डूटा में अध्यक्ष पद पर 24 साल बाद जीत को किस रूप में देखते हैं?
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ में अध्यक्ष पद पर भले ही नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट यानी एनडीटीएफ की 24 साल के अंतराल पर वापसी हुई है लेकिन अन्य पदों पर हम निरंतर जीत दर्ज कराते रहे हैं। संगठन 40 साल से भी अधिक अरसे से परिसर में सक्रिय है। अध्यक्ष को छोड़कर डूटा कार्यकारिणी में हमारी निरंतर भागीदारी रही है। हर बार एनडीटीएफ के कई उम्मीदवार जीतते रहे हैं। पिछले तीन चुनावों से विद्वत और कार्यकारी परिषद में संगठन सशक्त रूप से उभरा है। विगत फरवरी में ही कार्यकारी परिषद में एनडीटीएफ ने लगातार चौथी बार विजय हासिल की है। कार्यकारी परिषद से वामपंथियों को पहले ही बाहर कर दिया था। हां, इस बार वामपंथी संगठन डीटीएफ को अध्यक्ष पद से भी खदेड़ दिया।
कैंपस में विचारधारा की राजनीति को कैसे देखते हैं?
एनडीटीएफ एक राष्ट्रवादी शिक्षक संगठन है जो उच्च शिक्षा में लगातार अपनी विचारधारा को लेकर चल रहा है। इसने अपनी विचारधारा को लेकर किसी और दल के साथ समझौता नहीं किया है। वामपंथी संगठन लगातार कांग्रेस से समझौता करके अपनी जीत सुनिश्चित करते रहे हैं। पिछले चुनाव में भी अध्यक्ष पद पर समझौतावादी नीति अपनाकर ही एनडीटीएफ को हराया गया था। तीन संगठन अपनी नीतियों और विचारधारा के साथ समझौता करके एनडीटीएफ को हराने के लिए एक मंच पर आ गये थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। अबकी बार वामपंथ पर रामपंथ की जीत हुई है। रामपंथ का मतलब है सच्चाई और भारतीय संस्कृति की जीत। एनडीटीएफ शिक्षा के स्तर पर भारतीय संस्कृति और सभ्यता के साथ है। उन्हीं को आगे बढ़ाना चाहता है।
डूटा में अध्यक्ष पद पर दो दशक बाद एनडीटीएफ को मिली जीतदिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के चुनाव में इस बार नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एनडीटीएफ) ने जीत हासिल की है। करीब दो दशक के बाद कोई भाजपा समर्थक संगठन से डूटा का अध्यक्ष बना है। दयाल सिंह कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार भागी डूटा के नए अध्यक्ष चुने गए हैं। प्रो. भागी को चुनाव में कुल 3584 वोट मिले, जबकि उनके निकट प्रतिद्वंदी डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की उम्मीदवार प्रोफेसर आभा देव हबीब को 2202 वोट मिले। इससे पहले 1998 में डूटा का अध्यक्ष भाजपा समर्थित संगठन से चुना गया था। उस समय श्रीराम ओबरॉय अध्यक्ष बने थे। |
अगले साल से लागू होने वाली नई शिक्षा नीति की चुनौतियों का सामना आप कैसे करेंगे?
नई शिक्षा नीति में छात्रों से संबंधित जो भी अच्छी चीजें हैं, उसका हम स्वागत करते हैं। मैसिव ओपन आनलाइन कोर्स यानी मूक जो आनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देता है, उसका विरोध करेंगे। उच्च शिक्षा में 50 प्रतिशत से अधिक फर्स्ट लर्नर आता है। उन्हें अपने संदेह और अनसुलझे सवालों को हल करना होता है। ऐसे छात्रों को मैसिव ओपन आनलाइन कोर्स यानी मूक की ओर नहीं जाने देंगे। उच्च शिक्षा में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्र आते हैं, उन्हें ऐसी प्रणाली से नुकसान होगा। मूक से बेरोजगारी भी बढ़ेगी। उच्च शिक्षा नीति में द्विभाषी व्यवस्था का हम स्वागत करते हैं। इससे भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। शिक्षा का भारतीयकरण होगा। विश्वविद्यालय में वर्कलोड कैसे बढ़े, इसके लिए उपाय किए जाएंगे। सरकार से भी मांग की जाएंगी कि शिक्षा में जीडीपी को 6 प्रतिशत की जगह 10 फीसदी तक पहुंचाए।
दिल्ली विश्वविद्यालय में तदर्थवाद की समस्या से कैसे निपटेंगे?
तदर्थ साथियों का स्वागत है। उनका नियमितीकरण हमारे संगठन की प्राथमिकता है। हमारी मांग होगी कि सरकार ऐसे बिल लाए जिससे बड़ी संख्या में कार्यरत तदर्थ साथी नियमित हो सकें। उनकी नियुक्ति 200 प्वाइंट रोस्टर से हुई है। वे योग्य हैं। कई सालों से विश्वविद्यालय की सेवा में हैं। ऐसे लोगों को नियमित कराने के लिए विशेष प्रावधान किए जाने की मांग होगी।
दिल्ली सरकार के कॉलेजों में वेतन संकट को कैसे दूर करेंगे?
वेतन संकट के समाधान के लिए हम दिल्ली सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। अगर उनके बकाया वेतन और अन्य भत्ते जारी नहीं हुए तो शिक्षकों को साथ लेकर सड़क पर उतरेंगे। दिल्ली सरकार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलेंगे।
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