कॉर्बेट पार्क से लगे रामनगर फॉरेस्ट डिवीजन के पवलगढ़ में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने दो युवाओं ने नहर के पानी से बिजली पैदा कर अचंभित कर दिया। नारायण और बलराम भारद्वाज नामक इन युवाओं ने अपनी स्वदेशी तकनीक के आधार पर नहर के पानी में कोल्हू के पानी की तरह लिफ्ट कर टरबाइन को चलाते हुए विद्युत उत्पादन कर दिखाया है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री धामी कहा कि इस कार्यक्रम के बाद उत्तराखंड सम्पूर्ण विश्व में पूर्ण स्वदेशी सरफेस हाइड्रो काइनेटिक टरबाइन तकनीक का पहले उपयोगकर्ता के रूप में भी जाना जाएगा, जो उत्तराखंडियों के लिए एक गर्व का विषय है। सीएम ने कहा कि मुझे यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि आज रामनगर वन प्रभाग में ऊर्जा उत्पादन की जो तकनीक संचालित हो रही है वो 100 प्रतिशत पर्यावरण प्रदूषण मुक्त है। उन्होंने कहा कि छोटी से छोटी पहाड़ी गूल से लेकर उत्तराखंड से निकलने वाली बड़ी से बड़ी नदियों में बिना कोई बांध बनाए या पानी को रोके 24 घंटे, सातों दिन, 12 महीने सतत विद्युत् उत्पादन, न्यूनतम लागत में करने में सक्षम है। युवा इंजीनियरों ने बताया कि उनकी संस्था मेकलेक पिछले 8 वर्षों से उत्तराखंड में कार्यरत है। उनके अनुसार उत्तराखंड की नदियों और प्रवाहित जल धाराओं से लगभग 1500 मेगावाट विद्युत का उत्पादन उनके द्वारा निर्मित स्वदेशी सरफेस हाइड्रो काइनेटिक तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है क्योंकि भारत की अधिकांश बारहमासी नदियों का उद्गम उत्तराखंड से ही होता है।
उत्तराखंड की तस्वीर बदल सकता है यह स्टार्टअप
मुख्यमंत्री ने कहा कि उतराखंड सरकार ने युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने का हर सम्भव प्रयास किया है और ऐसी अनेकों अनुकरणीय योजनाओं का आरंभ किया है। उसी के परिणाम स्वरूप उत्तराखंड का युवा आज कुछ अलग करने के जज़्बे से मेहनत कर रहा है, जिसका एक जीवंत उदाहरण आज हमारे बीच में है। उन्होंने कहा कि ये स्टार्टअप उत्तराखंड की तस्वीर बदल सकता है। 15 किलोवाट विद्युत उत्पादन की सरफेस हाइड्रो काइनेटिक परियोजना जिसका संचालन पवलगढ़ के ऐतिहासिक 111 वर्ष पुराने वन विश्राम भवन के प्रांगण में हुआ है। यह कोई साधारण जल विद्युत परियोजना का आरंभ मात्र नहीं है, यह देश के दो युवा वैज्ञानिकों नारायण और बलराम भारद्वाज की लगभग 10 वर्षों के अथक परिश्रम से निर्मित पूर्णतः स्वदेशी तकनीक के माध्यम से नवीकर्णीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक नए युग का आगाज है। सीएम ने कहा कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि वन विभाग उत्तराखंड सरकार के सहयोग से प्रारम्भ हुआ यह नवीन ऊर्जा का युग यहां रुकने वाला नहीं है, अपितु देश के हर राज्य के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व की सरकारें उत्तराखंड सरकार की इस पहल का अनुसरण करते हुए बिना किसी पर्यावरण प्रदूषण तथा नदियों एवं वन्य जीवन को बचाते हुए इस स्वदेशी तकनीक का उपयोग कर 100 प्रतिशत ग्रीन एनर्जी उत्पादित करने की योजना पर कार्य प्रारम्भ करेंगी।
'सबका साथ-सबका विकास' के सपने को साकार करने का हर संभव प्रयास
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज जो में जल विद्युत उत्पादन का यह स्वदेशी सूक्ष्म संयंत्र देख रहा हूं तो मुझे उत्तराखंड के वों सैकडों गांव शहर याद आ रहे हैं, जिनके पास कई किलोमीटर लम्बी सूक्ष्म तथा मध्यम आकार की सिंचाई नहरें और पहाड़ी नदियां हैं। पवलगढ़ में ही देख लीजिए यह जो छोटी सी गूल यहां से बैल पड़ाव जा रही है, न जाने कितने किसानों के खेतों से होकर जा रही है। अगर ऐसी छोटी-छोटी टरबाइन उस हर किसान को दे दी जाए, जिसका खेत ऐसी नहर या नदी के आस-पास है तो में आशा करता हूं वो हर किसान ऊर्जा के लिए आत्मनिर्भर हो जाएगा। हमारी सरकार, देश के यशस्वी प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी के 'सबका साथ-सबका विकास' के सपने को साकार करने का हर संभव प्रयास उत्तराखंड की जनता के लिए करती आयी है और आगे भी करती रहेगी।
'हर किसान को पानी, हर घर को बिजली'
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार उत्तराखंड के मेरे किसान भाइयों और उन सभी पहाड़ी गावों के लिए इस स्वदेशी टरबाइन तकनीक का उपयोग कर एक ऐसी ऐतिहासिक योजना लेकर आएगी, जिससे हर किसान के पास खुद का पावर प्लांट होगा और 'हर किसान को पानी, हर घर को बिजली' उत्तराखंड राज्य की स्थापना से लेकर आज तक की सबसे कम दरों पर उपलब्ध होगा। मेरा मानना है कि सस्ती और अनवरत ऊर्जा की उपलब्धता हर क्षेत्र के विकास के लिए सबसे अहम संसाधन है। इसलिए आगामी योजनाओं में हमारी सरकार पहाड़ी गावों में भी नवीन उद्योगों का मार्ग प्रशस्त करने और रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न करने के लिए 'हर उद्यम के लिए सुगम ऊर्जा' योजना का प्रारूप तैयार करने के लिए कार्य करेगी, जिसमें इस स्वदेशी तकनीक का भी समुचित उपयोग किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस स्वदेशी तकनीक से उत्तराखंड वन विभाग को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डॉ पराग मधुकर धकाते की पहल का स्वागत करता हूं और आशा करता हूं कि वन विभाग उत्तराखंड इस तकनीक का उपयोग वन विभाग के अंतर्गत उन सभी स्थानों पर करेगा, जहां इस तरह की बहती हुई जल धाराएं उपलब्ध हैं। मैंने ये अनुभव किया है कि उत्तराखंड के वनों में लगने वाली आग का एक बड़ा कारण जंगलों से हो कर जाने वाली बिजली की खुली तारों से हुए शॉर्ट सर्किट भी हो सकता है। आस पास की छोटी बड़ी नदियों-नहरों से स्थानीय रूप से ही पर्यावरण तथा वन्य जीवों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए विद्युत उत्पादन की उत्तराखंड वन विभाग की यह पहल पूरी दुनिया में मिसाल बनेगी।
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