अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कल अमेरिका से विश्व लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में भाषण क्या दिया विस्तारवादी और निरंकुश सत्ता का प्रतीक बने चीन को तीखी मिर्ची लग गई। उसने अमेरिका द्वारा इस सम्मेलन में उसे न बुलाए जाने से चिढ़ते हुए, इसे शीत युद्ध की मानसिकता करार दिया है।
उल्लेखनीय है कि 9 दिसम्बर को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपनी तरह के पहले विश्व लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में शामिल 110 देशों के बीच अपना संबोधन दिया। इसमें उन्होंने कहा कि सामाजिक बंटवारे तथा राजनीति के ध्रुवीकरण के शोले भड़काने से लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें की जाती हैं। बाइडन ने लोकतांत्रिक संस्थानों के दुनिया भर में हो रहा ह्रास पर चिंता जताई और कहा कि सहयोगी राजनेताओं के लिए लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए वर्तमान समय बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी पूरी कोशिश करनी होगी। उन्होंने किसी देश का नाम लिए बिना कहा कि आज सामाजिक बंटवारे तथा राजनीतिक ध्रुवीकरण के शोले भड़काकर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें की जा रही हैं।
बाइडन ने दुनिया के शीर्ष नेताओं से अपील की कि वे आपसी सहयोग से दिखा दें कि लोकतंत्र से क्या प्राप्त किया जा सकता है। लोकतांत्रिक सरकारों के विरुद्ध लोगों में गुस्से को बढ़ाना चिंता की बात है। बाइडन ने साफ कहा कि यह हमारे वक्त की निर्णायक चुनौती है। निरंकुश हस्तियां अपनी ताकत बढ़ाना चाहती हैं। इनका उद्देश्य दुनिया भर में अपने असर को बढ़ाना है।
सम्मेलन में अपने विचार रखते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत बहुपक्षीय मंचों सहित वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए काम करने के लिए तैयार है।
इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में 110 देशों के नेता और नागरिक समूहों से जुड़े विशेषज्ञ शामिल हुए हैं। इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के साथ ही मानवाधिकारों को सम्मान देने सहित दूसरे महत्वपूर्ण विषयों पर मेलजोल के साथ काम करने पर विचार किया जाएगा।
'इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व के तमाम लोकतंत्रों में से आधे ने गत 10 वर्ष में लोकतंत्र के कम से कम एक आयाम में गिरावट महसूस की है, और इन देशों में अमेरिका भी शुमार है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि दुनिया की कुछ निरंकुश हस्तियां वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी यातनापूर्ण नीतियों को एक कारगर औजार के तौर पर जायज ठहराते हैं। इस मौके पर उन्होंने अमेरिका में लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा परंपराओं के लिए चुनौतियों का उल्लेख किया और कहा कि अमेरिका में मतदान अधिकार विधेयक पारित होने पर उनकी कोशिशें कामयाब हुई थीं।
उल्लेखनीय है कि 'इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व के तमाम लोकतंत्रों में से आधे ने गत 10 वर्ष में लोकतंत्र के कम से कम एक आयाम में गिरावट महसूस की है, और इन देशों में अमेरिका भी शुमार है।
बता दें कि इस अमेरिका ने इस सम्मेलन में चीन, रूस व बांग्लादेश जैसे कुछ देशों को आमंत्रित नहीं किया है। इससे चीन और रूस खासे नाराज हैं। उन्होंने बाइडन प्रशासन को शीत-युद्ध की सोच दर्शाने वाला बताकर अपनी भड़ास निकाली है। चीन तथा रूस ने इस सम्मेलन को दुनिया में वैचारिक मतभेद तथा दूरियां बढ़ाने वाला बताया।
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