हिन्दुत्व, सलमान खुर्शीद और भारत

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सलमान खुर्शीद की यह सोच जानकर आज इसलिए ज्यादा अफसोस है क्योंकि भारत के ऐसे मुसलमान हैं जो वर्षों महत्वपूर्ण पदों पर रहने के
बाद भी भारत की आत्मा अर्थात हिन्दुत्व को नहीं समझ पाए, जान पाए?

 

डॉ. मयंक चतुर्वेदी 

पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की नई किताब  'सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन ऑवर टाइम्स' में हिन्दुत्व को लेकर जो व्याख्या की गई है और जिस तरह से आतंकवादी संगठनों के साथ इस शब्द को जोड़ा गया है, उससे यह समझ आ रहा है कि वह देश हिन्दू बाहुल्य भारत ही हो सकता है, जहां बहुसंख्यक समाज के मानबिन्दुओं का मजाक, उस पर विवादास्‍पद टिप्प्णियां की जा सकती हैं। उनकी तुलना आतंकवादी संगठनों से होगी और जो ऐसा कर रहे हैं वे मजे से अपना जीवन निर्वाह कर सकते हैं। तमाम संविधानिक प्रावधान होने के बाद भी मजाल है कि कोई ऐसे लोगों का बाल भी बाँका कर ले,   कोई कुछ करनेवाला नहीं। कभी ज्यादा हुआ तो माफी मांग लेंगे। किंतु जो संदेश देना था, जहां देना था, जैसा देना था, वहां तक संदेश पहुंचा दिया जाता है।

सलमान खुर्शीद की यह सोच जानकर आज इसलिए ज्यादा अफसोस है क्योंकि वे भारत के ऐसे मुसलमान हैं, जोकि भारत सरकार में भूतपूर्व विदेश मंत्री रहे हैं। वह जून 1991 में वाणिज्य के केंद्रीय उप मंत्री बने। पंद्रहवीं लोकसभा के मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में सहकारी एवं अल्पसंख्यक मामलों से संबंधित मंत्रालय में भी उन्हें मंत्री बनाया गया था। नामित वरिष्ठ अधिवक्ता और कानून शिक्षक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा रही है। वर्षों महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद भी वे भारत की आत्मा अर्थात् हिन्दुत्व को नहीं समझ पाए, जान पाए? घोर आश्चर्य है। 

कम से कम उनकी किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन ऑवर टाइम्स'  तो आज यही बता रही है कि जिस कट्टर सोच की उम्मीद भारत में ऐसे पढ़े-लिखे और तमाम बड़े संवैधानिक पदों पर रहने वाले व्यक्ति से नहीं की जा सकती है,  आज सलमान खुर्शीद में वही कट्टर सोच दिखाई दी है। कहना होगा कि जिसके वशीभूत हो वह हिन्दुत्व जैसे सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की दृष्टि को आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) और बोको हरम जैसे जिहादी इस्लामिक आतंकवादी समूहों से जोड़ते नजर आ रहे हैं । 

वस्तुत: खुर्शीद की यह हिन्दुत्व शब्द से आतंकी संगठनों के साथ की गई तुलना आज एक बार फिर उस दौर की याद दिला रहा है, जब कभी इसी प्रकार से ''भगवा आतंकवाद'' शब्द भी कांग्रेस के नेताओं द्वारा गढ़ा गया था और समग्रता के साथ हिन्दुत्व, हिन्दुओं के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पक्ष को अपमानित करने का काम त्याग के प्रतीक भगवा के साथ ही भारत की भूमि पर शुरू हुआ था। उन्होंने अपनी पुस्तक में जो लिखा है उसे पढ़कर यही समझ आ रहा है, जैसे अब तक वह छद्म व्यवहार कर रहे थे। उन्होंने मन के किसी कोने में सेक्युकलर लिबाज में अपने अंदर के विचारों को छिपा रखा था। असली खुर्शीद तो अब बाहर निकलकर आए हैं, अपनी समग्र विचारधारा के साथ ।

देखा जाए तो भारत वर्ष के प्रत्येक सनातनी के लिए 'हिन्दुत्व' शब्दा वैसा ही है जैसे ईसाईयत के लिए बाईबिल और इस्लाम के लिए कुरान एक शब्द‍ के रूप में महत्वपूर्ण। ऐसा कहने के पीछे का तर्क यह है कि हिन्दुत्व में कोई एक किताब पहली या अंतिम नहीं है, यहां यह शब्द ही अपने आप में पूर्ण है। हिन्दुत्व का अर्थ हिन्दू‍ तत्व जो उसके माननेवालों के समस्त जीवन दर्शन से व्याख्यायित होता है से है। यह हिन्दुत्व ही है जिसने बहुसंख्यतक होते हुए भी अल्पसंख्यकों को इतने ज्यादा अधिकार दिए हुए हैं कि उनके मंदिरों में आया हुआ भक्तों का धन जो सिर्फ देवता का है, वह भी लोककल्याणकारी राज्य के नाम पर सरकारें अल्पसंख्यकों तक की योजनाओं पर खर्च करने में देरी नहीं करती हैं और बहुसंख्यकक हिन्दू है कि इस निर्णय को भी सेवा मानकर अपने सिरमाथे स्वीकार्य करता है। 

क्या कोई इस बात को नकार सकता है कि बहुसंख्य हिन्दू  समाज से किसी भी रूप में प्राप्त होनेवाली आय के एक भाग से राज्य मदरसों के शिक्षकों को वेतन नहीं बांटता? लोककल्याणकारी राज्यके विकास का व्यापक तानाबाना इसी हिन्दुओं के रुपयों पर टिका हुआ है, लेकिन उसके बाद भी कभी कोई तो कभी कोई इसी हिन्दू के प्रतिमानों पर प्रश्न खड़े करता रहता है। यह सभी कुछ होता है भारत के संविधान की आड़ लेकर उसमें वर्णित अभिव्यक्ति की आजादी के नाम से। 

हिन्दुत्व शब्द सदियों पुराना है, जितनी कि मानवजाति। आज कोई दावा नहीं कर सकता है कि यह हिन्दू धर्म कितने वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था। हिन्दुत्व पर जो लोग आज प्रश्न खड़े कर रहे हैं आज उन्हें इससे पहले हिन्दू शब्द को परिभाषिक रूप से समझना चाहिए। हिन्दू यानी "हीनं दुष्यति इति हिन्दूः है। '' अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं। यदि संस्कृत के इस शब्द का सन्धि विछेदन करें तो  हीन + दू = हीन भावना + से दूर, तात्पर्य कि जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे, वो हिन्दू है। आधुनिक इतिहास की पुस्तकों में जो यह बार-बार बताया गया है कि हिन्दू शब्द सिंधु से हिन्दू हुआ है या सर्वप्रथम ईरानियों की देन है । वस्तुत: इसमें कोई सत्य- नहीं है। 

हिन्दू शब्द पुराण साहित्य में है। महर्षि बृहस्पति ने राजनीति का शास्त्र बार्हस्पत्य शास्त्र लिखा था। फिर वराहमिहिर ने बृहत्संहिता के नाम से रचना की । इसके बाद बृहस्पति-आगम की रचना हुई। 'बृहस्पति आगम' सहित अन्य आगम ईरानी या अरबी सभ्यताओं से बहुत पूर्व ही लिखे जा चुके थे। अतः उसमें 'हिन्दुस्थान' का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि हिन्दू या हिन्दुस्थान नाम प्राचीन ऋषियों द्वारा दिया गया था न कि अरबों,  ईरानियों से। यह नाम बाद में इन सभी के द्वारा लिया जाने लगा, यहां सिर्फ इतना ही सत्य है।

इनमें लिखा गया, हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥ अर्थात, हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। संस्कृत ग्रंथों में आया है। "हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्चते प्रिये।'' जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं। इससे मिलता-जुलता लगभग यही श्लोक " कल्पद्रुम " में भी दोहराया गया है- "हीनं दुष्यति इति हिन्दूः।'' यानी जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं। "पारिजात हरण" में हिन्दू शब्द का अर्थ बताया गया ''हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं। हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिन्दुर्विधीयते।।'' अर्थ यह है कि जो अपने तप से शत्रुओं का, दुष्टों का और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है।

इन ग्रंथों के अतिरिक्तं "माधव दिग्विजय" ग्रंथ में बतलाया गया है कि हिन्दू शब्द का अर्थ हुआ, ''ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढाशय:। गौभक्तो भारत: गरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।'' वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, गौ-पालन करे तथा बुराइयों को दूर रखे, वह हिन्दू है। कुलमिलाकर यही कि बुराइयों को दूर करने के लिए सतत प्रयासरत रहने वाले,  सनातन धर्म के पोषक एवं पालन करने वाले हिन्दू हैं । "हिनस्तु दुरिताम्"। अब इस हिन्दू शब्द की परिभाषा के बाद हिन्दुत्‍व को भी समझ लें। 

वस्तुसत: हिन्दुन् मूल (प्रकृति) में एक ''सुप्'' प्रत्यय के योग से हिन्दू बनता है । और इसी हिन्दुन् मूल में एक ''तद्धित'' प्रत्यय के योग से बन जाता है हिन्दुत्व । हिन्दू और हिन्दुत्व, इन दोनों शब्दों के बीच वही सम्बन्ध है जो मधुर और मधुरत्व या मधुरता में है। सुन्दर और सुन्दरत्व या सुन्दरता में है। महत् या महान और महत्वन या महत्ता में है। यहां समझने वाली बात यह है कि मधुरता और मधुरत्व दोनों ही अलग-अलग ''तद्धित'' प्रत्ययों के योग से प्राप्त होते हैं और समानार्थ हैं। इसी प्रकार सुन्दरत्व, सुन्दरता एवं अन्य शब्द हैं । 

अत: कहना होगा कि हिन्दुत्व का अर्थ हुआ, एक हिन्दू व्यक्ति के सभी गुणों, लक्षणों या विशेषताओं का संग्रह। यानी कि हिन्दुत्व शब्द के परे कोई भी ऐसा लक्षण नहीं है, जो एक हिन्दू के भीतर समाहित न हो । हिन्दुत्व का कुल अर्थ सनातन धर्म को माननेवाला, उसके अनुसार आचरण और जीवन जीनेवाले से है। इसलिए आज जो लोग हिन्दू और हिन्दुत्व  इन दो शब्दों को अलग कर राजनीति करने एवं भारत की सामान्य जनता को भ्रम में डालने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि इन दोनों शब्दों में कोई भेद नहीं है। यह दोनों ही शब्द एक ही अर्थ के पूरक हैं और वह है भारत का सनातन धर्म, जिसके कारण से ही भारत सदियों से अपनी विशिष्ट पहचान के साथ भारत बना हुआ है। खुर्शीद जैसे लोग इसे जितना जल्दी समझें उतना ही इस देश के लिए अच्छा है। 

(लेखक फिल्म प्रमाणन बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं)
 

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