पाकिस्तान और आतंकवाद अब एक ही सिक्के के दो पहलू के तौर पर दुनिया में बदनाम हो चुके हैं। पाकिस्तान और उसकी गुप्तचर संस्था आइएसआइ अपने मजहबी कट्टरवाद के साथ जिहाद को इस तेजी से प्रसारित करने में लगी हैं कि अब यह कोई छुपी बात नहीं रह गई है। इस बीच एक रिपोर्ट ने पाकिस्तान की इसी प्रवृत्ति का फिर से खुलासा किया है।
दुनिया भर में प्रतिबंधित कुख्यात लश्करे—तैयबा आतंकी गुट ने पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वाह तथा अफगानिस्तान के कुछ इलाकों में अपने नए आतंकी शिविर जमाए हैं। इन आतंकी शिविरों में नए जिहादियों की भर्तियां की जा रही हैं और जिहाद का प्रशिक्षण भी जोरों से चल रहा है। एक पोर्टल के अनुसार, पाकिस्तान का यह दावा भले हो कि वह आतंकवाद और आतंकवादियों के विरुद्ध कदम उठा रहा है, लेकिन असल में तो पिछले कुछ वक्त में आतंकी गुटों की गतिविधियां बढ़ी ही हैं। विशेष रूप से लश्करे तैयबा गुट के जिहादी हक्कानी नेटवर्क तथा इस्लामिक स्टेट—खुरासन से साठगांठ करके अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं।
यह वही लश्करे-तैयबा गुट है जिसने 2008 में हुए मुंबई में आतंकी हमला किया था। बाद में पाकिस्तान द्वारा पाले जा रहे इस गुट पर कड़ी कार्रवाई करने का पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा था। लेकिन आतंकियों को पोसने वाले पाकिस्तान में इतनी जुर्रत कहां जो किसी भी आतंकवादी संगठन के विरुद्ध कोई कदम भी उठाता।
पाकिस्तान का यह दावा भले हो कि वह आतंकवाद और आतंकवादियों के विरुद्ध कदम उठा रहा है, लेकिन असल में तो पिछले कुछ वक्त में आतंकी गुटों की गतिविधियां बढ़ी ही हैं। विशेष रूप से लश्करे तैयबा गुट के जिहादी हक्कानी नेटवर्क तथा इस्लामिक स्टेट—खुरासन से साठगांठ करके अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं।
पाकिस्तान की हुकूमत अफगानिस्तान में सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लश्कर के जिहादियों का इस्तेमाल कर रही है। वह नहीं चाहता कि तालिबान उसके लिए कोई खतरा बने। वह नहीं चाहती कि तालिबान उसके लिए कोई खतरा बने। विशेषज्ञ मानते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान के कुर्सी पर चढ़ बैठने में लश्कर जैसे जिहादी गुट ने बड़ा हाथ बंटाया था।
पूर्व में भी एक अमेरिकी निगरानी समूह ने 2018 में ही खुलासा किया था कि लश्करे तैयबा पाकिस्तान में मदरसों के माध्यम से अपने तानेबाने को मजबूती देने में जुटा है। 2008 में मुम्बई हमले के बाद दुनिया भर से दबाव आने के बाद भी पाकिस्तान की हुकूमत की शह पर लश्करे तैयबा अपनी ताकत बढ़ाता गया था। उसके साथ आइएसआइ और पाकिस्तान की सेना का समर्थन भी था।
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