भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ओडिशा के पुरी जिले में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के अंदरूनी हिस्से से सुरक्षित तरीके से रेत हटाने की एक योजना पर काम कर रहा है। फिलहाल इस पर औपचारिक फैसला नहीं लिया गया है। 118 साल पहले अंग्रेजों ने मंदिर के अंदरूनी हिस्सेा को ढहने से बचाने के लिए इसमें रेत भर दिया था। मंदिर में मौजूद इस सभागार कक्ष को जगमोहन के नाम से जाना जाता है।
हाल ही में आईआईटी भुवनेवश्वर द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में एएसआई (भुवनेश्वर सर्कल) के प्रमुख अरुण मलिक ने मंदिर के सीलबंद सभागार से रेत हटाने की संभावनाओं को लेकर एक प्रस्तुति दी थी। फरवरी 2020 में सूर्य मंदिर के संरक्षण पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के आखिर में पहली बार यह विचार सामने आया था। उस समय तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने एएसआई को सभागार से रेत हटाने के तौर-तरीकों पर रिपोर्ट तैयार करने को कहा था। इसके बाद स्मारक का अध्ययन करने और सुरक्षित तरीके से रेत हटाने के लिए एएसआई ने चार सदस्यीय समिति गठित की थी।
अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट पेश की गई, उसमें आगाह किया गया कि अगर ढांचे में रेत भरा रहा तो इससे मंदिर की संरचना को नुकसान हो सकता है। साथ ही, मंदिर की संरचना और रेत की परत के बीच 17 फीट की दरार आने की बात भी कही गई थी। इसी के बाद एसएसआई को रेत हटाने की आवश्यकता महसूस हुई। अध्ययन रिपोर्ट में केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) ने दरार को नए सिरे से रेत से भरने का सुझाव दिया था। साथ ही, रेत हटाने और संरचना को फिर से पुरानी स्थिति में लाने का प्रस्ताव भी दिया था। इस रिपोर्ट में कहा गया कि दरार के बावजूद संरचना स्थिर है। इस प्रक्रिया में आईआईटी मद्रास विश्व धरोहर स्थल के संरक्षक एएसआई की मदद करेगा।
शुरुआती प्रस्ताव के मुताबिक, पहले चरण में जगमोहन के पश्चिमी हिस्से में एक खिड़की बनाई जाएगी। स्मारक के अंदरूनी हिस्से तक पहुंचने के लिए ब्रिटिश काल में खोले गए मौजूदा हिस्से के निकट 6×6 फीट की एक खिड़की बनाई जाएगी। इससे अधिकारियों को भविष्य की कार्ययोजना के लिए दीवारों और अंदरूनी हिस्से का निरीक्षण और दस्तावेजीकरण करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, प्रस्तुति में कहा गया है कि इसी उद्देश्य से गर्भगृह के निचले हिस्से में भी एक खिड़की बनाई जाएगी। इन खिड़कियों से अधिकारियों को दीवार की चिनाई को समझने में मदद मिलेगी। आधिकारिक तौर पर इन चरणों के पूरा होने के बाद उत्खनन प्रक्रिया के लिए निविदाएं निकाली जाएंगी। गर्भगृह में ऊपर काम करने के लिए मचान बनाने की योजना भी है।
कोणार्क सूर्य मंदिर तीन मंडपों में बना हुआ है। इनमें से दो मंडप ढह चुके हैं, लेकिन तीसरे मंडप में जहां प्रतिमा थी, आजादी से पहले अंग्रेजों ने वहां रेत और पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को बंद कर दिया, ताकि मंदिर और क्षतिग्रस्त न हो पाए। इस मंदिर में सूर्य की तीन प्रतिमाएं हैं, जो एक ही पत्थर से बनी हुई है। माना जाता है कि 1236-1264 ई.पू.में गंगा साम्राज्य के राजा नरसिंह देव ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। लाल बलुआ पत्थरों और काले ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित यह मंदिर भारत का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। कलिंग शैली में बने इस मंदिर को सूर्य के रथ के आकार में बनाया गया है, जिसमे एक जैसे पत्थर के 24 पहिये और 7 घोड़े बने हुए हैं। लेकिन वर्तमान में 7 में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो शेरों को रक्षात्मक मुद्रा में हाथियों पर दिखाया गया है।
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