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#जनरल बिपिन रावत: प्रणाम सेनापति

by Alok Goswami
Dec 13, 2021, 08:30 am IST
in भारत, दिल्ली
चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत

चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत

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तमिलनाडु में गत 8 दिसम्बर को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में भारत के पहले चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत तथा उनके साथ सफर कर रहे ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, विंग कमांडर पीएस चौहान, स्क्वॉड्रन लीडर के. सिंह, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांसनायक विवेक कुमार, लांंसनायक बी. साई तेजा, जूनियर वारंट आफिसर दास, जूनियर वारंट आफिसर ए. प्रदीप और हवलदार सतपाल की दुखद मृत्यु हो गई। इस खबर से पूरा देश गहन शोक में डूब गया। जनरल रावत ऐसे जांबाज सेनानी थे, जिन्होंने देश के स्वाभिमान के साथ समझौता न करते हुए दुश्मन को आंख में आंख डालकर देखा था। उन्होंने चुनौतियों को टक्कर देकर देश का गौरव बढ़ाने वाले अनेक आपरेशन की रचना की थी।  16 मार्च, 1958 को पौड़ी गढ़वाल में एक सैन्य परिवार में जन्मे जनरल रावत सैनिकों के लिए एक आदर्श सेनानी थे तो आम देशवासियों के प्रति सहृदयता का भाव रखने वाले भारतीय। थल सेनाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के पहले सीडीएस के नाते उनका चुनाव करना यह बताता है कि उस वीर योद्धा में देशभक्ति किस सीमा तक पैठी हुई थी। निस्संदेह उनके यूं जाने से हर भारतवासी आहत है। पाञ्चजन्य की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि…

अनुराग पुनेठा/आलोक गोस्वामी

‘‘मैं एक सिपाही हूं। मैं लड़ता हूं, जहां मुझे कहा जाता है और मैं जीतता हूं जहां मैं लड़ता हूं।’’

भारत के पहले चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत ने पूरी जिंदगी इस उक्ति को जिया, लेकिन वे मौत के मुकाबले 8 दिसंबर को अपनी बाजी हार गए। हालांकि यह उनकी पहली हवाई दुर्घटना नहीं थी। कुछ साल पहले पूर्वोत्तर में भी उनका हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था, और तब उन्होंने मौत को मात दी थी। लेकिन इस बार…!!

नई दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर जनरल बिपिन रावत के पार्थिव शरीर को अंतिम प्रणाम निवेदित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

भारतीयों के मनो-मस्तिष्क पर जनरल रावत का नाम 2015 में उस वक्त से छाया, जब भारतीय फौज ने म्यांमार में घुसकर आतंकवादियों को मारा था। पूरा देश इससे आत्मसंतुष्टि के भाव से भर गया था। फिर 2016 में पाकिस्तान को पीओके में घुसकर उसे चोट पहुंचाने के नीतिकार के नाते वे आतंकी हमलों से आहत राष्टÑ के आत्मसम्मान का चेहरा बने, जिसने जबरदस्त दहाड़ मारी थी, कि ‘यह वह भारत नहीं है जो बस हमलों की निंदा करे, यह नया भारत है, जो हर भाषा जानता है, सम्मान की भी और बंदूक की भी’।  आज भी याद आता है उनका वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि हम एक दोस्ताना फौज हैं, लेकिन जब हमें कानून और व्यवस्था बनाने के लिए बुलाया जाता है तो लोगों को हम से डरना चाहिए। और चंद सालों में ही डर पैदा हुआ। इसकी बानगी पाकिस्तान के टीवी चैनलों की बहसों में जनरल रावत और अजित डोवाल को लेकर की गई टिप्पणियों में देखी जा सकती है। खीझते कट्टरपंथियों और पूर्व पाकिस्तानी सैनिकों की हताशा हर सच्चे भारतीय को दिली सुकून देती रही है।

कश्मीर में पत्थरबाजों पर जनरल रावत का वह बयान आज भी लोगों को याद है कि, ‘काश! ये लोग हम पर पत्थर की जगह गोलीबारी कर रहे होते तो मैं ज्यादा खुश होता। तब मैं वह कर पाता जो मैं करना चाहता हूं।’ उनके उस बयान ने कमाल कर दिया था। धीरे-धीरे ही सही, पर पत्थरबाज पत्थर चलाना भूल गए। यह उनका आत्मबल था, जिसके आगे वे किसी की नहीं सुनते थे। ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना लेकर जनरल रावत जो करना चाहते थे उन्होंने किया, जो कहना चाहते थे वह कहा।

चीन की चालाकियों और धमकी के विरुद्ध एक सशक्त भारतीय चेहरा जनरल रावत एक ऐसे फौजी थे, जिसने तमगे अपने सीने पर पहने, लेकिन अपने दिमाग को हमेशा ठंडा और जमीन पर रखा। वे हमेशा जमीनी सचाई से वाकिफ रहे। एक सोचने विचारने वाला जनरल, जो दुश्मन की सोच को समझने और उससे एक कदम आगे जाकर उसे सख्त सबक सिखाने का माद्दा रखता था। जिसने सचाई को कभी शाब्दिक आडंबर से ढकने की कोशिश नहीं की। जो सही है, जो सत्य है, वे उस पर अडिग और अविचल रहे।

भारत-अमेरिका निकटता
जनरल रावत ने भारतीय सेना का वह रसूख पैदा किया, जिसकी सख्त जरूरत थी। जिस चीन से पूरे एशिया में टक्कर लेने के लिए अमेरिका भारत के नाम का जाप कर रहा है, इस नई बदली कहानी के एक लेखक जनरल रावत भी रहे। उनके कार्यकाल में भारत-अमेरिकी संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई। उन्होंने हर बाधा पार की, ससम्मान पार की। कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने के बाद तमाम शंकाओं को निर्मूल साबित किया भारतीय फौज ने।  

‘कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो’ यानी कायर की तरह जीने से मृत्यु बेहतर है। गोरखा रेजिमेंट के इस ध्येय वाक्य को जनरल रावत ने पूरी जिंदगी शान से जिया। वे न डरे और न ही विचलित हुए, जो ठान लिया, वह करके ही माने। फिर वह चाहे पाकिस्तान हो,  कश्मीर के पत्थरबाज, चीन, देश के भीतर सीएए को लेकर लोगों को बरगलाने वाले या फिर सेना के वे लोग, जो विकलांगता का अनुचित लाभ उठा रहे थे। देश के पहले सीडीएस जनरल रावत ने कम समय में अपनी पहचान एक ऐसे जांबाज लड़ाकू जनरल की बनाई, जिसके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था, जिसने उस राष्ट्र की बेहतरी के लिए बिना लाग-लपेट अपनी बात रखी।

जैसे को तैसा जवाब
‘एक जनरल जरा हटके’ की उनकी छवि को देखते हुए ही देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी खूबियों को पहचाना। देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 2015 में जब आतंकी संगठन एनएससीएन ने 18 सैनिकों पर हमला कर उन्हें मार दिया था, तो यह एक तगड़ा झटका था। आमतौर पर देशवासी ऐसे वक्त में राजनेताओं के रटे-रटाये बयान सुनने के आदी रहे थे, कि यह आतंकियों की कायराना हरकत है, वे अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे। फिर सब कुछ शांत हो जाता था। लेकिन संभवत: भारतीय सेना ने पहली बार जवाबी कार्रवाई की। जनरल रावत के नेतृत्व में भारतीय फौज की 21 पैरा के कमांडो ने सीमा पार जाकर म्यांमार में एनएससीएन के कई आतंकियों को ठिकाने लगाया था। उन्होंने अपनी योजना इतनी बारीकी से तैयार की थी कि हमला करने के महज 6 दिनों के भीतर 10 जून को सेना की पैरा कमांडो ने म्यांमार की सीमा में दाखिल होकर करीब 40 मिनट चली इस सर्जिकल स्ट्राइक को सफलता से अंजाम दिया। रिपोर्ट के मुताबिक इस आॅपरेशन में करीब 38 उग्रवादी ढेर हुए। देश ने सर्जिकल स्ट्राइक को पहली बार जाना। फिर 2016 में उरी हमले के बाद पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया, जिसके नीतिकार जनरल बिपिन रावत ही रहे। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की योजना का ब्लू प्रिंट बनाने में जनरल रावत की सलाह निर्णायक साबित हुई। हालांकि तब वे लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर थे। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जनरल रावत ने कहा था, ‘‘यह पाकिस्तान के लिए एक संदेश है, हम बताना चाहते हैं कि इस तरह के और आॅपरेशन भी हो सकते हैं।’’ जब 2018 में वे भारतीय सेना के मुखिया बने तब उन्होंने कहा था, ‘‘भारत को एक और सर्जिकल स्ट्राइक करने की जरूरत है।’’ वे 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक की रणनीति में भी शामिल रहे। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की जो दमदार छवि बनी है, उसमें जनरल बिपिन रावत एक सशक्त हस्ताक्षर रहे।

हर भूमिका में सर्वश्रेष्ठ
वे अपनी हर भूमिका में सर्वश्रेष्ठ रहे। देशहित में हर बड़ा फैसला लेने से बिल्कुल नहीं कतराए। सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने और आॅपरेशन मेघदूत को अंजाम देने वाले पूर्व डीजी, इंफैन्ट्री लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं कि जनरल रावत ने भारतीय फौज को वह ताकत दी, जिसके चलते वे दुश्मन से आंख में आंख डालकर बात कर सके। उनकी मृत्यु पर पाकिस्तानी फौज के मुखिया जनरल बाजवा का शोक संदेश इसकी बानगी है। चीन के साथ डोकलाम विवाद में जनरल रावत ने जिस तेजी के साथ सेना भेजी थी, उससे चीन हड़बड़ा गया था। 73 दिन तक चले उस तनाव में जनरल रावत का कमाल का नेतृत्व सामने आया था। चीन के रोजाना के मनोवैज्ञानिक युद्ध में पूरा चीनी मीडिया भारत को डराने में लगा रहा, हर रोज सोशल मीडिया पर चीन के ‘अदम्य साहस’ के वीडियो भारतीयों को डराने के लिए डाले जा रहे थे। पर जनरल रावत लगभग शांत रहे, सिर्फ एक बयान दिया कि आज का भारत 1962 का हिंदुस्थान नहीं है। थक-हारकर चीन कोे अपनी सेनाएं वापस लौटानी पड़ीं। सेना की 15वीं कार्प्स के कमांडर रहे ले. जनरल अता हसनैन उन्हें याद करते हुए कहते हंै कि जनरल रावत हमेशा अपनी बात को बिना लाग-लपेट के कहने के लिए जाने जाते थे। वे आगे रहकर टीम का नेतृत्व करते थे। जब जनरल रावत कश्मीर में मेजर जनरल के तौर पर तैनात थे, तब जनरल हसनैन उनके अधिकारी थे। उन्होंने कहा कि जनरल रावत हमेशा काम में लगे रहते थे। कश्मीर की आम जनता के साथ कैसा व्यवहार किया जाए और आतंकवादियों के खिलाफ कैसे आॅपरेशन को अंजाम दें, इसकी बारीकियों को समझने के लिए वे सलाह करते रहते थे।


कश्मीर में तैनात रहे मेजर जनरल अश्विनी शिवाच कहते हैं कि जनरल रावत ने हमेशा यथास्थिति को बदलने की ईमानदार कोशिश की। वे अपनी बात कहते हुए सेना के पारंपरिक कूटनीतिक रीति-रिवाजों और विवादों की परवाह नहीं करते थे। सेना में महिलाओं के ‘कॉम्बैट रोल’ को लेकर उनका बयान सुर्खियों में रहा था। जब मेजर गोगोई ने कश्मीर में एक पत्थरबाज को जीप से बांधकर पूरी यूनिट की जान बचाई, तब देश भर के तथाकथित मानवाधिकारवादियों ने चीख-पुकार मचा दी थी। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार ने गोगोई के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की, लेकिन जनरल रावत ने मेजर गोगोई को बुलाकर शाबाशी दी और संदेश दिया कि ‘मैं तुम्हारे साथ खड़ा हूं’। लेकिन जब उन्हीं मेजर गोगोई का एक महिला के साथ अनैतिक रिश्ता सामने आया तो उन्होंने उसे दंडित करने में देर नहीं लगाई। सेना में भ्रष्टाचार और अनैतिक संबंधों को लेकर उन्होंने किसी को नहीं बख्शा।

जनरल रावत फैसला लेकर उस पर टिके रहने को बहुत बड़ा अनुशासन मानते थे। उन्होंने जिंदगी में कोई दबाव नहीं सहा। जो ठीक लगा, वही किया। वे जब सेना में भर्ती होने के लिए गए तो एसएसबी के इंटरव्यू में ब्रिगेडियर ने पूछा कि यदि ट्रैकिंग पर जाओगे और एक चीज साथ ले जानी होगी तो क्या ले जाओगे? नौजवान रावत ने सोचने के बाद जवाब दिया, माचिस, जो कई काम आ सकती है। ब्रिगेडियर चौंका का कि चाकू, रस्सी या रकसैक बैग नहीं, तुम माचिस ले जाना चाहते हो! रावत अपने जवाब पर कायम रहे। ब्रिगेडियर ने दबाव डाला, लालच दिया कि अपना जवाब बदल लो। लेकिन रावत अड़ गये कि नहीं सर, मैं तो माचिस का ही चुनाव करूंगा। उनका अपने फैसले पर टिके रहना, सेना में उनके चयन का बड़ा कारण बना। जो रावत नौकरी पाने के लिए नहीं डरे, उन्हें चीन क्या डरा सकता था।

सबसे बड़ा दुश्मन है चीन
मिठाई खाने के शौकीन जनरल रावत को चीनियों से परहेज था। वे चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। उनमें फौज के प्रति अदम्य लगाव था। वे तीसरी पीढ़ी के सैनिक थे। उनके पिता और दादा भी भारतीय फौज में रहे। पिता और वे दोनों एक ही गोरखा रेजिमेंट में रहे। फौज को कैसे बेहतर किया जाए, उस पर वे लगातार काम करते रहे। सीडीएस बनने के बाद उनका काम एक थियेटर कमांड बनाना और तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल बनाना था। इसी नवंबर में उन्होंने इसका प्रस्ताव बनाकर तीनों सेना प्रमुखों को भेज दिया था ताकि वे जून 2022 तक अपने सुझाव दे सकें। वे आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर इसे प्रधानमंत्री को सौंपना चाहते थे। सूचना के अनुसार वायु सेना को इस पर कुछ आपत्तियां थीं, लेकिन जनरल रावत अडिग थे कि जिस काम को प्रधानमंत्री ने उन्हें सौंपा है, उसे वे अंजाम देकर ही रहेंगे।

2020 में चीन ने लद्दाख में यथास्थिति को बदलने की कोशिश की तो प्रधानमंत्री ने एक टास्क फोर्स बनाई, जिसमें विदेश मंत्री, रक्षा मंंत्री, सेना प्रमुख के साथ एनएसए और सीडीएस को रखा गया। लेकिन ये बिपिन रावत ही थे, जिन्होंने 28-29 अगस्त, 2020 को भारतीय फौज को कैलाश पर्वत की चोटियों पर चढ़ा दिया। पैगांग झील का इलाका उनका जाना-पहचाना था। उन्हें बखूबी पता था कि कैलाश पर यदि भारतीय फौजी बैठ गए तो कहां तक चीनियों को निशाने पर ले सकते हैं। चीन भारत की चाल से बौखला गया था। जनरल सिवाच कहते हैं कि चीन यदि पीछे हटने को राजी हुआ था तो इसी कारण कि वह चाहता था कि भारत कैलाश रेंज को खाली कर दे। चीन को घुटने पर लाने का यह उनका पहला प्रयास नहीं था। डोकलाम में चीन उनकी नेतृत्व क्षमता को देख चुका था। प्रत्युत्तर मेंदक्ष जनरल रावत ने जहां काम किया, वहीं अपनी छाप छोड़ी।

दिल से कोमल, पर अनुशासन में सख्त  
वे जिस क्षमता के साथ सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीतियां बनाते रहे, उसी कुशलता के साथ अफसरों और जवानों के बीच की दूरियां मिटाने पर भी काम करते रहे। ये उनका मानवीय पहलू ही था, जिसमें वे सेना में सहायक परंपरा खत्म करना चाहते थे, फिर दिल्ली के ट्रैफिक से बेहाल आम लोगों को दिल्ली छावनी के ग्रीन जोन से गुजरने देने की इजाजत देना चाहते थे। जनरल रावत ने हटकर फैसले लिए थे। वे दिल जीतने में यकीन रखते थे। सेना अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने सभी दिवंगत और जीवित पूर्व जनरलों की पत्नियों को फोन किया, अपना फोन नंबर दिया और कहा कि मैं आपके लिए 24 घंटे उपलब्ध हूं। इस घटना पर भावुक होते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन चंद्र जोशी की पत्नी ने कहा था कि आप पहले जनरल हैं जिन्होंने मुझे फोन किया है। इससे पहले बहुत से आए, लेकिन किसी ने मेरा हाल नहीं जाना।

हर साल भारतीय सेना 15 जनवरी को सेना दिवस मनाती है। इस अवसर पर पूर्व जनरलों और उनकी पत्नियों को बुलाया जाता है। जनरल रावत ने एक बार सेना दिवस के मौके पर जनरल जोशी की पत्नी के लिए खुद गाड़ी भेजी थी। लेकिन यही जनरल थे जिन्होंने दिव्यांगता पेंशन का अतिरिक्त लाभ ले रहे सैनिकों को सख्त लहजे में चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि अगर कोई सैनिक वास्तव में दिव्यांग है, तो हम उस पर विशेष ध्यान देंगे और आर्थिक रूप से भी उसकी पूरी मदद करेंगे। लेकिन जो लोग गलत तरीके से खुद को दिव्यांग कहते हैं और अपनी विकलांगता को पैसा कमाने का एक तरीका बनाते हैं, मैं उन्हें चेतावनी दे रहा हूं कि आप अपने तरीके से इस मामले में बेहतर सुधार करें अन्यथा कुछ दिनों में आपको सेना मुख्यालय से विशेष निर्देश प्राप्त हो सकते हैं, जो आपके लिए अच्छी खबर नहीं होगी।

जनरल रावत हमेशा कहते थे कि सेना को समय के लिहाज से आधुनिक करना बेहद जरूरी है। भविष्य में भारतीय सेना किस तरह की होगी, इसको लेकर वे लगातार काम करते रहे। सेना में युवा अधिकारियों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने सीधे जूनियर कमीशंड आॅफिसर यानी जेसीओ की भर्ती का विचार आगे बढ़ाया ताकि सेना को युवा अधिकारी मिल सकें। ‘एडमिट एंड जनरल’ शाखा को उन्होंने सुझाव दिया कि जो उम्मीदवार 5 प्रतिशत अंकों की कमी के चलते सेना में अधिकारी के रूप में चयनित होने से वंचित रह गए हों उन्हें जेसीओ के रूप में सेना से जुड़ने का मौका दिया जाए। अगर सेना 110 आईटी इंजीनियरों को जेसीओ के तौर पर भर्ती करती है तो उसका इस्तेमाल साइबर आपरेशन और साइबर वारफेयर में किया जा सकता है। सुरक्षित नौकरी और अन्य लाभों के साथ उन्हें शुरुआत में 70,000 रु. वेतन दिया जा सकता है। उनके इस क्रांतिकारी विचार से युवा बड़ी संख्या में सेना की ओर आकर्षित हुए। युद्ध और आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई में जेसीओ ही जवान और अधिकारियों के बीच में कड़ी के तौर पर काम करते हैं।

एक सैनिक का सबसे बड़ा सम्मान दुश्मन से शाबाशी पाना होता है। जनरल रावत की असमय मृत्यु के बाद पाकिस्तानी सेना के मेजर आदिल का ट्वीट सोशल मीडिया में खूब सुर्खियों में रहा, जिसमें उन्होंने लिखा- ‘दुश्मन मरे ते खुशियां ना मनाओ, कदे सजना भी मर जाना है।’ जनरल  बिपिन रावत ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से ऐसा सम्मान हर तरफ से पाया। इस हेलिकॉप्टर दुर्घटना की जांच चल रही है। ब्लॉक बॉक्स भी मिल गया है। सोशल मीडिया पर कई तरह की कयास बाजी भी चल रही है। निष्कर्ष जो हो, इस दुर्घटना ने मां भारती के एक सच्चे सेनानी को हमेशा-हमेशा के लिए हमसे छीन लिया है।

(अनुराग पुनेठा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मीडिया नियंत्रक हैं)

 

पैतृक गांव में बसना चाहते थे जनरल रावत

गांव में अपनी धर्मपत्नी के साथ कुल देवता की पूजा करते हुए जनरल रावत  (फाइल चित्र)
अपने पिता से. नि. लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत के साथ जनरल रावत
उत्तराखंड के पौड़ी जिले में गांव सैणा-बिरमोली में सन्नाटा पसरा हुआ है। जनरल विपिन रावत का जन्म इसी गांव में हुआ था। उनके चाचा भरत सिंह रावत आज भी इसी गांव में रहते हैं। 2018 में जब वे अपने गांव आए थे तब यहां जश्न का माहौल था। उन्होने यहां पूजा-अर्चना भी की और यहीं मकान बनाकर बसने की इच्छा भी परिवारजनों से साझा की थी। लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था।
जनरल रावत के हेलिकॉप्टर दुर्घटना में परलोक गमन की खबर मिलते ही बिरमोली का बाजार बंद हो गया। सभी शोकाकुल गांववासी उनके चाचा भरत सिंह रावत के घर एकत्र होने लगे और जनरल रावत के साथ गुजरे अपने पलों की स्मृति में खो गए। जनरल रावत के चाचा भरत सिंह रावत ने बताया कि उन्हें फोन पर यह दुखद खबर मिली। उन्होंने यादों में झांकते हुए बताया कि 'पहले गांव तक सड़क नहीं थी, लेकिन अप्रैल 2018 में जब जनरल रावत यहां आए तो गांव में हेलिपैड बनाया गया था। यहीं पर उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से गांव तक करीब पांच किमी. सड़क बनाने का अनुरोध किया था, जिसे सरकार ने स्वीकार करके सड़क बनाने का काम शुरू कर दिया था। हमें उम्मीद थी कि इस बार वे नई बनी सड़क से ही आएंगे, लेकिन अब ऐसा न हो पाएगा'।
जनरल बिपिन रावत के पिता श्री लक्ष्मण सिंह रावत सेना से लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत्त हुए थे। जनरल रावत ने शुरुआती शिक्षा देहरादून के कैम्ब्रियन हॉल स्कूल में पूरी करने के बाद शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल में आगे की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने आईएमए, देहरादून में दाखिला लिया जहां वे स्वार्ड आफ आनर से सम्मानित होकर सर्वोत्तम कैडेट चुने गए थे।
जनरल रावत को पहाड़ों में युद्ध करने का विशेषज्ञ माना जाता था। संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भी वे अपनी सेवाएं दे चुके थे। जनरल विपिन रावत बदरी, केदार, गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन करने सपरिवार आते रहते थे और विधि—विधान से पूजा—अर्चना करते थे। अपने गांव में भी वे हर बार अपनी कुल देवी और ग्राम देवता की पूजा करते थे।
जनरल रावत को हिमालय से लगाव था। उन्होंने पूर्व जरनल विपिन चन्द्र जोशी के पहाड़ों पर 'इको टास्क फोर्स' के जरिये हर साल हजारों पेड़ लगाने के अभियान को और धार देते हुए इसकी बराबर समीक्षा की थी। उन्हें उत्तराखंड के युवाओं में सेना में भर्ती होने की प्रेरणा के तौर पर जाना जाता था। सेना में भर्ती के लिए कम से कम 162 सेमी की लम्बाई जरूरी होती है, लेकिन उत्तराखंड के युवाओं को इसमें 5 सेमी. की छूट दिए जाने का प्रावधान उन्होंने ही सुनिश्चित किया था। उनका तर्क था कि पहाड़ में युवाओं की लंबाई कम होती है, इसलिए इन्हें ऐसी छूट देनी चाहिए। —उत्तराखंड ब्यूरो

‘50 साल पुराना दोस्त बिछड़ गया’

अपने दोस्त जनरल रावत के साथ राज्यपाल ले.जन.(से.नि.) गुरमीत सिंह,  सबसे बाएं मुख्यमंत्री पुष्कर धामी   (फाइल चित्र)

उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) गुरमीत सिंह ने कहा कि जनरल रावत से उनकी 4 दशक पुरानी दोस्ती थी। वे एनडीए से साथ—साथ निकले थे। कश्मीर सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में साथ—साथ सेवाएं दी थीं। राज्यपाल ने बताया, 'पिछले दिनों राज्य स्थापना दिवस पर जनरल रावत अचानक रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट के साथ राजभवन पहुंचे और साथ बैठ कर पुरानी यादें ताजा की थीं। हमारी पेशेवर और निजी जिंदगी की अनेक सुखद स्मृतियां हैं। वे एक जोखिम लेने वाले अफसर थे। उनके जाने से मेरा बरसों पुराना दोस्त बिछड़ गया है'।


उत्तराखंड में तीन दिन का राजकीय शोक

जनरल रावत के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक
जनरल विपिन रावत के निधन की खबर आते ही मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने अपने मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करके जनरल रावत के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
बैठक में तय किया गया कि राज्य में तीन दिन का शोक रखा जाएगा। राज्य में राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा और सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किए जाएंगे। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि देश ने एक निडर योद्धा खोया है। उनके जाने से पूरे राज्य की जनता स्तब्ध है।
जनरल विपिन रावत के निधन की खबर आते ही मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने अपने मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करके जनरल रावत के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
बैठक में तय किया गया कि राज्य में तीन दिन का शोक रखा जाएगा। राज्य में राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा और सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किए जाएंगे। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि देश ने एक निडर योद्धा खोया है। उनके जाने से पूरे राज्य की जनता स्तब्ध है।

विभिन्न देशों की प्रतिक्रियाएं

वाशिंगटन में जनरल रावत के दौरे के वक्त उनके सम्मान समारोह में उनके साथ अमेरिकी सेना प्रमुख जनरल मार्क मिली व अन्य सैन्य अधिकारी  (फाइल चित्र)  
ब्रिटेन : ‘अभूतपूर्व योद्धा थे रावत’
चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत के निधन पर ब्रिटिश उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने ट्वीट करते हुए कहा, 'दुखद समाचार। जनरल रावत ना केवल अभूतपूर्व योद्धा थे बल्कि अच्छे मेजबान भी थे। हम उनके और उनकी पत्नी के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं।'
रूस : ‘अलविदा दोस्त’भारत में रूस के राजदूत निकोले कुदाशेव ने कहा, ‘भारत ने अपना महान देशभक्त खो दिया। जनरल रावत ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई। अलविदा दोस्त! विदाई कमांडर’।
आस्ट्रेलिया : ‘रावत का कार्यकाल अभूतपूर्व’
भारत में आस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ फेरेल ने जनरल रावत सहित हादसे में मारे गए सभी लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है। फेरेल ने कहा कि रावत के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध काफी मजबूत हुए।

फ्रांस : ‘रक्षा संबंधों के ध्वजवाहक’
भारत में फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनिन ने अपने ट्वीट में लिखा,'सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और अन्य रक्षा अधिकारियों के निधन से गहरा दुख हुआ है। शोक संतप्त परिवारों और भारतीय सशस्त्र बलों के प्रति हम हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। हम सीडीएस रावत को फ्रांस-भारत रक्षा संबंधों के ध्वजवाहक के तौर पर हमेशा याद रखेंगे।'

मौत से गहरा सदमा लगा: बेंजामिन नेतन्याहू, पूर्व प्रधानमंत्री, इज्राएल
इज्राएल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्वीट करके अपनी संवेदनाएं इन शब्दों में व्यक्त कीं, 'हेलिकाप्टर हादसे में भारत के चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और 11 अन्य लोगों की मौत से गहरा सदमा लगा है। मेरी संवेदनाएं पीड़ित परिवारों के साथ हैं'।  
अमेरिका: ‘वे क्रांतिकारी बदलाव लाए’
भारत में अमेरिकी दूतावास ने जनरल रावत के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए ट्वीट किया—'चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ के तौर पर जनरल रावत सेना में बहुत से क्रांतिकारी बदलाव लाए। वह अमेरिका के सच्चे दोस्त और साझीदार थे'।
पाकिस्तान : सेना अधिकारियों ने जताया दुख
जनरल बिपिन रावत के निधन पर पाकिस्तान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने शोक व्यक्त किया है। पड़ोसी देश के ज्वाइंट चीफ्स आॅफ स्टाफ कमिटी के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल नदीम राजा तथा चीफ आफ द आर्मी स्टाफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने हेलीकॉप्टर दुर्घटना में भारत के सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सुरक्षा बलों के अन्य कर्मियों के दुखद निधन पर शोक जताया है। पाकिस्तान सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
बांग्लादेश : ‘एक अच्छा दोस्त खो दिया’बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ट्वीट किया, 'जनरल रावत के निधन से सदमे में हैं। बांग्लादेश ने एक अच्छा दोस्त
खो दिया। हमारी संवेदना और प्रार्थना भारत के साथ लोगों व शोक संतप्त स्वजन के साथ हैं'।

जिन्दगी-मौत से जूझ रहे वरुण

ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह

इस समाचार के लिखे जाने तक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में एकमात्र बचे ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का इलाज बेंगलुरु स्थित कमांड अस्पताल में चल रहा है। उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है और तीन बार आपरेशन हो चुका है। देवरिया (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले वरुण सिंह इन दिनों प्रतिष्ठित डीएसएससी में निदेशक हैं। उन्होंने ही सुलुर हवाई अड्डे पर जनरल रावत की अगवानी की थी। वरुण सिंह 2020 में भी बाल-बाल बचे थे। तेजस विमान की परीक्षण उड़ान के दौरान आई बड़ी तकनीकी खामी के बाद भी उन्होंने विमान को सुरक्षित उतार लिया था। इस बहादुरी के लिए उन्हें इस वर्ष शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया है।


भारत-चीन के विशेषज्ञों में ट्विट युद्ध

सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मौत को लेकर भारत और चीन के विशेषज्ञों के बीच ट्विटर वार भी शुरू हो गया है। रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने ट्वीट किया, 2020 की शुरूआत में ताइवान के सेना प्रमुख जनरल शेन यी मिंग तथा सात अन्य लोगों की भी इसी तरह हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हुई थी। दोनों दुर्घटनाओं ने ऐसी हस्तियों की जान ली जो चीन की सैन्य आक्रामता का विरोध कर रहे थे। इस पर चीन सरकार के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने जवाबी ट्वीट किया कि ऐसे तो दुर्घटना में अमेरिका की भूमिका हो सकती है क्योंकि वह भारत रूस के बीच एस-400 सौदे का विरोध कर रहा है।

जनरल रावत और उनकी पत्नी के साथ हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हुए ये सैन्य कर्मी

हादसे का शिकार हुए एमआई-17वी 5 हेलिकॉप्टर में जनरल रावत और उनकी पत्नी के अलावा 12 लोग और सवार थे। इनमें थे, ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, विंग कमांडर पीएस चौहान, स्क्वॉड्रन लीडर के. सिंह, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांसनायक विवेक कुमार, लांंसनायक बी. साई तेजा, जूनियर वारंट आफिसर दास, जूनियर वारंट आफिसर ए. प्रदीप और हवलदार सतपाल। इन सभी की मृत्यु हो गई।

Alok Goswami
Journalist at Bahrat Prakashan | Website

A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth  of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.

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