7 फरवरी 2021 को चमोली जिले के धौलीगंगा-ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट क्षेत्र में हादसा हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने की वजह से हुआ। एक रिसर्च टीम ने हादसा स्थल पर जाकर त्रासदी के कारणों का पता लगाने की कोशिश की है। जेएनयू के भूगर्भ रिसर्च टीम के प्रमुख डॉ रूपेंद्र सिंह का एक शोध पत्र प्राकृतिक आपदा की प्रमुख शोध पत्रिका जियोमैटिक्स नेचुरल हैज़र्ड एंड रिस्क के जनवरी अंक में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि पिछले बीस सालों से हिमालय ग्लेशियरों का न्यूनतम तापमान बढ़ रहा है। ऋषिगंगा, धौलीगंगा से ऊपर हिमालय में करीब साढ़े सात सौ मीटर का हैंगिंग ग्लेशियर का भी तापमान बढ़ने से मिट्टी और उसके नीचे की बर्फ भी पिघलती गयी और अचानक ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा लाखों टन मलबे के साथ नीचे गिरा। इसने एक बड़ा विस्फोट जैसा धमाका भी किया और जिस स्थान पर बर्फ मिट्टी का मलबा गिरा वो अत्यधिक ढलान वाला क्षेत्र था जोकि तबाही मचाता हुआ धौलीगंगा और ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को अपने साथ बहा ले गया।
डॉ रूपेंद्र सिंह की टीम की रिपोर्ट कहती है कि इस घटना के बारे में जानना इसलिए भी जरूरी था कि मौसम साफ था, कहीं बादल फटने की घटना नहीं हुई और न ही कोई अन्य मानवीय कारण भी सामने आया। जबकि ऐसी घटनाएं मानसून के मौसम में अधिक बारिश की वजह से होती हैं। फरवरी में बर्फ भी जमी होती है, ऐसे मौसम में ये घटना क्यों हुई ये सवाल हर विज्ञानी के मन में था।
रिपोर्ट यह भी कहती है कि त्रासदी स्थल पर हैंगिंग ग्लेशियर में पिछले आठ साल से दरार आ रही थी। पिछले बीस साल से बढ़ रहे हिमालय के न्यूनतम तापमान की वजह से अभी और भी ग्लेशियरों के टूटने की संभावनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता। त्रासदी के बाद वाडिया इंस्टीट्यूट के प्रमुख भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ कलाचंद साईं ने भी कुछ ऐसी ही रिपोर्ट उत्तराखंड शासन को दी थी। उन्होंने सैटेलाइट चित्रों और हादसे स्थल के सर्वे के आधार पर अपनी रिपोर्ट बनाई थी। गौरतलब है कि धौलीगंगा और ऋषिगंगा हादसे में दो सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गयी थी।
टिप्पणियाँ