आज यह संदेह जोर पकड़ता जा रहा है कि अफगानिस्तान में अब पाकिस्तान प्रायोजित तालिबान की नहीं, बल्कि तालिबान के कट्टर दुश्मन आतंकी गुट इस्लामिक स्टेट की तूती बोलने लगी है। इस्लाममिक स्टेट या आईएस—के देश में तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है और तालिबान के लिए बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है।
खबर है तालिबान के लिए अफगानिस्तान को संभालना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है, क्यों शायद ही कोई ऐसा सूबा बचा है जहां उसका दुश्मन आतंकी गुट इस्लामिक स्टेट—के के हथियारबंद आतंकी तालिबानी लड़ाकों के जान के प्यासे न हों।
यह सनसनीखेज जानकारी देते हुए अफगानिस्तान के मामलों की संयुक्त राष्ट्र की राजदूत ने कहा है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट बहुत तेजी से पैर पसार रहा है। यह खूंखार इस्लामिक आतंकी गुट देश के करीब 34 सूबों में पूरी धमक के साथ मौजूद है।
विशेष राजदूत डेबोरा लियोन का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दिया गया बयान इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि तालिबान प्रायोजक पाकिस्तान और चीन ने तालिबान की मदद के लिए दुनिया के सामने अपनी गुहार तेज कर दी है। लियोन ने बताया कि तालिबान अपने दुश्मन दूसरे इस्लामिक आतंकी गुट स्टेट-खुरासान (आईएस—के) का बढ़ना रोकने के लिए गुपचुप इसके लड़ाकों को पकड़ रहा है या उनकी हत्या कर रहा है।
लियोन ने आगे कहा कि अफगानिस्तान आज ऐसा क्षेत्र बन गया है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के तमाम देशों को बहुत ज्यादा गौर करने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि इस्लामिक स्टेट—के ने अफगानिस्तान में शियाओं को देखते ही मारने की धमकी दी हुई है और तालिबान उनकी सुरक्षा करने में अभी तक नाकाम रहे हैं। पिछले दिनों दो शिया मस्जिदों में बड़ी तादाद में नमाज पढ़ रहे शियाओं को बम विस्फोट करके मारा जा चुका है।
संयुक्त राष्ट्र की विशेष राजदूत का कहना है कि तालिबान आईएस—के को रोकने में असफल रहा है। हालांकि आईएस—के पहले राजधानी काबुल या कुछ अन्य सूबों तक ही अपनी हरकतें चलाता था, लेकिन अब तो उसकी आतंकी घटनाओं की सूचना करीब हर सूबे से सुनाई देने लगी है। उसकी सक्रियता तेजी से बढ़ती जा रही है।
लियोन ने आगे बताया कि इस्लामिक स्टेट के आतंकी हमले अफगानिस्तान में तालिबान के पाकिस्तान की थमाई बंदूक के दम पर कुर्सी कब्जाने के बाद ज्यादा तेज हुए हैं। साल 2020 में जहां आईएस—के ने 60 आतंकी वारदातें की थीं, वहीं ये वारदातें इस साल और बढ़कर 334 हो गई हैं। हालांकि तालिबान अपने को एक 'सरकार' के तौर पर प्रस्तुत करने की जीतोड़ कोशिश में जुटे हैं, लेकिन पाकिस्तान प्रायोजित इस्लामिक लड़ाकों के इस गुट पर दुनिया के अधिकांश देश भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। तालिबान के देश पर काबू करने के बाद से समाज के हर वर्ग को शरिया के नाम पर अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है।
तालिबान आईएस-के को रोकने में असफल रहा है। हालांकि आईएस-के पहले राजधानी काबुल या कुछ अन्य सूबों तक ही अपनी हरकतें चलाता था, लेकिन अब तो उसकी आतंकी घटनाओं की सूचना करीब हर सूबे से सुनाई देने लगी है। उसकी सक्रियता तेजी से बढ़ती जा रही है।
लियोन का यह कहना कोई छुपा तथ्य नहीं है कि तालिबान पिछली सरकार के नजदीक रहे लोगों और सैनिकों को ढूंढ—ढूंढकर मार रहा है। अब पैसे की भयंकर तंगी और सूखे के कहर की वजह से वहां के लोग कष्ट सहने को मजबूर हैं। विशेषज्ञों को डर है कि आर्थिक पतन की वजह से अवैध मादक पदार्थों, हथियारों, मानव तस्करी आदि के मामले बढ़ने की संभावना है और इससे सिर्फ इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा ही मिलेगा।
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