डॉ अरविंद कुमार शुक्ल
सन 1881 ईसवी में युवा मदन मोहन का विवाह जब 20 वर्ष की अवस्था में प्रसिद्ध विद्वान पंडित नंदराम जी की तृतीय पुत्री कुंदन देवी से हुआ तो भविष्य के महामना म्योर सेंट्रल कॉलेज, प्रयाग के छात्र थे। उस समय म्योर सेंट्रल कॉलेज के प्राचार्य प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान हैरिसन थे। युवा मदन मोहन की वाग्मिता से प्रभावित हैरिसन ने जब कालिदास रचित 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' के मंचन में शकुंतला का और शेक्सपियर द्वारा रचित 'मर्चेंट ऑफ वेनिस' के मंचन में पर्शिया की भूमिका का निर्वहन करते हुए युवा मदन मोहन को देखा तो अभिनय से स्तब्ध रह गए। किंतु संभवतया उन्होंने यह न सोचा होगा कि यह युवा न केवल भविष्य में भारत का सर्वमान्य नेता बनेगा और साथ ही साथ स्त्री पात्र को नाटक में कुशल रुप से मंचित करने वाला यह नौजवान स्त्रियों के उत्थान का अग्रचेता बनेगा। वही नौजवान इस मंचन के ठीक 12 वर्ष बाद जो अब महामना मालवीय के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका था। सन 1904 ई. में गौरी पाठशाला की स्थापना करता है। यह क्रम यहीं विराम नहीं लेता, बल्कि विस्तार प्राप्त करता है। हिंदू विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित संकाय के रूप में महामना के द्वारा सन 1929 में जब गौरी पाठशाला का रजत वर्ष चल रहा होता है तब महिला महाविद्यालय की स्थापना का पवित्र यज्ञ संपादित होता है। महामना का यह कदम आधुनिक भारत में पुनः गार्गी और मैत्रयी के पुनरूत्थान की संभावनाओं का द्वार खोल देता है।
महामना अपने निजी जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन में स्त्री शक्ति की महत्ता को न केवल स्वीकार करते हैं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भव्यता प्रदान करते हैं। मालवीय जी ने अपने 75वीं वर्षगांठ के अभिनंदन समारोह मे कहा कि मेरी मां ही मेरी सबसे बड़ी पथ प्रदर्शक रही हैं। मैंने मां के शिक्षा को मूल मानते हुए जीवन में यह ध्येय बना रखा था कि मैं आजीवन ऐसा कार्य नहीं करूंगा, जिसे मैं लज्जित हुए बिना अपनी माताजी से न कह सुनाऊं। मालवीय जी स्त्री शक्ति को काम्या और भोग्या की अवधारणा से बाहर निकाल कर साम्या और आराध्या के रूप में प्रतिष्ठित करने के प्रबल पक्षधर थे। इसीलिए लेजिसलेटिव काउंसिल के बहस में वे देवदासी प्रथा का प्रबल विरोध करते हुए कहते हैं कि देवदासी प्रथा को किसी भी रूप में धार्मिक स्वीकृति नहीं प्राप्त है। इस पाप के पक्ष में कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्वीकृति की पुष्टि का साक्ष्य नहीं प्रस्तुत कर सकता। देवदासी प्रथा को जड़ मूल से उच्चाटित करने का आह्वान करते हुए महामना कहते हैं कि लज्जा जनक जीवन जीने को विवश करने वाले इस कलंक को हर हाल में निश्चित रूप से मिटाना होगा। मालवीय जी स्त्रियों पर अत्याचार करने वाले को कठोर दंड देने के प्रबल पक्षधर थे। वह मनुस्मृति के इस आदेश का बार-बार उल्लेख करते थे। गुरुंवा बाल -वृद्धौ व विप्रं वा वेद पारगम्।आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन्। (यदि गुरु, बालक, वृद्ध या वेदज्ञ ब्राह्मण भी आततायी होकर धन-जन की हानि करने, स्त्रियों पर अत्याचार करने, धार्मिक स्थानों को अपवित्र करने, आग लगाने या मारने आ जाए तो उसका तत्काल वध कर डालना चाहिए )
मालवीय जी से प्रभावित एनी बेसेंट कहती हैं कि मैं यह कहने का साहस करती हूं कि आज पंडित मालवीय जी मत भिन्नता के इस कालखंड में भारतीय एकता के प्रतीक हैं। आज जब पुनः एक बार स्त्री के विवाह के आयु पर राष्ट्रीय बहस चल रही है तब मालवीय जी पुनः प्रासंगिक होते हैं। काशी में ही हिंदू महासभा के सातवें अधिवेशन में भी स्त्री शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए कहते हैं कि भारतीय परंपरा में स्त्री की श्रेष्ठता को मनुस्मृति इन शब्दों में व्यक्त करता है उपाध्यात् दश आचार्य : आचार्याणां शतं पिता। सहस्त्रं तु पितृन माता गौरवेण अतिरिच्यते।। एक आचार्य उपाध्याय से दश गुणा श्रेष्ठ होता है, एक पिता सौ आचार्य के समान होते हैं। माता-पिता से हजार गुणा श्रेष्ठ होती हैं।
भोजन कक्ष में उपस्थित होने पर अपनी पत्नी से संसार के सबसे बड़े भिक्षुक मालवीय का यह कहना कि हे अन्नपूर्णा भिक्षुक को बिछा दो स्त्री शक्ति के सदस्यता की स्थापना का प्रयास है। आध्यात्मिक रूप से भी मालवीय जी स्त्री शक्ति के प्रबल पूजक थे इसी हेतु उनकी गाय, गीता, गंगा और गायत्री में प्रबल आस्था उल्लेखनीय है।
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