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भारतीय खेलों का लेखा-जोखा- 2021 : ऐतिहासिक उपलब्धियां

by WEB DESK
Dec 23, 2021, 08:15 am IST
in भारत, दिल्ली
नीरज चोपड़ा

नीरज चोपड़ा

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खेल की दृष्टि से बीत रहे वर्ष को यदि एक शब्द में बताना हो तो वह शब्द है ऐतिहासिक। नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण जीत ओलंपिक ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में भारत को पहला पदक दिला इतिहास रचा तो भारतीय हॉकी टीम ने 41 वर्ष बाद लय में लौटते हुए पदक जीता। पैरालंपिक में भारतीय टीम ने अब तक के पैरालंपिक खेलों में जीते पदकों से 7 अधिक अकेले इस वर्ष जीते

ऐतिहासिक… संक्षेप में अगर किसी भी क्षेत्र में इस वर्ष भारत की उपलब्धियों को गिनाना हो तो उसके लिए सबसे उपयुक्त एकमात्र शब्द है ‘ऐतिहासिक’। बीत रहे साल 2021 में भारतीय खेल जगत की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही। टोक्यो ओलंपिक व पैरालंपिक में भारतीय दल ने न केवल सर्वाधिक पदक जीत स्वर्णाक्षरों में इतिहास में नाम दर्ज किया, बल्कि कुछेक स्पर्धाओं में तो एक महाशक्ति बनने की दिशा में मजबूती से कदम भी बढ़ाए हैं। इसके अलावा टी-20 विश्व कप को छोड़ भारतीय टीम ने विश्व क्रिकेट जगत में अपना दबदबा निरंतर बनाए रखा। वर्ष 2013 से लेकर अब तक भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड को मात देकर अपनी धरती पर लगातार 14वीं टेस्ट शृंखला जीतते हुए बड़ी उपलब्धि हासिल की। यही नहीं, भारतीय टीम ने दो टेस्ट मैचों की शृंखला में न्यूजीलैंड को मुंबई टेस्ट में 372 रनों से हराकर रनों के लिहाज से अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। इसके अलावा बैडमिंटन, कुश्ती और हॉकी में भी भारतीय टीम या खिलाड़ी आशानुरूप अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहे।

टोक्यो में फहराया विजय ध्वज
टोक्यो में भारतीय खिलाड़ियों ने विश्व खेल जगत को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि ओलंपिक खेलों में अब वे महज भागीदारी के लिए नहीं, बल्कि पदक की दावेदारी पेश करने के इरादे से मैदान में उतरते हैं। इस क्रम में सरकार की ओर से खिलाड़ियों को दी जाने वाली मदद और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विशेष तौर पर ओलंपिक में भाग लेने गए खिलाड़ियों को दिया जाने वाला प्रोत्साहन उद्भुत उदाहरण था। कोई एक दशक से पहले तक ओलंपिक में भागीदारी को ही महान उपलब्धि मान ली जाती थी। खिलाड़ी इतने में ही खुश हो जाते थे और सरकार के पास खेल जगत की उपलब्धियां गिनाने को कुछ विशेष नहीं होता था। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं की कमी और प्रशिक्षण के कोई ज्यादा मौके न मिल पाने के बावजूद सरकार ने सुनियोजित तरीके से भारत के पदक के दावेदार खिलाड़ियों पर ध्यान केंद्रित किया और नतीजा सबके सामने है। नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण जीत ओलंपिक ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में भारत को पहला पदक दिला इतिहास रचा तो उनके साथी खिलाड़ियों मीराबाई चानू (भारोत्तोलन), रवि दहिया (कुश्ती), पी.वी. सिंधू (बैडमिंटन), लवलीना बोगोर्हेन (मुक्केबाजी) व बजरंग पूनिया (कुश्ती) सहित पुरुष हॉकी टीम ने पदक विजेता मंच पर शान से विजय पताका फहराई। इस क्रम में अब तक का सबसे बड़ा भारतीय दल (126 सदस्य) एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदक जीत ओलंपिक खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल रहा। इससे पहले लंदन ओलंपिक में भारत ने कुल 6 पदक जीते थे जो देश का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।

नीरज ने एथलेटिक्स में रचा इतिहास
41 वर्ष बाद ओलंपिक खेलों में भारतीय राष्ट्रगान की धुन एक बार फिर गूंजी। इस गौरवपूर्ण क्षण को अरसे तक याद रखा जाएगा। इस अविस्मरणीय उपलब्धि को हासिल करने का श्रेय पानीपत (हरियाणा) के 23 वर्षीय नीरज चोपड़ा को मिला। नीरज ने पुरुष भाला फेंक स्पर्धा के फाइनल में 87.58 मीटर दूरी तक भाला फेंकते हुए ओलंपिक खेलों की किसी भी ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धा में भारत के लिए पहला पदक जीता। नीरज ने पहली बार ओलंपिक खेलों में भाग लेते हुए करोड़ों भारतीय खेलप्रेमियों के सपने साकार कर दिए। इस क्रम में नीरज ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धाओं में स्वर्ण जीतने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी भी बने। इससे पहले 2008 बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा (शूटिंग) ने भारत के लिए पहला ओलंपिक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता था।

नीरज के अलावा कुश्ती में सुशील कुमार व योगेश्वर दत्त ने ओलंपिक खेलों में भारत को जो प्रतिष्ठा दिलाई है, उसे रवि दहिया और बजरंग पूनिया ने पदक जीतकर बरकरार रखा। यही नहीं, दीपक पूनिया अगर कांस्य पदक के मुकाबले में अंतिम 15 सेकेंड तक मिली बढ़त को कायम रखते तो भारत के खाते में पहली बार एक ही ओलंपिक खेलों में कुश्ती के तीन पदक होते। टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारतीय निशानेबाजी दल ने खाली हाथ लौटते हुए खेलप्रेमियों को जबरदस्त निराश किया, लेकिन बैडमिंटन में पी.वी. सिंधू, मुक्केबाजी में लवलीना और महिला भारोत्तोलन में मीराबाई चानू पदक विजेता मंच तक का सफर तय कर भारत के लिए आशातीत चुनौती पेश करने में सफल रहीं।

हॉकी के गौरवपूर्ण दिन लौटे
ओलंपिक खेलों में पदक के लिए पिछले 41 वर्ष से इंतजार कर रही भारतीय हॉकी टीम का सपना अंतत: टोक्यो में पूरा हुआ। भारतीय पुरुष टीम ने एक रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हराकर ओलंपिक का कांस्य पदक जीता। हालांकि भारतीय पुरुष टीम के स्वर्ण पदक के करीब न पहुंच पाने को लेकर खेल विशेषज्ञों ने निराशा जताई, लेकिन ओलंपिक पदक का रंग विशेष मायने नहीं रखता। भारत ओलंपिक खेलों के इतिहास में हॉकी के 8 स्वर्ण सहित कुल 12 पदक जीत अमिट छाप छोड़ चुका है। भारत ने 1980 मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था जो उसका ओलंपिक हॉकी का अंतिम पदक था। यही नहीं, 1972 म्यूनिख ओलंपिक के बाद भारत ने एक बार फिर से कांस्य पदक जीता है जो भारतीय हॉकी के लिए संजीवनी का काम करेगा। वास्तव में उसकी झलक दिखनी शुरू हो गई है। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व प्रशिक्षक हरेन्द्र सिंह ने कहा भी कि ऐसा नहीं है कि भारतीय खिलाड़ियों की प्रतिभा कहीं लुप्त हो गई थी। भारतीय खिलाड़ी बार-बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल होते थे, लेकिन पोडियम तक पहुंच पाने में चूक रहे थे। अब वह लक्ष्य हासिल कर लिया गया है तो उम्मीद करनी चाहिए कि भारतीय हॉकी का यहां से उत्तरोतर विकास शुरू हो जाएगा।

कुछ ऐसा ही कमाल महिला हॉकी टीम ने कर दिखाया। तीन बार की ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता आॅस्ट्रेलियाई टीम को 1-0 से मात देकर ओलंपिक खेलों में पहली बार सेमीफाइनल में प्रवेश किया जो एक बड़ी उपलब्धि रही। जिस महिला हॉकी टीम की मेहनत और प्रतिभा को ज्यादातर विशेषज्ञ नकार कर चल रहे थे, रानी रामपाल के नेतृत्व में उसी टीम ने दिखा दिया कि अगर जीत का जज्बा हो तो विश्व की नंबर तीन वरीय आॅस्ट्रेलियाई टीम को भी मात दी जा सकती है।

पैरालंपिक खेलों में भी जलवा
टोक्यो पैरालंपिक का मंच महज खेलों का एक महाकुंभ भर नहीं था। वहां उन खिलाड़ियों के जीवन के संघर्षों के जीवंत उदाहरणों ने दुनिया को प्रेरित किया – हार के आगे जीत है। इस क्रम में भारतीय दल ने टोक्यो में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए इस बार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के जो वादे किए थे, उन्हें पूरा कर दिखाया। निशानेबाजी से लेकर बैडमिंटन, एथलेटिक्स, टेबल टेनिस और तीरंदाजी स्पर्धाओं में धूम मचाते हुए भारतीय खिलाड़ियों ने पैरालंपिक खेलों में पांच स्वर्ण सहित कुल 19 पदक जीत अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। पैरालंपिक खेलों के इतिहास में भारत ने अब तक कुल 12 पदक जीते थे और इस बार एक ही पैरालंपिक में अब तक के कुल पदकों से 7 अधिक पदक अपनी झोली में डाल लिए। भारत ने इस बार सर्वाधिक 54 पैरालंपियनों का दल भेजा था जिन्होंने कुल 9 खेल स्पर्धाओं में भाग लिया। इस दल के 17 खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पदक विजेता मंच पर भारतीय परचम लहराया जिनमें निशानेबाज अवनी लेखरा और सिंहराज अधाना ने दो-दो पदक अपने नाम किए।

राजस्थान के चूरू जिले के देवेंद्र झांझरिया ने खुद को भारत का अब तक का महानतम पैरालंपिक खिलाड़ी साबित किया। देवेंद्र ने पिछले 17 वर्ष में तीन पैरालंपिक खेलों में भाग लेते हुए तीनों ही मौके पर पदक जीते हैं। 40 वर्षीय देवेंद्र ने 2004 एथेंस और 2016 रियो पैरालंपिक खेलों की पुरुषों की एफ-46 भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण और 2020 टोक्यो पैरालंपिक में रजत पदक जीता हैं। देवेंद्र कुल तीन व्यक्तिगत पैरालंपिक पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं।

इसी क्रम में तमिलनाडु के सालेम जिले में एक बेहद गरीब और अन्य परेशानियों से त्रस्त परिवार के बेटे मरियप्पन थांगवेलू ने मौत को मात देते हुए देश का नाम रोशन करने का जिम्मा उठा रखा है। छोटे कद के 26 वर्षीय मरियप्पन ने नित नई ऊंचाइयां लांघते हुए पैरालंपिक खेलों में एक स्वर्ण (2016 रियो) और एक रजत पदक (2020 टोक्यो – 1.86 मीटर) जीत इतिहास रचा। मरियप्पन के साथ ही पुरुषों की टी-63 स्पर्धा में पटना के शरद कुमार ने कांस्य पदक (1.83 मीटर) जीता।

शटल की ऊंची उड़ान
इस बार टोक्यो पैरालंपिक खेलों में भारत ने विश्व बैडमिंटन जगत की एक महाशक्ति बनने की दिशा में एक सशक्त कदम आगे बढ़ा दिया है। भारत ने दो स्वर्ण सहित कुल चार पदक जीत इतिहास रचा। इस क्रम में 4.6 फीट से भी कम कद के कृष्णा नागर और प्रमोद भगत ने स्वर्ण जीता, जबकि गौतम बुद्ध नगर के डीएम सुहास यतिराज ने रजत और मनोज सरकार ने कांस्य पदक अपने नाम किए। 
 

प्रधानमंत्री ने भी रचा इतिहास

नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पहला और वह भी स्वर्ण पदक जीत इतिहास रचा। ओलंपिक खेलों में भारतीय एथलेटिक्स की उपलब्धियों की जब भी चर्चाएं होंगी, नीरज को सबसे पहले याद किया जाएगा। कुछ ऐसा ही सुंदर उदाहरण पेश किया भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। नीरज चोपड़ा सहित तमाम प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने जब-जब टोक्यो ओलंपिक में देश का मान बढ़ाया, तब-तब देश के प्रधानमंत्री ने उनका हौसला बढ़ाया, देश का मान बढ़ाने पर उन्हें बधाई दी, खेल महाशक्ति बनने के लिए उन्हें प्रेरित किया और जो खिलाड़ी या टीम पदक के करीब आकर भी उससे चूक गए, उन्हें भी बधाई दी, उनका भी मनोबल बढ़ाया। इस अद्वितीय परंपरा को भविष्य में कोई और शीर्ष राजनेता आगे बढ़ाएगा या नहीं, यह बता पाना मुश्किल है। लेकिन इसमें कोई शंका नहीं है कि इस अद्भुत परंपरा की शुरुआत नरेन्द्र मोदी ने की है। ओलंपिक खेलों के इतिहास में भारतीय एथलीटों ने टोक्यो में जैसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर भारतीय खेल जगत को एक नई दिशा दी है, ठीक उसी तरह मोदी जी ने देश के खिलाड़ियों के साथ भावनात्मक लगाव का अप्रतिम उदाहरण पेश किया है।

भारतीय खिलाड़ी हुए भावविभोर
एक-दो विशेष मौकों को छोड़ याद नहीं आता कि भारत के किसी शीर्षस्थ राजनेता ने भारतीय खेलों में इतनी गहरी रुचि दिखाई हो या फिर ओलंपिक जैसे महाकुंभ में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने का इतना ईमानदार प्रयास किया हो। टोक्यो ओलंपिक से पहले यह खिलाड़ियों का दुर्भाग्य रहा। लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक खेलों के शुभारंभ से पहले से लेकर अंतिम दिन तक प्रधानमंत्री ने जिस तरह खिलाड़ियों के साथ संपर्क बनाए रखा, उनका अतिप्रिय व्यवहार भारतीय खिलाड़ियों से लेकर तमाम खेलप्रेमियों को भाव-विभोर कर गया।

नए भारत का नायाब उदाहरण
भीषण आर्थिक तंगी व विपरीत परिस्थितियों से पार पाते हुए ओलंपिक पोडियम तक का सफर तय करने वाली मीराबाई चानू हो या धान के खेतों में बुआई करने वाली लवलीना बोगोर्हेन, दोनों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी उपलब्धियों पर बधाई देने वालों में या गुणगान करने वालों में सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री मोदी होंगे। इसी तरह टोक्यो ओलंपिक के पदकवीर रवि दहिया, पी.वी. सिंधू और बजरंग पूनिया को अपनी प्रतिभा के अनुरूप पदक न मिल पाने के बावजूद प्रधानमंत्री उन्हें बधाई देने और उज्ज्वल भविष्य की ओर देखने के लिए प्रेरित करने में सबसे आगे रहे। ऐसे वाकये कभी-कभी देखने को मिलते हैं। स्वर्णिम दिनों की ओर लौटती भारतीय पुरुष हॉकी टीम और नीरज चोपड़ा के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठा लिया। इन सबसे भी बड़ा भावुक पल तब आया जब ओलंपिक में पहली बार सेमीफाइनल में पहुंचने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम कांस्य पदक का मुकाबला हारकर बुरी तरह से निराश थी तो मोदी जी उन्हें अपने बच्चे की तरह ढांढस बंधाते दिखे। कप्तान रानी रामपाल सहित सभी भारतीय खिलाड़ी एक ओर सुबक रही थीं तो प्रधानमंत्री उन्हें बता रहे थे कि कैसे शीर्ष पर जाने की ओर उन्होंने कदम बढ़ाए हैं। प्रधानमंत्री ने उन्हें आभास कराया कि पदक न जीत पाने के बावजूद उन्होंने विश्व चैंपियन व ओलंपिक चैंपियन टीमों को धूल चटाई है। उन्हें बताया कि यह दुखी होने का नहीं, दमदार कदम आगे बढ़ाने की शुरुआत पर जश्न मनाने का समय है। कमोबेश ऐसे ही उत्साहवर्धक संदेश प्रधानमंत्री ने कांस्य पदक से चूक गए पहलवान दीपक पूनिया और महिला गोल्फर अदिति अशोक को भी दिए जो पदक भले ही न जीत पाए पर खेलप्रेमियों का दिल जीतने में जरूर सफल रहे। यह एक नए भारत, नए भारतीय खेल जगत की तस्वीर है जिसमें अब हमारे खिलाड़ी अपने शीर्षस्थ राजनेता के प्रोत्साहन के बल पर ओलंपिक महाकुंभ में शीर्षस्थ खिलाड़ियों की कतार में खड़े होने का दम भरते हैं और उसे साबित भी करके दिखाते हैं।

 

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