—एफ.सी. भाटिया
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी गीता जयंती के नाम से जानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि गीता का प्रदुर्भाव कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में कृष्ण की प्रिय तिथि शुक्लपक्ष की एकादशी को लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व हुआ था। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से भी विख्यात है। गीता का उद्भव किसी आचार्य द्वारा उपदेश से नहीं हुआ, न ही किसी तपस्वी की वाणी से फूटा, न यह किसी कुलपति का भाषण है, बल्कि यह तो युद्ध के मैदान में दो विरोधी सेनाओं के बीच खड़े होकर दिया गया दिव्य संदेश है। गीता अनुपम ग्रंथ है, जिसका एक श्लोक क्या, एक-एक शब्द सदुपदेश से भरा है। गीता कर्तव्य बोधक है। अर्जुन को जब अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाना था, तब उसे प्रमाद हो गया। अपने विपक्ष में खड़े गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अन्य संबंधियों को देख वह कर्तव्यविहीन हो गया और कहने लगा, ''देवकीनन्दन! मैं युद्ध नहीं करूंगा।'' जिस प्रकार श्मशान में लोगों को वैराग्य उत्पन्न होता है, इसी प्रकार अर्जुन को युद्ध भूमि में त्याग, वैराग्य का रोग लगा और युद्ध से पलायन की बात करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने कर्तव्य बोध कराने के लिए गीता सुनाई। युद्ध का गीत ही गीता बना और कर्म पर ही बल दिया, कर्मयोग की शिक्षा दी।
श्रीमद्भागवत की प्रवृति लोक मंगल और लोक कल्याण के लिए हुई है। हमारे जीवन को परमानन्द से भर देने एवं सद्कर्म की शिक्षा देने के लिए ही गीता का अवतरण हुआ है। हमारे जीवन में ज्ञान, भक्ति और धर्म तीनों का समन्वय कर देने वाली भगवान की वाणी मानव जीवन का सर्वांगीण विकास करती है। हमारा ज्ञान भी शुद्ध, हमारी भावना भी शुद्ध और हमारे कर्म भी शुद्ध। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञान रूपी प्रकाश है जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। गीता जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार करवा कर जीने की कला सिखाती है। गीता रूपी रत्नाकर में गोता लगाने पर जो भाव-रत्न जिसे उपलब्ध हुए उसने उनको अपनी टीका की झोली में भर दिया। गीता की अनंत भाव-रत्न राशि आज तक न समाप्त हुई और न ही भविष्य में समाप्त होगी। जैसे मक्खन, दूध का सार है, इसी प्रकार गीता सब उपनिषदों का निचोड़ है। भ्रमित मानव को सद् मार्ग पर लाने के लिए गीता रामबाण औषधि है। गीता का संदेश चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि जूझना जरूरी है। गीता ज्ञान अमृत केवल अर्जुन के लिए ही नहीं है, इसकी धारा अमृत्व के हर एक पिपासु के लिए बह रही है।
स्कन्द पुराण में भगवान कहते हैं, ''मैं गीता के आश्रय में रहता हूं। गीता मेरा श्रेष्ठ घर है।'' वराह पुराण भी गीता के बारे में कहता है, ''गीता शास्त्र ज्ञान का खजाना है।'' व्यास जी का मानना है, ''गीता ज्ञान का वह समुद्र है जिसमें जितने भी गोते मारो, उसकी थाह नहीं मिलती।'' श्री अरविन्द का कहना है, ''गीता के अध्ययन से मनुष्य अपनी पूर्णता तथा सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त कर सकता है।'' आचार्य श्री देव ने भागवत को वेदों का पका हुआ फल बताया जो अशांत मानव को तृप्त करता है, बीमार मन के लिए औषधि है। महात्मा गांधी ने कहा है, ''गीता मेरे लिए माता है। जब कभी थका-हारा निराश मन को लेकर गीता की शरण में पहुंचता हूं, उसने मुझे नई दिशा संजीवनी दी है।'' लोकमान्य तिलक को कर्म के नए सिद्धांत और जीवन संघर्ष में सफल होने का संदेश गीता से ही मिला। विनोबा भावे जी का मानना है कि जितना गऊ के दूध से मेरे शरीर की पुष्टि हुई है इससे कहीं अधिक मेरे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है। मां की लोरी की भांति गीता ने मुझे सदैव शांति दी।
विदेशी भी गीता की लोकमंगल भावना से अछूते नहीं रहे। महात्मा थारो ने कहा है, ''गीता के साथ तुलना करने पर जगत के समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है। मैं नित्य प्रातःकाल अपने हृदय और बुद्धि को गीता रूपी पवित्र जल में अवगाहन करता हूं।'' सर एडविन आरनाल्ड लिखते हैं, ''भारत के सर्वप्रिय काव्यमय दार्शनिक ग्रंथ के बिना अंग्रेजी साहित्य निश्चय ही अपूर्ण है।'' एफ-टी- ब्रुक्स मानते हैं कि भारत वर्ष का राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ बनने के लिए जिन-जिन तत्वों की आवश्यकता है, वे सब गीता में मिलते हैं। ब्रिटेन के धर्म प्रचारक हाल्डेन कहते हैं, ''गीता निरन्तर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है।'' वारेन हेस्टिंग्स ने लिखा है, ''गीता अपनी किस्म की महान कलाकृति है। इसके आदर्श महान हैं।''
आज पूरा विश्व कुरुक्षेत्र बन गया है। विषम परिस्थितियों में युवकों के हाथों से धनुष छूट रहा है। प्रत्येक मनुष्य को धनुर्धारी अर्जुन होना होगा। गंगा ने जहां पवित्रता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की, वहां गीता ने संसार को ज्ञान दिया। हम सबको गौरव होना चाहिए कि भारत सदियों से विश्व को प्रेरणा देता रहा है।
टिप्पणियाँ