कुमाऊं रेजिमेंट के महान नायक मेजर शैतान सिंह का आज बलिदान दिवस है। 1962 में चीन युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर शैतान सिंह ने 17 हजार फीट ऊंचे चुसूल सेक्टर के रेजांग्ला में भारी बर्फवारी के बीच दुश्मनों का बहादुरी के साथ मुकाबला किया। शैतान सिंह का शरीर गोलियों से छलनी होता रहा। किंतु आखिरी सांस तक उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा और वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र दिया गया था।
एक दिसंबर 1924 को जोधपुर राजस्थान के बाणासर गांव में ले. कर्नल हेम सिंह के घर में पैदा हुए मेजर शैतान सिंह ने एक अगस्त 1949 को कमीशन प्राप्त किया और कुमाऊं रेजीमेंट में नियुक्ति प्राप्त की। 1962 में चीन ने उत्तरी सीमाओं पर तीव्र आक्रमण कर दिया। मेजर शैतान सिंह इन्फैंट्री बटालियन की एक कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे और 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रेजांग्ला में तैनात थे। 18 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने भारी मोर्टार तोपों और छोटे हथियारों से इस कंपनी पर अप्रत्याशित ढंग से गोलाबारी शुरू कर दी। कुमाऊं रेजीमेंट की कंपनी में 120 सैनिक तैनात थे, जबकि दुश्मनों की संख्या काफी अधिक थी। इसके बावजूद भारतीय सेना ने कई दुश्मनों को मार गिराया। जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर निर्भीक होकर दौड़ते रहे और स्वयं गोलाबारी करते हुए साथियों को हौसला देते रहे।
इसी बीच उनके कंधे और पेट में गोलियां लग गई और उनका खून लगातार बहता रहा। वह अंतिम सांस तक लड़ते रहे। शरीर ढीला पड़ जाने पर जवानों ने उन्हें मोर्चे से हटाने का प्रयास किया, किंतु भारी मशीनगनों की गोलाबारी के बीच फंसे मेजर शैतान सिंह ने सैनिकों को वहां से हटाकर उन्हें जान बचाने का आदेश दिया। रेजांग्ला में उस वक्त भारी बर्फवारी हो रही थी। इसी दौरान उन्होंने अपनी सांसे छोड़ दी। विपरीत परिस्थितियों में अप्रतिम बहादुरी का परिचय देने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र दिया गया। इस युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट के 114 जवान शहीद हुए थे। मेजर शैतान सिंह की वीर गाथा को उत्तराखंड के हर फौजी परिवार में सुना जाता है। रानीखेत में कुमाऊं रेजिमेंट मुख्यालय के संग्रहालय में मेजर शैतान सिंह के विषय मे पूरी वीरगाथा विस्तार से दर्ज है।
टिप्पणियाँ