करवट ले रही काशी की कथा
July 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

करवट ले रही काशी की कथा

by WEB DESK
Dec 21, 2021, 06:08 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
अहिल्या बाई द्वारा पुनर्निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर

अहिल्या बाई द्वारा पुनर्निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर

भारतीय संस्कृति और धर्म की उत्तरजीविता वाकई अद्भुत है। विदेशी आक्रांताओं ने इस देश के आस्था और विश्वास के केंद्रों को कई बार तोड़ा पर भारत की आध्यात्मिक आत्मा को नहीं तोड़ पाए। इसके विपरीत संस्कृति के विरोधी और आस्था के केन्द्रों के ध्वंसकर्ता या तो काल-कवलित हो गए या आज गहरे संकट में हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के संदर्भ में यह बात बार-बार सिद्ध होती है। आक्रांताओं ने इसे कई बार तोड़ा पर हर बार यह पहले से भव्य रूप में आलोकित हुआ
 

 डॉ. धर्मचन्द चौबे

भारत देश की मूल आत्मा आध्यात्मिक है। यहां की धर्मप्राण जनता इस देश को विशेष बनाती है। भारतीय संस्कृति और धर्म की उत्तरजीविता सत्य ही अद्भुत है।  विदेशी आक्रांताओं ने इस देश के आस्था और विश्वास के केंद्रों को कई बार तोड़ा पर भारत की आध्यात्मिक आत्मा को तोड़ नहीं पाए। इसके विपरीत संस्कृति के विरोधी और आस्था के केन्द्र्रों के ध्वंसकर्ता या तो काल-कवलित हो गए या आज गहरे संकट में हैं। कहां हैं आज गोरी, गजनवी, तुगलक, लोदी और मुगलों के वंशज? इस पुण्य और आध्यात्मिक धरती से मंदिरों-मूर्तियों के ध्वंसकर्ता ध्वस्त हो गए,उनके नामोनिशान मिट गए।
 

13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का भव्य उद्घाटन किया। यह एक अविस्मरणीय और ऐतिहासिक क्षण था। यहां इस अविनाशी एवं पुण्य मंदिर क्षेत्र के इतिहास पर एक विहंगम दृस्टि डालना समीचीन होगा।

अनंत अतीत के हिरण्यगर्भ से निकलकर काशी नगरी उसी प्रकार धरित्री का शृंगार बन गई जिस प्रकार ब्रह्माण्ड सृजन के प्रारंभ में ही भगवान् भास्कर व्योम के आभूषण बन गए थे। यूं तो हिमवान से सागर तक गंगा की धारा पन्द्रह सौ मील लम्बी है। पर गंगा ने जैसी अंगड़ाई बनारस में ली है और जो छबीला पैंतरा काशी में भरा है, अन्यत्र दुर्लभ है। मानो शिव की पुरी में आकर गंगा को भगवान् शंकर की जटाओं की याद आ गई हो जिन्हें देखकर भावुक चिरयौवना गंगा भावविह्वल हो उत्तरवाहिनी हो गई हों!

जेम्स प्रिंसेप द्वारा अपने काशी प्रवास के दौरान (1830-1840) बनाया गया काशी विश्वनाथ विश्वेश्वर मंदिर का चित्र

 

काशी की जन्मकुंडली में तीन उच्च ग्रह
गंगा तट के इस ध्रुव बिन्दु पर बसने के कारण काशी की जन्मकुंडली में तीन ग्रह बहुत उच्च गुण के पड़ गए। प्रथम व्यापार और आर्थिक सृजनशीलता का और द्वितीय धर्म-संस्कृति का। काशी जनपद गंगा घाटी का मध्यवर्ती जनपद था जिसके पिछवाड़े की भूमि में कोशल और वत्स जनपद थे, जो कृषि और व्यापार से पोषित थे और सामने के आंगन में मल्ल, विदेह और मगध जनपद धान्य कोठारों की तरह थे जिनकी अपरिमित अन्नराशि काशी की ओर प्रवाहित होती रहती थी, क्योंकि तब तक पाटलिपुत्र का उदय नहीं हुआ था। इस आर्थिक समृद्धि और महत्व को काशी से पंचमुखी राजमार्गों के कटाव को देखकर समझा जा सकता है। तृतीय है अविमुक्तेश्वर काशी, विश्वेश्वर द्वारा काशी को अपना वास स्थान बनाना और इनमें लोक की अटूट और सनातन आस्था। काशी नगरी इतिहास में अविनाशी स्थान के रूप में विश्रुत हो गई जो भौतिक और अमूर्त रूप में आज तक जनमानस में व्याप्त है।

युग-युगीन काशी-केदार क्षेत्र के अधिपति एवं स्वामी अविमुक्तेश्वर भगवान विश्वेश्वर हैं जिन्हें आमजन काशी विश्वनाथ या काशी विश्वेश्वर के नाम से जानता और पूजता है। काशी के स्वामी अविमुक्तेश्वर आदि लिंग हैं। भगवान् शिव का विश्वेश्वर रूप वैभवपूर्ण था और कश्मीरी ग्रंथ कुट्टनीमतम् से ज्ञात होता है कि देश-विदेश में काशी विश्वेश्वर के ऐश्वर्य का फलक अत्यंत विस्तृत था। इसी ऐश्वर्यशाली काशी अधिपति विश्वेश्वर के लुप्त भौतिक स्वरूप को भव्यता प्रदान करने के लिए ‘देश के प्रधान सेवक’ श्री नरेन्द्र्र दामोदर दास मोदी ने 2019 में संकल्प लिया था जिसने अब मूर्त लिया।

काशी खण्ड में मंदिर का भव्य वर्णन
12वीं शताब्दी में विद्यमान काशी विश्वेश्वर के मन्दिर का भव्य वर्णन काशी-खण्ड नामक ग्रंथ में मिलता है। प्रारम्भ में यह मन्दिर अविमुक्तेश्वर शिव का था, जो बाद में विश्वनाथ या विश्वेश्वर रूप में लोकविश्रुत हुआ। 12वीं शताब्दी में इसके पांच मण्डप थे— प्रथम मण्डप गर्भ गृह था, जहां पर आदि लिंग स्थापित था। चारों दिशाओं यथा दक्षिण में मुक्तिमण्डप, उत्तर में ऐश्वर्य मण्डप, पश्चिम में शृंगार या रंग मण्डप और पूर्व में ज्ञान मण्डप था। मुक्ति मण्डप से भगवान् विश्वनाथ को पन्द्रह बार प्रणाम किया जाता था। शृंगार मण्डप में स्थित शृंगार गौरी को भौतिक वस्तुएं अर्पित कर लक्ष्मी प्राप्ति की कामना की जाती थी। वायव्य कोण के छोटे मन्दिर में कालभैरव विराजित थे। सम्पूर्ण मन्दिर को मोक्षलक्ष्मीविलास मन्दिर कहा जाता था। शृंगार मण्डप या रंग मण्डप में बहुत ही उच्चकोटि के नृत्य, वादन, प्रार्थना और स्तुति प्रस्तुत की जाती थी, जिसमें समस्त नगरवासी अपना सहभाग करते थे। पं. नारायण भट्ट ने 1580 ई. में लिखित अपनी पुस्तक त्रिस्थली सेतु में इस मन्दिर को अविमुक्तो विश्वेश्वर: कहा है और इसके टूटने और पुन:-पुन: बनने के कारणों में लोक की इसमें गहरी आस्था को बताया है। (त्रिस्थली सेतु पृ. 296) इसी पुस्तक के आधार पर टोडरमल द्वारा बनवाए मन्दिर का विवरण प्रो. ए.एस. अल्तेकर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री आॅफ बनारस’, 1937 तथा प्रिन्सेप ने ‘व्यू आॅफ बनारस’ में दिया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का वर्तमान दिव्य स्वरूप

मन्दिर भंजन एवं निर्माण का इतिहास
1194 ई. में बनारस और कन्नौज के राजा जयचंद की पराजय के बाद मुहम्मद गोरी के साथ तुर्क काशी आ धमके और लगभग एक हजार मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया। उस समय अविमुक्तेश्वर और विश्वेश्वर नामक दो मन्दिर थे। इन मंदिरों का पुनर्निर्माण राजा विक्रमादित्य ने कराया था जिसे गोरी ने तोड़ा। किन्तु सुल्तान इल्तुतमिश के समय गुजरात के सेठ वास्तुपाल ने एक लाख रुपये के बराबर स्वर्ण खर्च कर मन्दिर को बनवाया। फिरोज तुगलक ने मन्दिर को तोड़ दिया परन्तु मन्दिर शीघ्र ही बना लिया गया। तभी जौनपुर के महमूद शाह शर्की ने काशी विश्वेश्वर के मन्दिर को तोड़ा और उसके मलबे से जौनपुर की लाल मस्जिद बनवाई। तीर्थ चिन्तामणि के अनुसार उस समय (1460 ई.) अविमुक्तेश्वर विश्वनाथ मन्दिर काशी में स्थित था। 1494 ई. में  सिकन्दर लोदी ने काशी विश्वनाथ के मन्दिर को ध्वस्त किया। (त्रिस्थली सेतु, पृ. 295) किन्तु इस स्थान की पूजा-अर्चना होती रही और आदि लिंग सुरक्षित था।

नारायण भट्ट ने कराया था पुनर्निर्माण
काशी में श्री नारायण भट्ट नामक उद्भट विद्वान ने अपनी विद्वता और लोकोपकारिता की आभा बिखेरी थी। भट्ट को आचार्य शंकर का अवतार भी माना गया। धर्मशास्त्र के इस उद्भट विद्वान को भारत के विद्वानों ने जगद्गुरु की उपाधि से विभूषित किया। दक्षिणी भारत के विद्वानों को जो प्रतिष्ठा काशी में मिली, उसके प्रणेता श्री नारायण भट्ट ही थे।

गांधीवंशानुचरित और दानहारावली ग्रंथों के अनुसार आपका सबसे यशस्वी कार्य था मुगलकाल में अरक्षित प्राचीन शिव के ज्योतिर्लिंग पर भव्य शिव मन्दिर का निर्माण करना जो सिकन्दर लोदी के विध्वंस के बाद से ज्ञानवापी के चबूतरे पर स्थापित था। अकबर के दरबारी वित्त-मंत्री राजा टोडरमल भी आपके शुद्ध उच्चारण, सच्चरित्रता, सादा जीवन और धर्मशास्त्रीय ज्ञान के कायल थे। जब वे मुंगेर के सामरिक अभियान से सकुशल लौट रहे थे, तब आपसे मिलकर कुछ सेवा करने की इच्छा व्यक्त की थी (1580 ई.)। तब आपने कातर निगाह से अरक्षित ज्योर्तिलिंग के चबूतरे की तरफ देखा था और आपकी आंखें डब-डबा गई थीं। प्रजावत्सल टोडरमल ने सहायता का वचन देकर प्रस्थान किया था। आपने टोडरमल से प्राप्त आर्थिक सहयोग से  1585 ई. में एक भव्य काशी विश्वेश्वर मन्दिर बनवाया। श्री नारायण भट्ट काशी के भट्ट परिवार में वंश भास्कर थे जिनकी कृति और यश के सुवास से काशी सदियों तक सुवासित रही और रहेगी। आपकी मृत्यु 1589 ई. में लाहौर में हुई थी। आपने महान ग्रंथ त्रिस्थली सेतु की रचना की थी।

18 अप्रैल, 1669 ई. को औरंगजेब ने काशी विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) के मन्दिर को तोड़ने का फरमान जारी किया और 2 सितम्बर, 1669 ई. को उसके सूबेदार ने बादशाह को सूचित किया कि प्रांगण के सभी मन्दिर ध्वस्त कर दिए गए हैं। उसके बाद सूबेदार ने वहां पर ज्ञानमण्डप के पास मस्जिदे-आलमगीरी बनवाई और हिन्दुओं को आतंकित करने के लिए मन्दिर की पश्चिमी दीवार के कुछ अंश और मलबे को यूं ही छोड़ दिया जो आज भी विद्यमान हैं।

काशी गौरव के प्रतीक यहां के महामहोपाध्यायों ने एक और ऐतिहासिक काम किया था। आतताई मुगलों के कई आक्रमणों और मन्दिर ध्वंस के समय काशी विश्वेश्वर के ज्योतिर्लिंग की रक्षा करके इन्होंने धर्मप्राण जनता की आस्था को जीवित रखा। काशी के पण्डितों ने काशी विश्वेश्वर के ज्योतिर्लिंग को ज्ञानवापी कुण्ड में छुपा दिया। कभी गंगा की धारा में छुपा दिया और झंझावात के गुजरते ही लिंग की पुन: स्थापना कर दी। काशी विश्वनाथ मन्दिर के निर्माणकर्ता श्री नारायण भट्ट ने अपनी पुस्तक त्रिस्थली सेतु में इस लिंग की रक्षा का ऐतिहासिक वर्णन किया है।

अहिल्या बाई का योगदान
1780 ई. में इन्दौर की धर्मप्राण महारानी अहिल्या बाई ने काशी विश्वेश्वर एवं आग्नेय कोण पर भगवान शिव के गुरु अविमुक्तेश्वर के लिंग की स्थापना  करवाई। कुछ वर्षों के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने मन्दिर के गुम्बदों पर 27 मन और 14 मन सोने के पत्तर चढ़वाए। हम कह सकते हैं कि भारत की धर्मप्राण जनता ने कभी विधर्मियों के सामने हार नहीं मानी और कन्दुकपातेव पतत्यार्थ: पतन्नपिह्ण अर्थात् आक्रमणों और अत्याचारों को झेलने और फिर उठ खड़ा होने के मुहावरे को चरितार्थ किया। हिन्दू प्राण जनता अपनी परम्परा, संस्कृति और धर्म पर अडिग रही।

काशी विश्वनाथ में उसकी परम श्रद्धा बार-बार मन्दिर को तोड़े जाने के बाद और बलवती होती गई। जब औरंगजेब ने भरे दरबार में वृद्ध बरहमन शायर चन्द्र्रभानु को चिढ़ाया तो उन्होंने कहा था कि  ‘मैं वो सनातनी फारसी  शायर हूं, गर सौ बार भी काबा जाऊं तब भी बिरहमन बन के ही लौटूंगा’- औरंगजेब यह सुन अवाक् रह गया था। चौक मैदागिन (मंदाकिनी) विश्वेश्वरगंज, मछोदरी, वर्तमान गोलगड्डा, राजघाट और वरुणा नदी के मुहाने तक हजारों लिंग और मन्दिर थे जो आज कहीं नहीं दिखते हालांकि इनका विस्तृत वर्णन तीर्थप्रकाश (1620 ई.), तीर्थचिंतामणि (1460 ई.), काशीखण्ड और काशी रहस्य ग्रंथों में मिलता है। प्राचीन काशी राजघाट के आसपास काफी सघन बसावट थी। किन्तु आज इतिहास ने करवट ली है और गंगा तथा देवताओं से पोषित संस्कृति और धर्म विधर्मियों के पराभव के लिए
तैयार है। मुस्लिम चिंतक हाली ने 1877 ई. में इसकी घोषणा कर दी थी –
वो दीने इलाही का बेबाक बेड़ा न काबा में ठिठका न बसरा में झिझका।
किये जिसने सातों समंदर को पार वो आकर के गंगा दहाने पर डुबका।।
(अर्थात् इस्लाम का बेड़ा अगर गर्क हुआ तो गंगा निर्मित पोषित संस्कृति के दह पर हुआ।)

(लेखक राष्ट्रीय प्राधिकृत समिति,राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ,नई दिल्ली के सदस्य हैं)

 


विश्वेश्वर के प्राचीन मंदिर की योजना

यह थी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता

प्रिंसेप के अनुसार विश्वनाथ मन्दिर के वर्गाकार प्रांगण की लम्बाई 124 फुट थी, जिसमें पांच मण्डप स्थित थे। प्रांगण की प्राचीर 30 फुट ऊंची थी। डा. अल्तेकर का अनुमान है कि गर्भगृह के शिखर की ऊंचाई 128 फुट थी और शेष चारों मण्डपों के शिखर 64 फुट ऊंचे थे। बाकी अन्य गणेश और कालभैरव के मण्डप शिखर की ऊंचाई लगभग 48 फुट थी। प्रांगण में नौ शिखरों वाले मन्दिर बहुत ही अभिराम और भव्य दृश्य उपस्थित करते थे।
 
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज

रायगढ़ का किला, छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज्य

शुभांशु की ऐतिहासिक यात्रा और भारत की अंतरिक्ष रणनीति का नया युग : ‘स्पेस लीडर’ बनने की दिशा में अग्रसर भारत

सीएम धामी का पर्यटन से रोजगार पर फोकस, कहा- ‘मुझे पर्यटन में रोजगार की बढ़ती संख्या चाहिए’

बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies