जिस तरह सनातन हिन्दू संस्कृति में भगवान शिव यानी बाबा विश्वनाथ को विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी का अधिष्ठाता अर्थात स्वामी माना जाता है, ठीक उसी तरह प्रयलकाल में भी लोप न होने वाली इस त्रिलोक विख्यात नगरी की स्वामिनी होने का गौरव आदिशक्ति मां जगदम्बा की दिव्य अवतार मां अन्नपूर्णा को हासिल है।
सनातनधर्मियों की आस्था है कि जिस तरह काशी में देह त्यागने वाले के कान में स्वयं भगवान शंकर तारक मंत्र उसे मोक्ष दे देते हैं, उसी तरह इस अविमुक्त क्षेत्र में आने, रहने और बसने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण-पोषण का जिम्मा मां अन्नपूर्णा स्वयं संभालती हैं। अन्नपूर्णा की नगरी में कोई सद्भक्त कभी कोई भूखा नहीं सोता। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर में रसोई को हमेशा साफ और शुद्ध रखा जाता है तथा अन्न का सम्मान किया जाता है, उस घर पर मां अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है।
अत्यंत रोचक कथानक ब्रह्मवैवर्त्तपुराण के ‘काशी-रहस्य’ में है वर्णित
मां अन्नपूर्णा के अवतरण और बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के उनके आधिपत्य में आने का अत्यंत रोचक कथानक ब्रह्मवैवर्त्तपुराण के ‘काशी-रहस्य’ में वर्णित है। कथा है कि विवाह के पश्चात् भगवान शंकर जब माता पार्वती की इच्छा पर उन्हें अपने सनातन निवास काशी लेकर आये तो एक सामान्य गृहस्थ स्त्री की भांति माता पार्वती को अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। तब उनकी इच्छापूर्ति के लिए महादेव ने यह व्यवस्था बनायी कि कलियुग में माता को इस नगरी की स्वामिनी का गौरव मिलेगा। कालांतर में एक बार लोगों की अन्न को बर्बाद करने की गलत आदतों के कारण धरती पर अन्न का घोर अकाल पड़ गया। अन्न-जल के अभाव के कारण सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गयी। तब इस भयंकर संकट से मुक्ति के लिए सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के परामर्श पर अकाल पीड़ितों ने जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की आराधना की। भगवान विष्णु जानते थे कि इस महाआपदा का निवारण सिर्फ भगवान शिव व माता पार्वती ही कर सकते हैं; इसलिए उन्होंने भगवान शिव को योगनिद्रा से जगाकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया। तब लोगों के जीवन की रक्षा हेतु भगवान शिव ने भिक्षु व माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का रूप धारण किया तथा भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा लेकर अकाल पीड़ितों को वितरित की जिससे उनकी प्राणरक्षा हुई।
अकालपीड़ितों की रक्षा के लिए लिया था अवतार
कहा जाता है कि जिस दिन माता पार्वती ने अकालपीड़ितों की रक्षा के लिए मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया था, वह पावन तिथि मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा थी। इसी कारण सनातनी हिन्दू धर्मावलम्बी इस तिथि को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में सदियों से भाव श्रद्धा से मनाते आ रहे हैं। इस दिन मां अन्नपूर्णा की विशेष पूजा तथा तरह-तरह के भोग बनाकर प्रसाद रूप में वितरित करने की प्राचीन परंपरा है। अन्न दान के साथ इस दिन गरीबों व जरूरतमंद लोगों को पेटभर भोजन करवाना भी शुभ फलदायी माना गया है।
अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' अर्थात अन्न की अधिष्ठात्री
अन्नपूर्णा जयंती का पर्व मूलतः अन्न के आदर, संरक्षण व संवर्धन की सीख देता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' अर्थात अन्न की अधिष्ठात्री। उनका एक अन्य नाम 'अन्नदा' भी है जिनसे सम्पूर्ण विश्व का भरण-पोषण व संचालन होता है। प्राणियों को अन्न-भोजन मां अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। ऋषि-मुनि मां अन्नपूर्णा की स्तुति करते हुए गाते हैं- शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्। दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥ आदि शंकराचार्य ने भी काशी में 'अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती' स्तोत्र की रचना कर मां अन्नपूर्णा से ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। गौरतलब हो कि मां अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का चैतन्य सिद्धपीठ माना जाता है। आम श्रद्धालुओं को मंदिर में स्थापित मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन धनतेरस के दिन से चार दिनों के लिये होता है। इस दौरान माता का खजाना बांटा जाता है। मान्यता है कि मां के खजाने से प्राप्त धन,पुष्प को अपने घर के पूजा घर या अपने खजाने में रखने पर उस परिवार में धन धान और यश की वृद्धि होती है।
ज्ञात हो कि अभी हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी वाराणसी में काशी विश्वनाथ कारिडोर का लोकार्पण के अवसर पर मां अन्नपूर्णा की नगरी का महिमागान करते हुए कहा था कि हमारे शास्त्रों ने भी काशी की महिमा गाते हुए आखिर में नेति-नेति ही कहा गया है। यानि जितना कहा है उतना ही नहीं है, आगे अनंत है। मां अन्नपूर्णा की कृपा से कोरोना काल में काशी में कोई भूखा नहीं सोया, हर किसी के खाने का इंतजाम हुआ। जानना दिलचस्प हो कि लम्बे इंतजार के बाद 108 वर्ष पहले चोरी हुई कनाडा गयी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा भी पीएम मोदी के प्रयासों से काशी के विश्वनाथ धाम परिसर में पूरी भव्यता से पुनर्स्थापित हो चुकी है। बीते दिनों कार्तिक मास की देवोत्थानी एकादशी की पावन तिथि को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कनाडा से काशी पहुंची की मां अन्नपूर्णा की रजत पालकी को न सिर्फ स्वयं कंधा देकर मंदिर परिसर में प्रवेश कराया था, अपितु खुद ही मुख्य यजमान बनकर श्रीकाशी विद्वत परिषद के निर्देशन में निर्धारित शुभ मुहूर्त में मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भी करायी थी।
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