डॉ. हरमहेन्द्र सिंह बेदी
गुरु नानकदेव जी की वाणी की प्रासंगिकता उनकी संवाद-भाषा में निहित है। आज पूरा विश्व संवाद के माध्यम से समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने में लगा हुआ है। गुरु जी ने 25 वर्ष तक पैदल यात्राएं कर संवाद और संपर्क का सूत्र दिया। उन्होंने एशिया के विभिन्न देशों का भ्रमण कर उन्हें विशाल भारत की संस्कृति से अवगत करवाया। मध्यकाल में भारतीय धर्म और दर्शन को नई दृष्टि देने में गुरु नानक का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने ही मध्यकाल के पुनर्जागरण की भूमिका का सरलीकरण किया। नानक वाणी का केन्द्र-बिन्दु ‘कीरत करना, नाम जपना और वंड छकना’ के व्यावहारिक दर्शन में छुपा है।
नानक जी ने मध्यकालीन समाज को ऐसे रास्ते पर चलाने की कोशिश की जिसका सीधा रिश्ता आदमी की उस खोई हुई पहचान को वापस लाने के साथ था, जिसका अंधविश्वास, गले-सड़े रीति-रिवाजों तथा बुरे आचरण के कारण पतन हो चुका था। नानक वाणी के अमर संदेश ने उन्हें फिर से नई जीवन दृष्टि से अपने अस्तित्व की पहचान करवाई। गुरु नानक अकाल पुरख की सत्ता को आदमी के दु:ख-दर्द के साथ जोड़कर नए आध्यात्मिक चिंतन की इस प्रकार शुरुआत करते हैं कि निर्गुण पद्धति मूल भक्ति का आधार बन जाती है। ‘जपुजी साहिब’ में गुरु जी जिस ऊंचे आचरण का पक्ष लेते हैं, वह पाखण्ड की दीवार को तोड़ता है तथा ईश्वर की रजा में रहकर उन आशीर्वाद को ग्रहण करने की प्रेरणा देता है, जिनके कारण सच्चा इनसान गुरुमुख की पदवी पा लेता है।
भक्ति आंदोलन दक्षिण में पैदा हुआ था। 15वीं शताब्दी में उत्तरी भारत में इस आंदोलन ने क्रांतिकारी परिवर्तन किए। भक्त कवियों का एक ध्येय यह भी था कि वे जाति-पाति का खण्डन करेंगे, रंग और नस्ल के भेद को नहीं मानेंगे तथा भाषा और लिपि की दीवार को फांद कर घर-घर मानवता के धर्म को फैलाएंगे। संतों का यह सपना उत्तरी भारत में उस समय साकार हुआ जब गुरु नानकदेव की वाणी में इन मूल्यों को समर्थन मिला। गुरु नानक देशों की सीमाओं को लांघ ऐसे इनसानी सरोकारों का समर्थन करते हैं जिन्होंने पूरे विश्व की सोच को नई जीवन दृष्टियों से जोड़ा। नानक वाणी का उद्देश्य ‘सत्यं-शिवं-सुन्दरं’ के भावों को प्रकट करना था।
ऐसे कार्य गुरु नानकदेव की वाणी (बाबा वाणी) में ही मिलते हैं। ‘बाबर वाणी’ ऐतिहासिक दृष्टि से ऐसा सामाजिक दस्तावेज है, जिसमें बाबर के आक्रमण के कारण भारतीय समाज, विशेषकर स्त्रियों पर हुए जुल्मों का सीधा निषेध है। गुरु नानक बाबा वाणी में भारतवासियों को हिन्दुस्थानी कह कर संबोधित करते हैं। मध्यकालीन के काव्य चिंतन में यह पहला संबोधन है, जिसमें भौगोलिक और कौमियत के संकल्प को राष्टÑ के साथ जोड़ा गया है। इस दृष्टि से गुरु नानकदेव पहले राष्ट्रीय चिंतक हैं जो भारत की अखण्डता के प्रश्न को अतिरिक्त सम्मान के साथ उठाते हैं। ज्ञान और प्रेम की कसौटी नानक वाणी की मूल संवेदना है। इस कसौटी पर वही आदमी खरा उतर सकता है जिसकी कथनी और करनी में कोई फर्क न हो। वे सीधे शब्दों में कहते हैं कि अकाल पुरख उन्हें ही अपनी बख्शीश का आशीर्वाद देगा जो कड़ी आराधना के संघर्ष में खरे साबित होंगे।
गुरु नानकदेव चाहते थे कि जनसाधारण पलायनवादी प्रवृत्ति का शिकार न हो। उनका मानना था कि मुक्ति जंगलों में भटक कर नहीं, घर-परिवार में रहते हुए एवं जीवन के संघर्षों को झेलते हुए प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने त्याग और सेवा को मानव धर्म का सर्वोच्च आदर्श माना। नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील एवं विवेकशील था। वे नारी को उच्च सम्मान देने के हक में थे। नानक वाणी का राजनैतिक चिन्तन भी क्रांतिकारी था। उन्होंने संस्थागत काजी, मुल्ला, सुल्तान, पुजारी की खुलकर आलोचना की थी तथा इन्हें जिन्दगी की उस हकीकत से भी परिचित करवाया, जो इनके कर्तव्य-बोध की प्रथम इकाई थी।
गुरु नानक महान वाणीकार थे। इनकी प्रमुख वाणियों में ‘जपुजी साहिब’, ‘आसा दी वार’, ‘पट्टी’, ‘वारहमाह’, ‘सिध गोसटि’ इत्यादि हैं। साहित्यिक दृष्टि से भी नानक वाणी का पंजाब के साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानकदेव जी की वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। सभी गुरु कवियों ने अपनी वाणी का सृजन करते समय नानकछाप का ही प्रयोग किया है, क्योंकि वे उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने में गौरव का अनुभव करते हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की विचारधारा का केन्द्र ‘नानक वाणी’ की वह धुरी है, जिसकी परिधि में गुरु नानक देव रचित मूलमंत्र का गरिमा संसार है।
गुरु नानकदेव संगीतज्ञ भी थे। वे जब उदासियों (यात्रा) पर निकलते थे, भाई मरदाना उनके साथ रहते थे। वे रबाब बजाया करते थे और गुरु नानकदेव जी इलाही वाणी का गुंजन किया करते थे। गुरु नानक मध्यकालीन भारत के उच्चतम आदि गुरु हैं। भाई गुरुदास कहते हैं, ‘‘गुरु नानकदेव जी के प्रकट होने पर संसार में व्याप्त धुंध विलुप्त हो गई और सृष्टि, ज्ञान की रोशनी से आलोकित हो उठी। कला, संस्कृति, धर्म एवं तात्कालिक समाज को नई दिशा मिली।’’
नानक वाणी ने भटके हुए लोगों को नई राह दिखाई। सम्पूर्ण भारतीय समाज, संस्कृति एवं आध्यात्मिक चिंतन पर गुरु नानकदेव जी का प्रभाव है। गुरु नानक की विचारधारा से एक ऐसी जीवन-दृष्टि का निर्माण हुआ जिससे भारतीय समाज में काफी परिवर्तन हुए। गुरु जी जिन्दगी के व्यावहारिक पक्ष को तरजीह देते थे। वे चाहते थे कि जिन्दगी के हर अंधेरे को सचाई का सूरज अपनी ऊर्जा से आलोकित कर दे। दु:ख और सुख तभी तक आम आदमी को प्रभावित कर सकते हैं, जब तक वह नाम की महिमा से वंचित है। गुरु जी ने कुदरत को वह शक्ति माना जिसकी गरिमा सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है। नानक वाणी के आध्यात्मिक बोध में भी तर्कशीलता है। नानक वाणी का आकाश उन सार्थक सचाइयों में रौशन है जिसमें न भय है, न वैर है, न विरोध है और न ही असत्य है। मध्यकाल के नए जीवन बोध की यही रसधारा है।
वैश्वीकरण के जिस दौर से आज हम गुजर रहे हैं, उसमें नानक वाणी प्रगामी सत्ता दिखा सकती है। उन रास्तों पर नानक वाणी के वे सच्चे दीपक जलाए जा सकते हैं, जिनकी रौशनी में भटके हुए राही सही मंजिल की ओर अग्रसर हो सकते हैं। वाणी से पराजित मानसिकता को ‘सरबत दे भले’ (सबका भला) में परिवर्तित किया जा सकता है। गुरु पर्व की इस शुभ वेला पर यही नानक वाणी का अमर संदेश है।
गुरु नानकदेव जी ने कीरत (कर्म) करने पर बल दिया। उन्होंने केवल किरत का उपदेश ही नहीं दिया बल्कि अपने जीवन अनुभव के आलोक द्वारा इस मार्ग को प्रशस्त भी किया तथा ज्योति-ज्योत समाने से पहले करतारपुर साहिब में 18 वर्ष खेती-बाड़ी कर दुनिया के सामने किरत का सिद्धांत रखा। यह नई विचारधारा थी। आज एशिया के देशों के विकास में श्रम का अभाव है, उसकी पूर्ति गुरु जी के इस सिद्धांत द्वारा हो सकती है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विवि, धर्मशाला के कुलाधिपति हैं)
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