ही किया बल्कि ऐसे लोगों की नियुक्ति कर दी गर्इं जिनका नाम तक चयन सूची में नहीं था। शिक्षा व्यवस्था को विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर जब राज्यपाल ने कानूनी रूप से राज्य सरकर से जवाब-तलब करना शुरू किया तो ममता बनर्जी बौखला गर्इं। यह बौखलाहट तब और ज्यादा बढ़ गर्इं जब प्रदेश के 15 पुराने विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति की सहमति के बिना और 10 नए विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति के अनुमोदन के बिना ही प्रदेश सरकार द्वारा कुलपतियों की नियुक्ति किए जाने पर राज्यपाल ने सवाल उठाया। उन्होंने प्रदेश के शिक्षा मंत्री को 25 कुलपतियों की अवैध नियुक्तियों को लेकर चेताया कि वे उन सभी मामलों की जांच करेंगे।

 

राज्यपाल पश्चिम बंगाल जगदीप धनखड़

कानून की अवहेलना कर हुई 25 विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति
@MamataOfficial

ये प्रथम दृष्टया विशिष्ट आदेशों की अवहेलना या कुलपति-नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन के बिना हैं।
इन नियुक्तियों में कोई कानूनी मंजूरी नहीं है और यदि इन्हें जल्द ही वापस नहीं लिया जाता तो कार्रवाई करने के लिए विवश होना पड़ेगा
निम्न 25 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति विशिष्ट आदेशों की अवहेलना या कानूनी रूप से एकमात्र नियुक्ति प्राधिकारी कुलाधिपति की विशिष्ट अनुमति के बिना हुई है

1. अलीपुरदुआर विश्वविद्यालय
2. बांकुड़ा विश्वविद्यालय
3. विश्व बांगला बिश्वबिद्यालय
4.बर्दवान विश्वविद्यालय
5. कोलकाता विश्वविद्यालय
6. दार्जिलिंग हिल विश्वविद्यालय
7. डायमंड हार्बर महिला विश्वविद्यालय
8. गौर बंगा विश्वविद्यालय
9. हरिचंद गुरुचंद विश्वविद्यालय
10. हिंदी विश्वविद्यालय
11. जादवपुर विश्वविद्यालय
12. झारग्राम विश्वविद्यालय
13. कल्याणी विश्वविद्यालय
14. कन्याश्री विश्वविद्यालय
15. महात्मा गांधी विश्वविद्यालय
16. मौलाना अबुल कलाम आजाद प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
17. मुर्शिदाबाद विश्वविद्यालय
18. प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय
19. रबिंद्र भारती विश्वविद्यालय
20. रायगंज विश्वविद्यालय
21. रानी राशमणि ग्रीन विश्वविद्यालय
22.संस्कृत कॉलेज एवं विश्वविद्यालय
23. विद्यासागर विश्वविद्यालय
24. पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय
25. काजी नजरूल विश्वविद्यालय

इससे पूर्व राज्यपाल ने 20 दिसंबर, 2021 को प्रदेश के निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की राजभवन में एक बैठक बुलाई। कुलपतियों ने इसमें आने पर सहमति दे दी। परंतु अचानक 18 दिसंबर को कोरोना की आड़ लेकर कुलपतियों ने इस बैठक में आने से मना कर दिया। सभी ने इस बैठक में आने से मना करने के लिए सामूहिक पत्र लिखा था। स्पष्ट है कि कुलाधिपति के निमंत्रण को स्वीकार करने के बाद आखिरी वक्त में सामूहिक रूप से मना करना किसी सामान्य स्थिति के बजाय निर्देशित अवहेलना को दर्शाता है। राज्यपाल प्रदेश के विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं। कुलाधिपति प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुला सकते हैं उनसे जवाब-तलब कर कर सकते हैं सलाह दे सकते हैं; कुलपतियों की नियुक्तियों पर अपना अंतिम निर्णय दे सकते हैं। उन्हें यह अधिकार भारत का संविधान देता है।

नहीं हुई थी पद की इतनी अवमानना
इतिहास पर नजर डालें तो ममता से पहले जब माकपा सरकार थी और तत्कालीन राज्यपाल बीडी पाण्डेय (1981 से 1983) ने संतोष भट्टाचार्य को कोलकाता विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया था तो उस नियुक्ति से माकपा इतनी नाराज थी कि ज्योति बसु ने संतोष भटाचार्य का हुक्का-पानी बंद कर दिया था। अंतत: कुलपति को त्यागपत्र देना पड़ा। वहीं प्रदेश में जब पहली बार (1967) माकपा सरकार बनी, तब उस समय के राज्यपाल धर्मवीर के साथ प्रदेश सरकार के बीच पत्र के माध्यम से खूब जवाब तलब हुआ, खींचतान हुई लेकिन माकपा ने कभी भी राज्य के संवैधानिक प्रमुख का अपमान नहीं किया, उन्हें कोई चुनौती पेश नहीं की।

राज्यपाल की अवहेलना के मामले

अभी तक किसी भी राज्यपाल ने ममता बनर्जी के दोहरे मापदंडों को संवैधानिक व वैधानिक चुनौती पेश नहीं की थी परंतु राज्यपाल जगदीप धनकड़ ने यह दिखा दिया कि वे ममता सरकार के रबर स्टाम्प नहीं हैं। इसलिए ममता समेत पूरे सरकारी तंत्र द्वारा उनका तिरस्कार व बहिष्कार ही नहीं किया जा रहा है बल्कि राज्यपाल के खिलाफ पूरे जोर-शोर से घृणा अभियान भी चलाया जा रहा है।
ममता राज्यपाल से उस समय से नाराज चल रही हैं जब 2019 में दुर्गा पूजा के दौरान मुर्शिदाबाद जिले में एक हिन्दू परिवार की निर्मम हत्या पर राज्यपाल ने प्रदेश में कानून व्यवस्था के पूरी तरह से चरमरा जाने की बात कही। 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद हुई राजनीतिक हत्या, आगजनी की घटनाओं के बाद जब लाखों हिन्दू पलायन करके शरणार्थी शिविरों में शरण लिये हुए थे तो राज्यपाल ने उन शिविरों का दौरा शुरू किया और प्रभावित लोगो से मिलना शुरू किया और स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रदेश में संविधान का कोई नामोनिशान तक नहीं है, प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था जैसी कोई बात नहीं है। ममता राज्यपाल से इतनी ज्यादा नाराज हुई कि जब राज्यपाल चुनावी हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रहे थे तो राज्य सरकार ने उन्हें हेलिकाप्टर देने से मना कर दिया था और राज्यपाल को बीएसएफ के हेलिकाप्टर पर निर्भर होना पड़ा था।
प्रदेश की तृणमूल सरकार ने कभी भी राज्यपाल जगदीप धनखड़ के पद का सम्मान नहीं किया और उन्हें कई बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा है। 2019 में दुगार्पूजा के बाद हुए प्रदेश के एक कार्निवाल (राज्य द्वारा संचालित उत्सव) में राज्यपाल को बैठने के लिए पीछे की सीट उपलब्ध कराई गई। राज्यपाल प्रदेश का संवैधानिक प्रमुख होता है, इसलिए प्रोटोकॉल के तहत उन्हें प्रथम पंक्ति में सीट आवंटित होनी चाहिए थी। 2019 में ही  राज्यपाल मुर्शिदाबाद के डोमकल में प्रदेश सरकार द्वारा मुस्लिम महिलाओं के लिए निर्मित नए कॉलेज भवन का उद्घाटन करने गए, वहां पर उन्हें काले झंडे दिखाए गए, उनकी कार को क्षतिग्रस्त करने का भरपूर प्रयास किया गया, उनके खिलाफ नारे लगाए गए। राज्यपाल प्रदेश के दौरे पर जाएं या योजनाओं के निरीक्षण के लिए, प्रदेश सरकार का कोई भी अधिकारी उनकी अगवानी नहीं करता।

लेकिन 2011 में सत्ता परिवर्तन हुआ और प्रदेश में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता संभाली। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने पूरे शासन काल में राज्यपाल को एक रबर स्टाम्प से ज्यादा कुछ नहीं समझा और वे राज्यपाल के स्तर को यहां तक ले आई थीं कि जब 2012 में आईपीएल क्रिकेट मैच  में कोलकाता नाईट राइडर्स (केकेआर) की जीत हुई तो उस समय के राज्यपाल एम.के. नारायणन (2010 से 2014 तक) का स्टेडियम जाने और केकेआर टीम के साथ नृत्य का कार्यक्रम रखा गया। नारायणन राज्यपाल नियुक्त होने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी थे। ममता ने एक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार व तत्कालीन राज्यपाल का स्तर (कद) इतना नीचे गिरा दिया था।

राज्यपाल की सक्रियता पर दोहरा मानदंड
प्रदेश में 2004 से 2009 तक गोपाल कृष्ण गांधी राज्यपाल रहे थे। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा सिंगुर व नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण का विरोध किया था और प्रदेश में गरीबों/मजदूरों के साथ हो रहे शोषण के लिखाफ बोला था। राज्यपाल ने उस समय के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टचार्य को पत्र लिखा था कि सरकार अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल कर रही है।

 ममता तब राज्यपाल के इस कृत्य से बहुत उत्साहित हुई थीं और उन्होंने संवैधानिक शक्तियों के उपयोग के लिए राज्यपाल को धन्यवाद दिया व आभार प्रकट किया था। लेकिन जब राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ममता सरकार से जवाब तलब शुरू किया तो ममता उनसे इतना नाराज हुर्इं कि विधानसभा में राज्यपाल के मुख्य प्रवेश द्वार पर ही ताला जड़ दिया और राज्यपाल को विधानसभा में प्रवेश ही नहीं करने दिया था। और अब, जब राज्यपाल ने कुलपतियों की अवैध नियुक्ति पर कठोर कार्रवाई व जांच की बात कही तो ब्रत्या बसु कह रहे हैं कि राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियां खत्म की जाएं। 

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