दिल्ली पर केजरीवाल ने सात साल शासन किया। इस तरह दिल्ली की महिलाओं का उन पर एक हजार रुपए प्रति महीने के हिसाब से 84,000 रुपए उधार का निकलता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री देश भर में घूम-घूमकर इन दिनों मांओं और बहनों को एक हजार रुपए प्रति महीना देने का वादा कर रहे हैं, लेकिन जिस दिल्ली की महिलाओं ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी, उनका 84,000 रुपए अब तक केजरीवाल पर बकाया है। या केजरीवाल कह दें कि दिल्ली से उनका जी भर गया है। दिल्ली की महिलाओं का वोट उन्हें 2025 के चुनाव में नहीं चाहिए। वैसे बात सिर्फ उन एक हजार रुपयों की नहीं है, जिसे हर चुनावी भाषण में वे दुहरा रहे हैं। इस बात को दिल्लीवाले खूब जानते हैं कि वे किस हद तक उतर कर अपनी रैलियों में झूठ पर झूठ बोल रहे हैं।
दो जनवरी को लखनऊ में आम आदमी पार्टी की रैली में अरविंद केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश में कोरोना काल के दौरान हुई अव्यवस्था का जिक्र करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री पर निशाना साधा। यह सब बताते हुए अरविन्द ने दिल्ली की क्या दुर्दशा कर रखी थी, उस पर दो शब्द नहीं कहा। कोविड 19 के दौरान पिछले साल ‘दिल्ली सरकार’ अचानक दिल्ली से गायब हो गई थी। उत्तर पूर्वी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता पीड़ितों को सेवा भारती द्वारा लगाए गए शिविरों में भेजते हुए पाए गए।
वास्तव में केजरीवाल एनजीओ वाले मुख्यमंत्री हैं। उनकी पार्टी से दिल्ली में सर्वेक्षण और जनमत संग्रह कराने का ही काम लिया जा सकता है। दूसरा एनजीओ का लंबा अनुभव होने की वजह से वे पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन में भी दक्ष है, लेकिन जमीन पर उनका काम सिर्फ होर्डिंग पर ही दिखाई देता है। कम शब्दों में दिल्ली में एक ऐसी सरकार है, जिसने लोगों के विश्वास और आस्था पर झाड़ू फेरने का ही सिर्फ काम किया है।
केन्द्र की सरकार को केजरीवाल जी भर कर कोसते रहे, लेकिन जब दिल्ली कोविड से पस्त थी, आम आदमी पार्टी के नेता कहां थे ? केजरीवाल उन दिनों कहीं दिखाई क्यों नहीं दिए ? कोविड 19 से जब दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ था। वे सिर्फ विज्ञापनों में नजर आ रहे थे।
9 मई, 2021 को केजरीवाल सरकार के अस्पताल में यमुनापार से गए कुछ कोविड मरीजों के परिजन की शिकायत प्रकाशित हुई। खबर के अनुसार हिंदूराव अस्पताल के प्रत्येक वॉर्ड में 40-50 कोविड रोगी थे। कई दवाइयां तो मरीजों को अपनी जेब से खरीद कर मंगानी पड़ रही थी। चांदनी चौक के एक मरीज के परिजन की आपबीती भी प्रकाशित हुई थी। जिसमें परिजन ने बताया कि किस तरह दिल्ली सरकार की तरफ से डॉक्टर और नर्स को वेतन से लेकर अन्य सुविधाएं नहीं मिलने की वजह से, उसका असर मरीजों की सेवा में साफ तौर पर देखा जा रहा था।
हिंदूराव में भर्ती कोविड मरीजों को न तो समय पर दवाइयां मिल रही थीं और न ही ऑक्सीजन नापने के लिए वहां ऑक्सीमीटर था। मरीजों ने दिल्ली सरकार की सेवाओं से दुखी होकर मीडिया को बताया कि दिल्ली सरकार ने सिर्फ कहने भर को कोविड अस्पताल तैयार कराए। जान बचाने के लिए घर पर ही ईलाज करने में भलाई है।
दिल्ली वाले बार-बार केजरीवाल से सवाल करते रहे लेकिन आज तक उनकी तरफ से जवाब नहीं आया कि जब दिल्ली के मुख्यमंत्री को बात-बात पर मोदी जी के सामने ही गिड़गिड़ाना है तो फिर इनकी दिल्ली को जरूरत क्या है ? वैसे भी वे दिल्ली को केन्द्र सरकार के भरोसे छोड़कर ही देशभर में चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। केन्द्र सरकार के भरोसे छोड़कर बैठे हैं, इसे पिछले साल कोविड 19 की महामारी के दौर में दिल्ली ने महसूस किया।
वर्ष 2020-21 में दिल्ली के मुख्यमंत्री राहत कोष में 35 करोड़ रुपए आए। दिल्ली कोविड-19 से बेहाल थी। हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था लेकिन मुख्यमंत्री राहत कोष में आए 35 करोड़ रुपए में से एक रुपया भी कोविड 19 के लिए केजरीवाल ने खर्च नहीं किया। उन्होंने तीन महीने में 150 करोड़ रुपए जरूर विज्ञापन पर खर्च किए। उत्तर प्रदेश सरकार की विज्ञापन नीति पर सवाल उठाने से पहले क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री को एक बार झांक कर अपने गिरेबां में नहीं देखना चाहिए।
150 करोड़ रुपए केजरीवाल ने दिल्ली वालों की दवा, ऑक्सीजन और सरकारी अस्पतालों को सुधारने पर खर्च किए होते तो राजधानी 2021 में इतनी बुरी तरह से कोविड में घुट ना रही होती। दिल्ली वाले नहीं भूले कि किस तरह पांच घंटे में छह चैनलों पर 17 बार केजरीवाल नजर आए थे। यह सब मुफ्त में नहीं हुआ था। दिल्ली वालों की जान का सौदा विज्ञापन पर पैसे खर्च करके किया गया था। दिल्ली वाले मरे तो मरे लेकिन केजरीवाल की छवि पर कोई दाग नहीं लगना चाहिए।
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