स्कार्दू हवाईअड्डे (बाएं) पर खड़ा पीआईए का विमान (ऊपर)
आदर्श सिंह
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी ने इस महीने दो दिसंबर को गिलगित- बाल्टिस्तान में स्थित स्कार्दू हवाईअड्डे को अंतराष्ट्रीय हवाईअड्डा घोषित करते हुए यहां से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के परिचालन का एलान किया। इस हवाईअड्डे का चीन के सहयोग से पिछले साल ही उन्नयन किया गया है। इमरान ने अपने स्वभाव के अनुसार दावा किया कि अब दुनिया भर के पर्यटक गिलगित-बाल्टिस्तान की सैर को आएंगे और इस इलाके की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन इमरान के दावे और तथ्यों में फर्क है। गिलगित-बाल्टिस्तान को विवादित इलाके के रूप में मान्यता देते हुए भारत के कई मित्र देशों की विमानन कंपनियों ने यहां की उड़ानों से दूरी बना रखी थी। ऐसे में इसे अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा घोषित करना पाकिस्तान की इस इलाके पर अपने अवैध कब्जे के दावे को वैध साबित करने की बचकानी कोशिश से अधिक नहीं समझा जाना चाहिए।
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असली बात हवाईअड्डे के उन्नयन की है। बता दें कि यह दोहरे उपयोग वाला यानी सैन्य और असैन्य दोनों उद्देश्यों से विकसित किया गया हवाईअड्डा है। लेह यहां से केवल 100 किलोमीटर और श्रीनगर 155 किलोमीटर दूर है। यहां पाकिस्तान के जेएफ-17 विमानों का बेड़ा तैनात है और पिछले ही साल स्कार्दू वायुसेना अड्डे पर चीन और पाकिस्तान ने साझा युद्धाभ्यास किया था। भारत-चीन सीमा पर पिछले साल से जारी तनाव के बीच कई बार चीनी युद्धक विमान भी इस हवाईअड्डे पर देखे गए हैं। खबरों के अनुसार चीन ने यहां अपने 40 जे-10 युद्धक विमान तैनात कर रखे हैं। इसके अलावा हवा में विमान से विमान में तेल भरने वाले आईएल-78 विमान भी देखे गए हैं। ऐसे में संशय की कोई गुंजाइश बचती नहीं कि किस उद्देश्य से इस हवाई अड्डे का उन्नयन किया गया है। युद्ध की स्थिति में चीन इस हवाई अड्डे का जमीनी और हवाई हमले का उपयोग करेगा।
स्कार्दू वायुसेना अड्डे से चीन को शिनकियांग के काशगर और तिब्बत में सीमा से काफी दूर वायुसेना अड्डों के होने से जो रणनीतिक नुकसान हो रहा था, उसकी भरपाई हो जाएी। नगारी और होतान जैसे चीन के वायुसैनिक अड्डे सीमा से 300 किलोमीटर दूर हैं। साथ ही दोनों हवाईअड्डे समुद्र तल से 4000 किलोमीटर की ऊंचाई पर हैं जिससे उसके युद्धक विमानों का पूरे हथियारों और साजोसामान के साथ उड़ान भरना मुश्किल है। ऐसे में स्कार्दू में चीनी वायुसेना की मौजूदगी भारत के लिए खतरे की घंटी है। साथ ही चीन ने कराकोरम राजमार्ग पर सैन्य इस्तेमाल के लिए 16 हवाई पट्टियां बना रखी हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान में मौजूद दस से पंद्रह हजार चीनी सैनिक युद्ध की स्थिति में करगिल से होकर लद्दाख जाने वाली सड़कों को बाधित कर सकते हैं।
सैन्य दृष्टिकोण से देखें तो गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर पश्चिमी दिशा से लद्दाख पर हमला किया जा सकता है। साथ ही एक बहुत छोटा सा हिस्सा इसे सियाचिन ग्लेशियर और दौलत बेग ओल्डी से अलग करता है। ऐसे में साफ है कि स्कार्दू हवाई अड्डे का उन्नयन पर्यटन बढ़ाने की मंशा से नहीं बल्कि भारतीय सुरक्षा को खतरा पैदा करने की नीयत से किया गया है।
गिलगित-बाल्टिस्तान पर चीनी कब्जा
जुलाई 2011 में आईडीएसए, जिसका नाम अब मनोहर पर्रीकर रक्षा अध्यन एवं अनुसंधान संस्थान हो चुका है, ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘यदि गिलगित-बाल्टिस्तान में चीनी दखल इसी तरह बढ़ता रहा तो 2020 तक यह इलाका पूरी तरह चीन के कब्जे में चला जाएगा।’ यह भविष्यवाणी न केवल गिलगित-बाल्टिस्तान के संदर्भ में सच हुई है बल्कि कुछ लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि पूरा पाकिस्तान ही चीन का एक ‘प्रांत’ है। लेकिन गिलगित-बाल्टिस्तान चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
चीन की पाकिस्तान से सीधे तौर पर कोई सीमा नहीं लगती थी लेकिन गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे से भारत का न केवल अफगानिस्तान और सिनकियांग से संपर्क टूट गया बल्कि चीन के लिए तीन हजार किलोमीटर लंबे कराकोरम राजमार्ग के जरिए गिलगित-बाल्टिस्तान होते हुए ग्वादर बंदरगाह पहुंचने का रास्ता भी साफ हो गया। चीन किसी भी हाल में गिलगित-बाल्टिस्तान पर अपनी पकड़ को कमजोर नहीं होने देगा क्योंकि यह उसकी सबसे महत्त्वाकांक्षी परियोजना सीपीईसी की जीवनरेखा है। यह अपने निवेश को सुरक्षित रखने के लिए चीन का ही दबाव है जिसके कारण पाकिस्तान को मजबूरी में गिलगित-बाल्टिस्तान को अलग प्रांत का दर्जा देना पड़ा। चीन को पाकिस्तान के रास्ते खाड़ी देशों तक पहुंच चाहिए जो गिलगित-बाल्टिस्तान पर मजबूत पकड़ के बिना संभव नहीं हो सकता। आज चीनी टैंकरों को खाड़ी देशों तक पहुंचने के लिए 16 से 25 दिन लगते हैं जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर हाई स्पीड रेल सेवाएं शुरू होने और इसके सड़क मार्गों से पूरी तरह जुड़ जाने के बाद ग्वादर से 48 घंटे में चीन पहुंचा जा सकता है।
गिलगित-बाल्टिस्तान में क्या कर रहा है चीन
अगस्त 2010 में विख्यात अमेरिकी पत्रकार सेलिग एस. हैरीसन ने ‘न्यूयार्क टाइम्स’ में एक आलेख में रहस्योद्घाटन किया था कि गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके में चीन 22 गुप्त सुरंगों का निर्माण कर रहा है और किसी पाकिस्तानी का इन सुरंगों के आस-पास फटकना भी मना है। कहने को वह ईरान से चीन तक प्रस्तावित तेल पाइप लाइन के लिए इन सुरंगों का निर्माण कर रहा है। लेकिन इस सुरंगों का उपयोग मिसाइल स्टोरेज फैसिलिटी के रूप में भी किया जा सकता है। साथ ही जो गोपनीयता बरती जा रही है, उससे इस धारणा को बल ही मिलता है। शिनकियांग में जारी दमन चक्र अब यहां भी पहुंच गया है और स्थानीय उद्गरों को निशाना बनाया जाना शुरू हो गया है। खबरों के अनुसार पाकिस्तान की सैकड़ों महिलाओं और गिलगित-बाल्टिस्तान के सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर शिनकियांग की जेलों में डाला जा चुका है।
शोषण का अंतहीन सिलसिला
गिलगित-बाल्टिस्तान की धरती बहुमूल्य धातुओं और खनिजों से लबालब है। धातु और गैर-धातु दोनों प्रकार के तमाम बहुमूल्य खनिजों से लेकर यूरेनियम, सोने, तांबे की खदानों के अलावा उद्योगों में काम आने वाली चट्टानें और तमाम बहुमूल्य पत्थर भी हैं। लेकिन स्थानीय लोगों के लिए ये किसी काम की नहीं हैं। चीनी इसके एकमात्र लाभार्थी हैं। पाकिस्तान की सरकार ने उनके लिए खदानों का लाइसेंस लेना आसान कर दिया है और उन्हें कर देने के झंझट से भी मुक्त कर दिया है। अब हालत यह है कि ये कंपनियां स्थानीय लोगों को विस्थापित करने के बाद उनके पुनर्वास के लिए भी चवन्नी खर्च नहीं करतीं। और तो और, हाल ही में पाकिस्तान ने सैकड़ों स्थानीय खदान मालिकों के लाइसेंस रद्द कर उन्हें चीनी खदान मालिकों को सौंप दिया जिन्होंने पुनर्वास की किसी योजना के बगैर ही हजारों स्थानीय लोगों को विस्थापित कर दिया। साथ ही चीनी कंपनियां पाकिस्तान में अपनी मुखौटा कंपनियां बनाकर काम कर रही हैं जिससे लगे कि मालिकाना हक किसी पाकिस्तानी के पास है।
पारिस्थितिकी की बर्बादी
वी.एस. नायपाल अपनी किताब ‘द मास्क इन अफ्रीका’ में लिखते हैं कि चीनियों को देखकर लगता है कि उन्हें धरती से एक विशेष प्रकार की घृणा है। उनकी यह टिप्पणी अफ्रीका में जंगल काटने में लगी चीनी कंपनियों के कामकाज को देखकर थी। लेकिन सच यह है कि चीन ने अपने देश की धरती और पर्यावरण को भी बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गिलगित-बाल्टिस्तान इसके अपवाद कैसे हो सकते हैं? संवेदनशील पारिस्थितिकी वाले इस इलाके में चीनियों के दखल का पहला परिणाम 2010 में दिखा जब हुंजा में भूस्खलन से हुंजा नदी का प्रवाह रुक गया और 20 लोगों की मौत हो गई। इससे आई बाढ़ में छह हजार लोग विस्थापित हो गए और बीस किलोमीटर तक कराकोरम राजमार्ग पानी में डूब गया। चीन गिलगित-बाल्टिस्तान में बड़े पैमाने पर बांधों का निर्माण कर रहा है। इसमें सबसे बड़ी है 14 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से बनने वाली डायमर भाषा बांध परियोजना। डायमर भाषा परियोजना में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन की है जबकि 30 प्रतिशत हिस्सेदारी फ्रंटियर वर्क्स आर्गनाइजेशन की है जो कि पाकिस्तानी फौज की कंपनी है। चीन यहां एक नहीं, पांच बांधों का निर्माण कर रहा है।
बढ़ता असंतोष
गिलगित से लेकर ग्वादर तक, पूरी पाकिस्तानी अवाम धीरे-धीरे समझने लगी है कि सीपीईसी के नाम पर चल रही इन परियोजनाओं से पाकिस्तान का कोई भला नहीं हो रहा लेकिन चीन मालामाल हो रहा है। खासकर चीनियों का पाकिस्तानी जनता के साथ दंभी बर्ताव भी असंतोष को बढ़ाने का एक कारण है। चीनियों के कारण पाकिस्तान में अब धड़ल्ले से सुअर का मांस बिकने लगा है। इन्हीं कारणों से आम पाकिस्तानी अब चीनियों को घर किराये पर देने से भी कतराने लगे हैं। लेकिन भारत के खिलाफ शत्रुता का विचार पाकिस्तानी हुक्मरानों के दिमाग में इस कदर हावी है कि वो किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे चीन को हर मुंहमांगी चीज देने को तैयार हैं ताकि उसके पाकिस्तान में हित इतने बढ़ जाएं कि चीन को किसी भी स्थिति में उसके साथ खड़े रहना पड़े। इसके लिए पाकिस्तान अपनी गरिमा और संप्रभुता को तिलांजलि देने के लिए तैयार है।
(लेखक साइंस डिवाइन फाउंडेशन से जुड़े हैं और रक्षा एवं वैदेशिक मामलों में रुचि रखते हैं।)
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