रूस के सर्वोच्च न्यायालय ने देश में कार्यरत सबसे पुराने और सबसे प्रमुख मानवाधिकार संगठन मेमोरियल पर रोक लगाने का फैसला सुनाकर अनेक लोगों को हैरानी में डाल दिया है। देश की जनता के एक वर्ग में अदालत के इस आदेश को लेकर कड़ी नाराजगी है। इसे कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, मीडिया के एक वर्ग तथा विपक्षी दलों के समर्थकों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई की ही अगली कड़ी बताया जा रहा है।
रूस के महाभियोजक दफ्तर ने मेमारियल नामक इस मानवाधिकार संगठन का कानूनी दर्जा खत्म करने हेतु गत माह सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी। बताते हैं कि यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने पूर्व सोवियत संघ के जमाने में राजनीतिक दमन पर किए अपने शोध को लेकर चर्चा में आया था। पता यह भी चला है कि आज रूस और कुछ अन्य देशों में इस संगठन के तहत 50 से ज्यादा छोटे-बड़े संगठन कार्यरत हैं।
अदालत के इस फैसले से रूस के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में चर्चाओं का दौर चल निकला है। जहां एक तरफ 'मेमोरियल' तथा उसके शुभचिंतकों ने पुतिन सरकार द्वारा संस्था पर लगाए आरोपों के पीछे राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है तो वहीं मेमोरियल के नेताओं ने देश की सबसे बड़ी अदालत के प्रतिबंध के आदेश के बावजूद अपनी गतिविधियां आगे करते रहने की बात करके शासन को एक चुनौती जैसी दी है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने रूस के महाभियोजक की याचिका पर 28 दिसम्बर को अपना फैसला सुनाते हुए मेमोरियल पर प्रतिबंध लगाया है। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि 'मेमोरियल' सोवियत संघ की छवि आतंकवादी राज्य की बनाता है। यह संगठन नाजी अपराधियों की हरकतों पर पर्दा डालने का काम करता है तथा उनके पुनर्वास में मदद करता है।
रूस द्वारा इसी मेमोरियल संगठन को 2016 में ‘विदेशी एजेंट’ ठहराया गया था। कानूनन अगर कोई संस्था विदेशी एजेंट ठहरा दी जाती है तो सरकार अपनी तरफ से उस पर पैनी नजर रखने लगती है, उसके कामों को और बारीकी से देखा जाता है। इससे ऐसे दागी संस्था या गुट की साख पर बट्टा लगता है। अभियोजन पक्ष की तरफ से आरोप लगाया गया था कि मेमोरियल ने उन तमाम कायदों का उल्लंघन किया था जिनका विदेशी एजेंट ठहराए गए किसी संगठन को पालन करना चाहिए। संस्था ने इस बारे में अपनी पहचान भी छुपाई थी।
अदालत के इस फैसले से रूस के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में चर्चाओं का दौर चल निकला है। जहां एक तरफ 'मेमोरियल' तथा उसके शुभचिंतकों ने पुतिन सरकार द्वारा संस्था पर लगाए आरोपों के पीछे राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है तो वहीं मेमोरियल के नेताओं ने देश की सबसे बड़ी अदालत के प्रतिबंध के आदेश के बावजूद अपनी गतिविधियां आगे करते रहने की बात करके शासन को एक चुनौती जैसी दी है।
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