चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का सबसे अहम मुकाम ग्वादर इन दिनों पाकिस्तान सरकार के खिलाफ मकामी (स्थानीय) बलूच लोगों के जद्दोजहद (संघर्ष) का अहम ठिकाना बना हुआ है। वैसे तो यह सब चार-पांच महीनों से चल रहा है, लेकिन हाल के दिनों में यह काफी तेज हो गया है। लोग बड़ी तादाद में घरों से निकलकर सड़कों पर उतर आए हैं और ग्वादर में जिस तरह के हालात बन गए हैं, उनमें पोर्ट का ज्यादातर काम रुक गया है। पाकिस्तान और चीन के लिए सीपीईसी की खास अहमियत है और इस वजह से ग्वादर उनके लिए ऐसा ठिकाना है, जिसे वे पूरी तरह अपने कब्जे में रखना चाहते हैं। ग्वादर की हिफाजत के लिए पाकिस्तान ने 2016 में ही तमाम एजेंसियों के बेहतरीन जवानों को शामिल करके अलग से एक बटालियन बनाई थी। लेकिन उसके बाद भी 2019 में ग्वादर के सबसे बड़े होटल, पर्ल कंटिनेंटल पर कौमी आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलूचों ने हमला कर दिया था जिसमें बड़ी तादाद में पाकिस्तानी फौजी मारे गए थे। लिहाजा, ग्वादर में हाल में जिस तरह बड़ी तादाद में लोग शरीक हो रहे हैं, उसे देख पाकिस्तानी हुकूमत खौफजदा है।
चंद दिनों पहले इसमें सैकड़ों स्टुडेंट शामिल हुए और उन्होंने ग्वादर की सड़कों पर मार्च किया। अभी कुछ ही दिन पहले बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी से सोहेल और फसीह बलोच को अगवा कर लिया गया था जिसके खिलाफ ग्वादर यूनिवर्सिटी के लड़कों ने क्लासेज का बॉयकॉट भी किया। ग्वादर के उस प्रोटेस्ट में शामिल ज्यादातर स्टुडेंट इस बात के हामी हैं कि खास तौर पर ग्वादर के मामले में पाकिस्तान चाहता है कि यहां से मकामी लोग हट जाएं। सियासी वर्कर मौलाना कादिर का कहना है कि यह कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान को पंजाब और चीन की खुशहाली के लिए ग्वादर तो चाहिए, लेकिन ग्वादर के लोग नहीं। वैसे ही, जैसे उन्हें कभी बांग्लादेश की जमीन चाहिए थी, लेकिन बांग्लादेशी नहीं। इसी वजह से यहां के लोगों के लिए तरह-तरह की दिक्कतें खड़ी की जा रही हैं।
ग्वादर में चीन और पाकिस्तान के अफसरों और फौजियों के लिए सारे इंतजामात किए गए हैं। उनके लिए पीने के पानी से लेकर हर जरूरी और ऐशो-आरोम की चीज का बंदोबस्त है, लेकिन यहां के लोगों के लिए पीने का पानी तक मयस्सर नहीं है। पानी की कमी से जूझ रहे लोग कहीं इनके इलाकों में जाकर पानी न लूट लें, इसके लिए फौजी तैनात किए गए हैं।
पोर्ट सिटी ग्वादर में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो समंदर से मछली मारकर गुजर-बसर करते हैं। लेकिन इन छोटे-छोटे मछुआरों को यह हक नहीं कि—समंदर में जाकर मछली पकड़ सकें। उन्हें इसके लिए इजाजत लेनी पड़ती है और जान-बूझकर इसमें तरह-तरह की दिक्कतें पेश की जाती हैं। जबकि बड़े ट्रॉले समंदर में मछलियां पकड़ते हैं और इससे समंदर के किनारे मछलियां तेजी से खत्म होती जा रही हैं।
24 नवंबर को अरशद मजीद ने सीनियर अफसरों के साथ मीटिंग करके ग्वादर के हालात का जायजा लिया। इस बैठक में इस बात पर गौर किया गया कि अगर जल्द ही लोगों की नाराजगी दूर नहीं की गई तो कोई बड़ी मुश्किल भी खड़ी हो सकती है। इस मामले में मछुआरों की यह मांग मान ली गई कि ग्वादर के समंदर में बड़े-बड़े ट्रॉले जिस तरह गैर-कानूनी तरीके से मछली मारते हैं, उसे रोका जाए। यहां ऐसे तमाम अफसर हैं जो पैसे लेकर इन बड़े ट्रॉलों को मछली मारने देते हैं। मीटिंग के बाद तत्काल ही अरशद मजीद ने इस बात का आॅर्डर जारी किया कि ग्वादर में 12 नॉटिकल मील तक इस तरह गैर-कानूनी तरीके से मछली मार रहे बड़े ट्रॉलों को हर हाल में रोका जाए। इसके साथ ही ग्वादर के डिप्टी कमिश्नर ने 24 नवंबर को ही खास तौर पर डीएसपी (लीगल) को आॅर्डर दिया कि वह देखें कि मछुआरों की नावें वगैरह क्यों सीज की गईं और उन्हें जल्दी से जल्दी छुड़ाने के बंदोबस्त करें। पिछले चंद रोज इस लिहाज से खासे अहम साबित हुए हैं कि हुकूमत तेजी से बिगड़ रहे हालात को काबू करने के लिए एक के बाद एक कई ऐसे फैसले कर रही है जिसके लिए बलूच लंबे अरसे से मांग करते रहे थे।
वैसे, कुछ खास लोगों से इस तरह की जानकारी मिली है कि ग्वादर के सीनियर सुपरिंटेंडेंट आॅफ पुलिस तारीक ईलाही मस्तोई ने 24 नवंबर को तमाम एजेंसियों की मीटिंग बुलाई थी जिसमें हालात का जायजा लेने के अलावा लोगों के प्रोटेस्ट से निपटने के तरीकों पर गौर किया गया। बताते हैं कि उनकी इंटेलिजेंस के लोगों के साथ भी मुलाकात हुई है। इस मीटिंग में क्या हुआ, इसके बारे में कोई खास मालूमात तो नहीं है, लेकिन यही अंदाजा है कि हुकूमत ने बलूचों के इस प्रोटेस्ट को तोड़ने के लिए इंटेलिजेंस के कुछ लोगों को लगा रखा था और इस मीटिंग में इस बात पर चर्चा हुई कि आखिर उनका हासिल क्या रहा।
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