एक ओर तो चीन 'आसियान' की बैठक में खुद को 'मासूम' और 'सबका दोस्त' जैसा दिखाने की कवायद कर रहा है, तो दूसरी ओर हांगकांग और ताइवान को पूरी तरह निगलने को तैयार बैठा है। हांगकांग से ताजा समाचार है कि वहां के निजी स्कूलों में अब बच्चों को चीनी पहचान के और नजदीक लाने के चीनी षड्यंत्र को अमली जामा पहना दिया गया है। लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को रौंदने और आंदोलनकारी युवाओं का भविष्य बर्बाद करने में कामयाब हुए चीन का अब वहां की प्रशासक सरकार पर ऐसा डंडा पड़ा है कि हांगकांग के स्कूलों में नया फरमान जारी हुआ है। अब निजी स्कूलों में महत्वपूर्ण दिवसों पर चीनी राष्ट्रगान गाना और चीनी झंडा फहराना जरूरी बना दिया गया है। इस आदेश का नया कानून पारित हुआ है।
उल्लेखनीय है कि चीन मामलों के जानकारों ने हांगकांग पर चीन की इस नई जबरदस्ती को आने वाले वक्त के लिए खतरनाक बताते हुए चिंता व्यक्त की है। जानकारों का कहना है कि इस नए कानून के रास्ते स्कूली छात्र—छात्राओं में जबरन चीन के लिए एक लगाव पैदा करने की चाल चली जा रही है। वॉयस ऑफ अमेरिका ने इस संबंध में जारी सरकारी बयान को उद्धत करते हुए बताया है कि 'इस नए कानून का मकसद है राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आगे बढ़ाना। इसका काम यह भी है कि छात्रों में राष्ट्रीय भावना को विकसित किया जाए'। सरकारी बयान आगे कहता है कि चीनी राष्ट्रगान गाने से जुड़ा कानून भी हांगकांग के छात्रों के अंदर चीन वालों के लिए एक लगाव पैदा करना है।
बताया गया है कि ये कानून हांगकांग में अगले साल के शुरू में देश के सभी निजी प्राथमिक तथा माध्यमिक स्कूलों में लागू कर दिए जाएंगे। स्कूलों में हर हफ्ते कम से कम एक बार चीनी राष्ट्रगान गाने के साथ ही चीनी झंडा फहराने के कार्यक्रम करने होंगे। बता दें कि जून 2021 में राष्ट्रगान अध्यादेश बनने के बाद इसकी घोषणा हुई थी। नया कायदा यह भी कहता है कि चीनी राष्ट्रगान अथवा झंडे का 'अपमान' बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा करने वाले को अपराधी मानते हुए सजा दी जाएगी।
ऑस्ट्रेलिया के मर्डोक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा हांगकांग की अकादमिक आजादी पर किताब लिख चुकीं जैन क्यूरी भी इस नए कानून का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि यह नीति स्कूली बच्चों को 'चीनी राष्ट्र के अंतर्गत चीन का नागरिक' बनाने की कोशिश ही है। |
हालांकि हांगकांग में आम लोग इन नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं, स्कूली छात्र तथा शिक्षक भी इस कानून के विरुद्ध हैं। कई ने तो यहां तक कहा कि वे राष्ट्रगान के वक्त बस खड़े होकर चुप रहेंगे, इसे नहीं गाएंगे। ऑस्ट्रेलिया के मर्डोक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा हांगकांग की अकादमिक आजादी पर किताब लिख चुकीं जैन क्यूरी भी इस नए कानून का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि यह नीति स्कूली बच्चों को 'चीनी राष्ट्र के अंतर्गत चीन का नागरिक' बनाने की कोशिश ही है।
पिछले कुछ साल से हांगकांग के युवाओं ने लोकतंत्र की मांग और चीन का विरोध करते हुए आंदोलन छेड़ रखा है। चीन ने हांगकांग के प्रशासन के जरिए इसका पूरी सख्ती से दमन किया है। युवाओं को फर्जी अपराधों में जेल में डाला है और उनके परिवारों को यातनाएं दी गई हैं। सैकड़ों युवाओं को भूमिगत होना पड़ा है तो कुछ दूसरे देशों में जा छुपे हैं। हालांकि उनका कहना है कि वे इस आंदोलन को जिलाए रखेंगे और हार नहीं मानेंगे। लेकिन चीन के राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट तंत्र अपनी बेरहमी के लिए कुख्यात है। उसकी पूरी कोशिश है कि अब छोटे स्कूली बच्चों से ही शुरुआत करके ऐसा मस्तिष्क परिमार्जन किया जाए कि आगे चलकर कोई चीनी सत्ता के विरुद्ध आंख न उठा पाए।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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