उत्तराखंड में सरकार ने नजूल भूमि पर बरसों से काबिज लोगों को मालिकाना हक देने का निर्णय लिया है। ये वो लोग हैं, जिन्हें विभाजन के बाद यूपी और भारत सरकार ने तराई भावर क्षेत्र में भूमि लीज पर देकर बसाया था। उत्तराखंड जब यूपी का हिस्सा था तब कल्याण सिंह सरकार ने नजूल भूमि पर बसे लोगों के लिए एक योजना शुरू की थी, जिसके तहत इस भूमि पर काबिज लोगों को बाजार मूल्य से सस्ते दरों पर पैसा जमा करवाकर सरकार उन्हें जमीन का मालिकाना हक दे रही थी। उस वक्त बहुत से लोगों ने इसका लाभ लिया था।
उत्तराखंड बनने के बाद नजूल भूमि पर मालिकाना हक देने की मांग यहां काबिज लोगों द्वारा हर सरकार से की जाती रही है। सरकार कभी ये योजना शुरू करती है फिर बन्द कर देती है। सरकार इस योजना का लाभ देना चाहती थी, किंतु सरकार को हाई कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और धामी सरकार ने कैबिनेट में बैठक कर नजूल पॉलिसी को फिर से लागू कर दिया है।
दरअसल, 1947 विभाजन के दौरान जो हिन्दू शरणार्थी पाकिस्तान से भारत आये उन्हें यूपी राज्य सरकार और केंद्र ने शहरों में जमीन लम्बी लीज पर दी हुई, जिसपर लोगों ने नीचे दुकान और ऊपर मकान बनाकर अपना जीवन यापन शुरू किया था। आज ये संपत्ति बाजार में सरकार के सर्किल रेट के हिसाब से बेशकीमती हो चुकी है। ये नजूल भूमि 60 से 90 साल की लीज पर है। इनपर पक्का निर्माण भी हो चुका है। इस संपति पर लोग काबिज तो हैं पर मालिक सरकार ही है। सरकार की नजूल पॉलिसी कहती है कि आप सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर इस संपति के मालिक बन सकते हैं। मालिक बनने के बाद इस पर बैंक ऋण भी दे सकता है, जो अभी तक नहीं दे रहा था। तराई का उधमसिंहनगर, हरिद्वार, देहरादून, रामनगर और हल्द्वानी में हजारों लोगों को नजूल संपति का मालिकाना हक मिल जाने से उन्हें फायदा होगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस योजना को पास करके तराई के हजारों पंजाबी परिवारों को सीधे-सीधे सरकार की तरफ से लाभ देने की कोशिशों को अंजाम दिया है। उनका कहना है कि इससे हजारों लोगों को अपनी कर्मभूमि का मालिक बनने का अवसर मिलेगा और राज्य सरकार को अरबों का राजस्व मिल सकेगा।
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