अफगानिस्तान में टेलीविजन कार्यक्रमों पर तालिबान मुल्लाओं की निगरानी कड़ी होती जा रही है। अब पाषाणकालीन जमाने की सोच के इन कठमुल्लों ने इस क्षेत्र के लिए नए फरमान जारी किए हैं। इन फरमानों में खास यह है कि जिन सीरियलों या कार्यक्रमों महिला चरित्र होंगे और उन्हें महिलाएं निभा रही होंगी तो उन्हें दिखाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। इतना ही नहीं, अभी जो चैनल ऐसे कार्यक्रम या सीरियल दिखा रहे हैं वे इन्हें फौरन बंद कर दें। साथ ही, पर्दे पर आने वाली महिला एंकरों को भी बिना हिजाब पहने कार्यक्रम पेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। और यह सब किया गया है, एक बार फिर 'शरिया कानूनों' के अंतर्गत।
हालांकि गत अगस्त में अफगानिस्तान की सत्ता पर पर लड़ाके तालिबान के काबिज होने के बाद ही साफ होने लगा था कि अफगानिस्तान अब मध्ययुगीन सोच के दौर में खींच लाया जाएगा। लोगों ने पिछले 20 साल में जिस खुली हवा में सांस ली थी, उसके दरवाजे अब बंद हो जाएंगे। और धीरे धीरे नहीं बल्कि पूरी सरगर्मी से आज पाकिस्तान प्रायोजित तालिबान लड़ाकों ने आम अफगानियों को जीना मुहाल बना दिया है।महिलाओं को 'बराबरी का हक' देने की बातें करने वाले तालिबान ने उससे उलट उन पर शिकंजा और कसना शुरू कर दिया है। पता चला है कि 20 नवम्बर को ये नए फरमान जारी किए गए हैं। अफगान टेलीविजन चैनलों को कह दिया गया है कि अब उन पर ऐसे सीरियल और कार्यक्रम बंद हो जाने चाहिए, जिनमें महिला अदाकार हों। इस क्षेत्र को देख रहे तालिबान मंत्रालय ने अफगानी मीडिया के लिए अपनी तरह का पहला फरमान जारी किया है।
तालिबान ने टेलीविजन समाचार पेश करने वाली महिला एंकरों, समाचार वाचकों को साफ कहा है कि वे पर्दे पर बिना हिजाब ओढ़े समाचार पढ़ती नहीं दिखनी चाहिए। हिजाब पहनना अनिवार्य है। शरिया पर चलते हुए, मंत्रालय ने टेलीविजन चैनलों को ऐसी फिल्में या कार्यक्रम न दिखाने को कहा है, जिनमें 'पैगंबर मोहम्मद' या दूसरे 'सम्मानित लोगों' के बारे में कुछ भी दिखाया जाए। |
इतना ही नहीं, तालिबान ने टेलीविजन समाचार पेश करने वाली महिला एंकरों, समाचार वाचकों को साफ कहा है कि वे पर्दे पर बिना हिजाब ओढ़े समाचार पढ़ती नहीं दिखनी चाहिए। हिजाब पहनना अनिवार्य है। शरिया पर चलते हुए, मंत्रालय ने टेलीविजन चैनलों को ऐसी फिल्में या कार्यक्रम न दिखाने को कहा है, जिनमें 'पैगंबर मोहम्मद' या दूसरे 'सम्मानित लोगों' के बारे में कुछ भी दिखाया जाए। यानी ऐसी फिल्में या कार्यक्रम नहीं दिखाए जा सकते हैं जिनमें इस्लामी तथा अफगानी मूल्यों के विरुद्ध कुछ भी सामग्री हो।
उल्लेखनीय है कि संबंधित मंत्रालय के प्रवक्ता हाकिफ मोहजीर का कहना है कि ये कायदे नहीं हैं, बल्कि मजहबी फरमान हैं। दिलचस्प तथ्य है कि तालिबान ने दोहा में समझौते के वक्त कसमें खाई थीं कि वह पहले जैसा राज नहीं करेगा, उसकी सोच खुली होगी। पर, जो हो रहा है, वह सब वही हो रहा है जो 1996 से 2001 के बीच उसने इस देश में किया था।
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