प्रो. योगेंद्र मिश्र
विश्व का सबसे प्राचीनतम जीवित जाग्रत शहर काशी, बनारस, वाराणसी, सनातन काल से आध्यात्मिक ऊर्जा से युक्त भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी, सनातन धर्म का केंद्र काशी योग, अवधूत, औघड़पन, फक्कड़पन का तंत्र, मन्त्र, निगम, आगम, वेद, वेदांग सबकी धुरी है। काशी निर्बन्ध है। चिर-चैतन्य काशी की चेतना में अलग स्पंदन है, आभा है। काशी शब्दों की नहीं संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी जब करवट लेती है, तो विश्व का भाग्योदय होता है। काशी में मृत्यु भी मंगल है। काशी में सत्य ही संस्कार है, काशी जगतनियन्ता, पंचभूतों के नियंत्रक, सृष्टि के संहारक डमरू वाले का रमणीक धाम है। त्रेतायुग में त्रिपथगामिनी मां भागीरथी ने काशी की चौहद्दी में आते ही अपनी धारा बदलकर उत्तरवाहिनी कर ली।
काशी में सर्वत्र जड़-चेतन विश्वेश्वरमय है। काशी अनन्त है। काशी पूर्ण है। प्रेरणा की, जिज्ञासा की, समाधान की भूमि है, जिसका पृथ्वी से कोई सम्बन्ध नहीं है। काशी शिव के त्रिशूल के ऊपर अवस्थित है। तभी तो स्वप्न में समूची धरती दान करने वाले इक्ष्वाकु वंशज चक्रवर्ती सम्राट राजा हरिश्चन्द्र ने राजदरबार के ज्योतिषियों की सलाह पर काशी में राजा डोम की चौकीदारी की।
सबके सोपानों का गन्तव्य
काशी सबके सोपानों का गन्तव्य है। जगद्गुरु शंकराचार्य को चाण्डाल से अद्वैत की सिद्धि मिली। बुद्ध को बुद्धत्त्व, रामानन्दाचार्य को रामत्व, रैदास को गंगा का गंगत्व, कबीर को निर्गुण राम, वल्लभाचार्य को श्रेष्ठत्व, नानकदेव को चन्द्रदेव, चैतन्य महाप्रभु को रामतापननीयोपनिषद्, समर्थ रामदास को शिवाजी, शिवाजी को हिन्दूपद पातशाही, गोस्वामी तुलसीदास जी को राम रसायन, विवेकानंद को ठाकुर रामकृष्ण परमहंस, महामना मालवीय को हिन्दू विश्वविद्यालय, दयानन्द को कीर्ति, रानी लक्ष्मीबाई को वीरत्व, महारानी अहिल्याबाई को शिवत्व, महाराजा रणजीत सिंह को शौर्य, बंगाल की रानी भवानी को सर्वस्व, चन्द्रशेखर आजाद को आजादी, भारतेंदु हरिश्चन्द्र को काशी नरेश द्वारा ‘भारतेंदु’ की उपाधि, जयशंकर प्रसाद को कामायनी, प्रेमचन्द को गोदान, पण्डित रविशंकर को चौदहवीं विद्या, बिस्मिल्लाह खान को भारत रत्न जैसे अप्रतिम अवदान मिले, जिनसे व्यक्ति व्यक्ति न होकर, एक संस्था, एक विचार, एक आंदोलन बन गए।
राष्ट्रीयता का प्रतीक
काशी विश्वनाथ धाम एक नए कलेवर में राष्ट्रीयता का प्रतीक बनने जा रहा है। बाबा के दरबार में अहिल्याबाई, भारत माता, कार्तिकेय, आदि शंकराचार्य के विग्रह की प्रतिष्ठा भारत को परम वैभव की ओर ले जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 दिसम्बर, 2021 को धाम परियोजना का लोकार्पण करके इतिहास रचा। महात्मा गांधी के 100 साल के स्वप्न को साकार किया।
352 वर्ष बाद विश्वनाथ दरबार का पुनरुद्धार, 5,27,734 वर्गफुट में धाम का विस्तार, 400 भवनों का अधिग्रहण कर समर्पण के साथ सब कुछ अचम्भित करने वाला, 175 सीसीटीवी निगरानी कैमरे, लगभग 6 करोड़ रुपये के सुरक्षा उपकरण से युक्त विश्वनाथ मंदिर संसार के लिए एक मॉडल का काम करेगा।
मुख्य परिसर के चारों दिशाओं में बने चार द्वार सर्वकल्याण के भाव को अभिव्यक्त करते हैं। गंगधार छोर पर तन कर खड़ा गेटवे आॅफ कॉरिडोर इस अवसर का प्रदाता है। मंदिर चौक के विशाल द्वार पर बना स्थान बाबा के स्वर्ण शिखर और गंगधार के एकसाथ दर्शन कराता है। शिव के धाम में रुद्राक्ष, नीम, अशोक, करंज, अपराजिता के पेड़-पौधों से निखरी हरियाली और सुवास आनन्द कानन में प्रफुल्लता का भान कराएगी। बनारस गैलरी, सिटी म्यूजियम, एम्पोरियम बनारस की कला, संस्कृति, रीति-रिवाज का दर्शन कराएंगे। वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन बाबा दरबार के सेवा के संस्कारों से सरोकार जगाते दिखेंगे।
त्रैलोक्य से न्यारी काशी में 33 कोटि देवताओं का वास होने की प्रतीति, गर्भगृह में स्थापित ज्योतिर्लिंग प्रकृति व पुरुष के ऐक्य का सूचक, चारों दीवारों पर सप्त अश्व के चक्रीय रथ पर आरूढ़ सूर्यदेव, शंख चक्रधारी श्रीहरि, गणपति देव और शक्ति के विग्रह पंचदेव पूजन की समन्वय परम्परा की साक्षी बन जाती हैं। शिवत्व लोककल्याणक कृपा बरसती है। 24 घण्टे अहर्निश मुक्ति का भंडारा जहां चलता है, ऐसे बाबा का दरबार दृष्टि पथ गंगधार से एकाकार और मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिका से जुड़ जाता है। जहां बाबा से ‘राम’ नाम तारक मन्त्र पाकर जीव भवसागर के बंधनों से मुक्त हो जाता है। विश्वनाथ धाम दुनिया का अकेला देवस्थान होगा जहां राग-विराग का मिलन दृष्टिगोचर होगा। अनूठी दिव्य युति के मध्य दिव्य अनुभूति कराएगी। देव गैलरी में 145 शिवलिंग व 97 देव विग्रह एक जगह पर देखना आश्चर्य होगा।
काशी स्वयं मार्ग निर्देशिका
‘काश्याम मरणान्न मुक्ति:।’ काशी प्रकाशिका नगरी भी है। इसीलिए भा+रत ज्ञान का देश है। सूयोर्पासना का देश है, अग्नि व शक्ति अर्जन का देश है। वरुणा व असी के मध्य धनुषाकार गंगा के प्रवाह में अपना आलोक बिखेरती काशी स्वयं मार्ग निर्देशिका है, विश्वकर्मा द्वारा गढ़ी गई काशी सर्व विद्या की, सर्व सृष्टि की, सत्य शिक्षा की, ब्रह्म विद्या की, राज ऋषियों की, वाग्विद्या की, विश्वविद्या की, कर्मवीरों की, तप: पूतों की काशी अद्भुत है। ऐसी काशी को वन्दन, जिसे नया आकार दिया नर काया में दिखने वाले महामानव श्री नरेन्द्र मोदी ने। भारत के भवितव्य को जिस ललाट पर उकेरा है, उस काशी के सांसद को ‘जीवेम शरद:शतम्’ की शुभेच्छाओं के साथ, उनकी जननी को भी नमन जिसने ऐसे सपूत को जन्म दिया।
(लेखक नागर विमानन मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य एवं राजभाषा गृह मंत्रालय के चयनित वक्ता हैं।)
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम की अद्भुत कुंडलीऋषि द्विवेदी जब 8 मार्च, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वनाथ धाम का शिलान्यास किया था, उस दिन आकाश मंडल में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मीन राशि और स्थिर लग्न में वृषभ विद्यमान था। वृषभ लग्न में किसी भी आयोजन का होना सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इस लग्न को स्थिर लग्न कहा जाता है और वृषभ लग्न में विश्वनाथ धाम का शिलान्यास किया जाना ही इस धाम की अलौकिकता और इसकी दिव्यता को और बढ़ा रहा है। शिलान्यास के समय आकाश मंडल में देव गुरु बृहस्पति का वृषभ लग्न को देखना तो वहीं वृषभ लग्न के स्वामी शुक्र का शनि ग्रह के घर भाग्य स्थान पर बैठना अपने-आप में दुर्बल योग बना रहा था। इससे यह दिन और भी महत्वपूर्ण हो गया था। इसके अतिरिक्त दशम भाव में सूर्य का विराजमान होना यह दर्शा रहा है कि यह शिलान्यास कार्यक्रम काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को अपनी सर्वोच्चता पर ले जाने वाला है। यही वजह है कि विश्वनाथ धाम का काम बहुत ही कम समय में पूर्ण हो सका है। शिलान्यास की कुंडली में द्वादश भाव में बैठा मंगल षष्ठम भाव शुक्र के घर को देख रहा है, जो कॉरिडोर और विश्वनाथ धाम को और भी भव्यता तो प्रदान करेगा ही, साथ ही भविष्य में किसी भी तरह का आक्रमणकारी प्रभाव इस पर नहीं पड़ेगा। दशम का सूर्य जन्म-जन्मांतर तक इस भव्य धाम को ओजस व प्रभुत्व के साथ धरती पर सूर्य की तरह चमक प्रदान करता रहेगा और भविष्य में इस पर किसी का किसी भी तरह का कोई जोर नहीं चलेगा। इस भव्य विश्वनाथ कॉरिडोर के 13 दिसंबर को लोकार्पण के दिन भी आकाश मंडल में ग्रह नक्षत्र के अद्भुत योग बने हैं। एक तरफ जहां रवि योग वहीं दूसरी तरफ याई जय योग मौजूद रहेंगे। रवि योग अपने आप में भगवान सूर्य की मौजूदगी के साथ हर कार्य को पूर्ण करने वाला होता है और याई जय योग हर कार्य में विजय दिलाने के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है, तो इन दोनों योग का आकाश मंडल में मिलना कॉरिडोर की महिमा को मंडित करने वाला होगा। |
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