खालिद उमर की फेसबुक वाल से
भारत में ‘इस्लामिक मदरसों’ के 1,000 साल पुराने जीर्ण-शीर्ण संस्थान को खत्म कर दिया जाए तो नरेंद्र मोदी इतिहास रच सकते हैं। ‘एक देश-एक पाठ्यचर्या’ भारत में सांप्रदायिक सद्भाव और शांति का नुस्खा है। भारत को समान नागरिक संहिता से पहले, एक समान शिक्षा संहिता की आवश्यकता है। सभी के लिए एक पाठ्यक्रम। भारत की राजधानी में ही जहां 3,000 मदरसों में 1700 के दशक में विकसित पाठ्यक्रम में 3,60,000 युवा दिमाग फंसे हुए हैं, तो आप देश भर के 6,00,000 मदरसों के अलावा संलग्न मकतब या मदरसों वाली 40-50 लाख मस्जिदों में नामांकित बच्चों, किशोरों के साथ देश को आगे ले जाने का सपना नहीं देख सकते।
मदरसों में क्या पढ़ाया जाता है?
मदरसा एक विशिष्ट मजहबी स्कूल है, जहां मुस्लिम बच्चों को कुरान, शरिया, हदीस, आक्रमणों का इस्लामी इतिहास (जिहाद) पढ़ाया जाता है। भारत में इस्लामी मदरसों की संस्था उतनी ही पुरानी है जितना कि भारत में इस्लाम का इतिहास। मान लीजिए 1000 साल। इनका पाठ्यक्रम छात्रों को सभी गैर-मुस्लिमों, विशेष रूप से हिंदू, जो मूर्तिपूजक होने के कारण घृणास्पद इनसान कहलाते हैं, जिन्हें 'काफिर' कहा जाता है, से घृणा करना सिखाता है। गजवा-ए-हिंद (जिहाद के माध्यम से पूरे भारत में इस्लामी शासन की स्थापना का लक्ष्य) भी भारत और पाकिस्तान दोनों में लगभग हर मदरसे में पढ़ाया जाता है। ये मदरसे घृणा, भय और झूठे अभिमान से भरे मनो-मस्तिष्क का निर्माण करते हैं। इस जीर्ण-शीर्ण संस्था में सुधार नहीं किया जा सकता। एकमुश्त खत्म कर देना ही इसका समाधान है। उनकी मदद करना अपना स्वयं का मृत्युलेख लिखना है।
यूपीए सरकार ने एक गलत सोच वाली योजना शुरू की। 2009-10 में ‘मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना’ (एसपीक्यूईएम) मदरसों और मकतबों को औपचारिक विषयों यानी विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन, हिंदी और अंग्रेजी को शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए लागू की गई। यह योजना अभी भी देश के 18 राज्यों में चल रही है। इसलिए अब तक एसपीक्यूईएम के तहत, विभिन्न राज्यों में फैले 21,000 से अधिक मदरसों को 1,138 करोड़ रुपये दिए गए हैं। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, केवल उत्तर प्रदेश में 8,584 मदरसों में 18,27,566 बच्चे हैं।
यह नासमझ मूर्खता है
इनमें पढ़ाई जाने वाली मूल इस्लामी मजहबी किताबें पंथनिरपेक्ष और मानवतावादी नहीं बना सकतीं। कांग्रेस द्वारा शुरू की गई यह योजना समय और राजकोष की सरासर हानि है और इसे तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए।
मदरसों को सुधारा क्यों नहीं जा सकता
इस्लामी शिक्षा और आधुनिक शिक्षा एक साथ नहीं रह सकती। क्या मदरसे के छात्र विज्ञान पर भरोसा करेंगे जो कहता है कि पृथ्वी गोलाकार है और सूर्य के चारों ओर घूमती है या कुरान पर विश्वास करेंगे जो कहता है, पृथ्वी चपटी है और सूर्य झील के गंदे पानी में डूबता है? आप उन्हें सद्भाव और प्रेम कैसे सिखा सकते हैं जब वे कुरान से सीखते हैं कि सभी मूर्तिपूजक अनन्त नरक की आग में भेजे जाते हैं?
मोदी सरकार को तुरंत क्या करना चाहिए?
- सभी मदरसों का राष्ट्रीयकरण, पंजीकरण होना चाहिए और शिक्षकों, प्रशासकों और पाठ्यक्रम को नियुक्त करने का अधिकार राज्य के पास होना चाहिए। उनकी वित्तीय और आय के स्रोत की जांच की जाए। सभी मदरसों को सभी समुदायों के लिए खुले आधुनिक स्कूलों में परिवर्तित किया जाए। समुदाय विशेष, संगठित और संस्थागत पांथिक शिक्षा को किसी भी पंथ-मजहब के लिए समाप्त कर देना चाहिए। सभी बच्चों को एक समान पाठ्यक्रम पढ़ाया जाना चाहिए।
- सभी मस्जिदों की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग के जरिए निगरानी की जानी चाहिए कि वहां क्या पढ़ाया और सिखाया जा रहा है। यह कोई संयोग नहीं है कि भारतीय शहरों में हर दंगा जुमे की नमाज के बाद शुक्रवार को शुरू होता है। अगर चीन और मिस्र मस्जिदों को नियंत्रित कर सकते हैं, तो दूसरा सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश भारत क्यों नहीं? यदि आप मुल्ला, मस्जिद और मदरसे को नियंत्रित नहीं करते हैं, तो भारत में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव एक खोखला सपना बनकर रह जाएगा।
(लेखक मूल रूप से लाहौर, पाकिस्तान के निवासी हैं और यूके में बैरिस्टर के रूप में कार्यरत हैं।
उन्हें सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से पढ़ा जाता है)
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