सनातन एकता के प्रतीक हैं तीर्थस्थल
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

सनातन एकता के प्रतीक हैं तीर्थस्थल

by WEB DESK
Nov 18, 2021, 12:13 pm IST
in भारत, दिल्ली
गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर

गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail
हमारे तीर्थस्थल सामाजिक समरसता के केंद्र हैं। इन तीर्थों ने ही भारत को उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक जोड़कर रखा है। हर हिंदू की यही इच्छा रहती है कि वह जीवन में कम से कम एक बार इन तीर्थों के दर्शन करे। इसीलिए कहा जाता है कि भारत की आत्मा तीर्थों में वास करती है

 

  डॉ. सुरेंद्र कुमार जैन

हाल ही में कई तीर्थस्थलों में जाना हुआ। प्रारंभ में अमरनाथ के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। यह अमरनाथ यात्रा के प्रथम पूजन का अवसर था। वहां केवल पूजन में भाग लेने वाले, सुरक्षाकर्मी और व्यवस्था में लगे लोग ही थे। अत: भगवान के चरणों में पर्याप्त समय रुकने का सौभाग्य मिला। वहां बैठे हुए मैं अचानक वहां से 3,500 किलोमीटर दूर रामेश्वरम पहुंच गया और कुछ ही समय के बाद मुझे 2,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगवान सोमनाथ के दर्शन हुए। वहीं 1,500 किलोमीटर दूरी पर स्थित महाकाल तो मुझे सामने ही दिख रहे थे।

मैं विचार कर रहा था कि आखिर वह कौन-सा तत्व है, जो एक दुर्गम स्थान पर बैठे होने पर भी इतने विशाल देश के सभी कोनों में स्थित तीर्थों के साथ जोड़ देता है। यह भाव मेरे मन में ही नहीं, भारत के सभी तीर्थयात्रियों के मन में आता होगा। यह वही एकात्म भाव है जो अनादि काल से एकसूत्र में पिरोता है और भारत को एक जीवंत राष्ट्र के रूप में संजोकर रखता है।

भारत जैसे आध्यात्मिक देश की आत्मा तीर्थों में ही निवास करती है। ये तीर्थ भारत की न केवल पहचान हैं, अपितु भारत को पारिभाषित भी करते हैं। कहा गया है- ‘तरति पापादिकं यस्मात’। यानी जिसके द्वारा मनुष्य पाप आदि से तर जाता है उसे तीर्थ कहते हैं। हर भक्त तीर्थस्थान पर जाते समय अपने द्वारा किए गए हर पाप का प्रायश्चित करता है और अपने इष्टदेव से उन पापों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करता है।

तीर्थ का एक और अर्थ है ‘ती’ का अर्थ है तीन। ‘अर्थ’ का मतलब है प्रयोजन। जहां तीन प्रयोजन सिद्ध हो जाएं वही तीर्थ है। चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) में से अर्थ के उपयोग से ही भक्त तीर्थ जाते हैं, परंतु वहां बाकी तीन पुरुषार्थ प्राप्त हो जाते हैं। वह मान कर चलता है कि अब तीर्थ में आने के बाद उसकी कोई कामना अधूरी नहीं रह सकती। तीर्थों का महत्व अनंत है, तीर्थों के दर्शन के लिए एक हिंदू अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता है।

कई विहंगम तीर्थों जैसे मानसरोवर, अमरनाथ आदि के दर्शन के लिए तो वह कई बार अपने प्राणों के उत्सर्ग के लिए भी तैयार रहता है। तीर्थों के विषय में कुछ लोग कहते हैं कि भगवत प्राप्ति में सहायक होते हैं, तो वहीं कुछ कहते हैं कि वे साक्षात् भगवान् हैं। भारतवर्ष के प्रत्येक प्रदेश, नगर और ग्राम में तीर्थ है। वेदांत के अनुसार तो इस पुण्य भूमि का कण-कण ही तीर्थ है। कुछ स्थानों के तीर्थ बनने के कुछ विशिष्ट कारण होते हैं। भारत अवतारों की धरती है। भगवान विष्णु के ही 11 अवतार हुए, जिन्होंने संपूर्ण भारत के अलग-अलग स्थानों पर अपनी लीलाएं की हैं। अकेले भगवान राम के वनगमन के 196 स्थान अंकित किए जा चुके हैं। सभी की जन्मस्थली व उनकी लीलाओं से संबंधित हजारों स्थल आज तीर्थ के रूप में प्रेरणास्थल बन चुके हैं।

ऋषि-मुनियों की तपोभूमि
भारत संत-महात्माओं और ऋषि-मुनियों का देश है। सृष्टि के निर्माण से लेकर भारत के भौतिक, आध्यात्मिक विकास का हर क्षण किसी न किसी संत की साधना व तपस्या का साक्षी है। चारों धाम (द्वारिका, बदरीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम) आदिशंकराचार्य की तपस्थली ही थे, जिनके दर्शन करके प्रत्येक हिंदू अपने जीवन को धन्य मानता है। सुदूर कश्मीर में महर्षि कश्यप से लेकर केरल में नारायण गुरु, पश्चिम में नरसी मेहता से लेकर पूर्वोत्तर में शंकरदेव आदि इन विभूतियों ने हजारों स्वनामधन्य संत भारत में हुए हैं,

वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत त्रिपिटक, आगम, गुरुग्रंथ साहिब आदि अन्य पवित्र ग्रंथों की रचना कर भारत की आध्यात्मिक धरोहर को संपन्न किया है। विश्व को अनमोल आविष्कार व विभिन्न नई वस्तुएं देने वाले वैज्ञानिक भी संत ही रहे हैं। भारत पर आने वाले संकटों से जूझने की क्षमता को निर्माण करने का कार्य भी संत ही करते रहे हैं। इन संतों की जन्मस्थली व तपोस्थली तीर्थ के रूप में आज भी उनके संदेश को भक्तों तक अविरल प्रेषित करती रहती हैं।

पवित्र नदियों व पर्वतों का सान्निध्य
हिंदू संस्कृति मूलत: प्रकृति पूजक है। सृष्टि के हर अंग में एकात्म भाव का दर्शन भरतीय संस्कृति की विशेषता है। पर्वत और नदियां तो जीवनदायी हैं। इसलिए हर प्रमुख पर्वत को देवता व नदी को देवी मानकर उनकी आराधना करना, उनकी पवित्रता को बनाए रखना हमारी संस्कृति का अनन्य भाग है। हर पर्वत पर किसी न किसी देवता का निवास या संतों की तपोस्थली का होना उन पर्वतों के कण-कण को तीर्थ बना देता है। उत्तर में हिमालय से लेकर पश्चिम में अरावली, विंध्याचल रैवतक होते हुए पूर्व में महेंद्र पर्वत और दक्षिण के मलय एवं सहयाद्रि पर्वत तीर्थ के रूप में पूज्य हैं, तो गंगा, यमुना, सरस्वती, गंडकी, ब्रह्मपुत्र ,गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि अनेक नदियों के उद्गम स्थल से लेकर उनके प्रवाह एवं संगम स्थलों पर अनेक  तीर्थों का विकास हुआ है।

शिवलिंग आदि विग्रहों का प्रकटीकरण
आदिपुरुष आशुतोष भगवान शंकर प्राणियों के कल्याण के लिए स्थान-स्थान पर वास करते हैं। जिस-जिस पुण्य क्षेत्र में भक्त जनों ने उनकी अर्चना की, उसी क्षेत्र में वे आविर्भूत हुए तथा ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गए। द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से अभिहित इन तीर्थों के अपने जीवन काल में दर्शन करना प्रत्येक हिंदू के लिए महत्वपूर्ण है। इनके अतिरिक्त शक्ति स्वरूपा मां व कई अन्य देवी-देवताओं के विग्रह भारत के कई स्थानों पर स्वयंभू प्रकट हुए हैं।

सती के अंगों के पात स्थल
52 शक्तिपीठ उन सब स्थानों पर बने हैं जहां मां भगवती सती के शव के विभिन्न अंगों का पात हुआ था। इन 52 शक्तिपीठों के अलावा कुछ अन्य स्थान भी हैं जिनकी मान्यता शक्तिपीठों जैसी ही है। इन सब तीर्थों के अतिरिक्त भारत में उद्भुत कई आध्यात्मिक परंपराओं के महापुरुषों से संबंधित स्थल भी तीर्थ बन गए हैं जिनका सम्मान भारत की सभी परंपराओं के अनुयायी करते हैं।

किसी भी तीर्थ पर किसी की जाति-वर्ण पूछ कर प्रवेश नहीं होता। सभी कंधे से कंधा मिलाकर अपने इष्ट देव का उच्चारण करते हुए यात्रा करते हैं और अपने जीवन को धन्य मानते हैं। सब सामूहिक रूप से बिना किसी भेदभाव के स्नान, ध्यान और पूजन करते हैं। समरसता का यही भाव हिंदू संस्कृति की मूल विशेषता है। चराचर जगत में ईश्वरत्व के दर्शन करने वाला हिंदू कभी ऊंच-नीच के भाव से प्रेरित नहीं हो सकता।

जैन मत में 24 तीर्थंकर हुए हैं। इन सबके जन्मस्थल, तपस्थल व निर्वाण स्थल भारत के प्रमुख तीर्थों के रूप में सम्मान पाते हैं। बौद्ध मत के प्रवर्तक भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा से संबंधित कई स्थल संपूर्ण विश्व के लिए तीर्थ बन गए हैं। सिख मत के 10 गुरुओं की जीवन यात्रा से जुड़े तीर्थ आज संपूर्ण भारत के प्रेरक स्थल हैं। ये केवल कुछ उदाहरण हैं। देश सभी परंपराओं से संबंधित तीर्थों की सूची बन ही नहीं सकती। इसीलिए कहा जाता है कि भारत तो कण-कण ही तीर्थ है।

इन लाखों तीर्थों और इनसे जुड़ी यात्राओं पर करोड़ों भक्त संपूर्ण विश्व से आते हैं। अगर इन तीर्थस्थानों की दुर्गमता या अन्य बाधाओं के कारण उनको कोई कष्ट भी होता है तो वह इन कष्टों को प्रभु कृपा समझकर उनका भी आनंद लेते हैं। कुछ भक्त तो इन कष्टों को अपने कर्मों का क्षय मान कर ईश्वरत्व का अनुभव करते हैं। इन तीर्थों पर जाकर ईश्वर की महत्ता और अपनी लघुता का अनुभव होता हैं। इस आध्यात्मिक आनंद का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।

इस आध्यात्मिक अनुभव के अतिरिक्त राष्ट्र निर्माण की दिशा में इन तीर्थों का योगदान अतुलनीय है। इन सभी तीर्थों में एक मूल तत्व विराजमान है। सभी तीर्थस्थलों का विचार करते ही हमारे सामने सांस्कृतिक भारत का चित्र आ जाता है। ये तीर्थ ही भारत की सांस्कृतिक एकता के प्रतीक हैं तो राष्ट्रीय एकात्मता का मंत्र भी इन तीर्थों के पीछे दिखाई देता है। विश्व का सबसे प्राचीन राष्ट्र होने के कारण भारत ने अनेक झंझावातों को झेला है। इन सब के बावजूद आज भी भारत एक है तो उसके पीछे राजनीतिक सत्ता नहीं, ये तीर्थ ही प्रमुख कारण हैं। इन तीर्थों का निर्माण करने वाले महापुरुषों, ऋषियों की महान दृष्टि और हमारी सनातन परंपरा ही भारत को एक रखती है। ये तीर्थ ही हमें राष्ट्र बनाते हैं और राष्ट्रीय एकता को अक्षुण्ण रखते हैं। अपने राष्ट्र की विराटता और एकता के अद्भुत संगम का दर्शन इन्हीं तीर्थों के दर्शन से होता है।

रामेश्वरम का प्रसिद्ध मंदिर

हमारे तीर्थ सांप्रदायिक सद्भाव के अनुपम उदाहरण हैं। अधिकांश तीर्थ हमारी सांझी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है, तो जैन मत के 5 तीर्थंकरों की जन्मस्थली भी है और भगवान बुद्ध की तपोस्थली भी है। मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मस्थली है, तो जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ ने भी यहीं जन्म लिया।

 

रामेश्वरम शैव और वैष्णव दोनों के लिए समान रूप से पूज्य है, तो काशी और प्रयाग में कई संप्रदायों के श्रद्धा स्थल हैं। हमारी सभी पर्वत श्रृंखलाएं भारत के कई संतों, महापुरुषों की तपोस्थली रही हैं। इसलिए किसी पंथ के अनुयायी अगर अपने पंथ से जुड़े किसी तीर्थ पर जाते हैं तो वहां अन्य पंथों से जुड़ी स्मृतियों के भी दर्शन कर अपने को धन्य समझते हैं। इसीलिए भारत में सैकड़ों आध्यात्मिक परंपराएं होने के बावजूद परस्पर सद्भाव रहता है और ये सभी अपने को एक-दूसरे का सहगामी मानते हैं। क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के कारण कभी-कभी अलगाव का भाव निर्माण करने का प्रयास होता है परंतु अंततोगत्वा अंतर्निहित सद्भाव ही विद्यमान रहता है।

 

इस खबर को भी पढ़ें:-

 हमारे तीर्थ सामाजिक समरसता के अप्रतिम प्रतिबिंब हैं। इन तीर्थों, उनसे जुड़ी यात्राओं और आयोजनों में करोड़ों हिंदू भाग लेते हैं। कुंभ के आयोजन में तो लगभग 10 करोड़ आस्थावान आते ही हैं। केवल कुंभ, कावड़, पंढरपुर, सबरीमला, अमरनाथ, वैष्णो देवी, तिरुपति, शिर्डी आदि में सहभागियों की संख्या 20 करोड़ के लगभग हो जाती है। किसी भी तीर्थ पर किसी की जाति-वर्ण पूछ कर प्रवेश नहीं होता। सभी कंधे से कंधा मिलाकर अपने इष्ट देव का उच्चारण करते हुए यात्रा करते हैं और जीवन को धन्य मानते हैं।

सब सामूहिक रूप से बिना किसी भेदभाव के स्नान, ध्यान और पूजन करते हैं। समरसता का यही भाव हिंदू संस्कृति की मूल विशेषता है। चराचर जगत में ईश्वरत्व के दर्शन करने वाला हिंदू कभी ऊंच-नीच के भाव से प्रेरित नहीं हो सकता। दुर्भाग्यवश कुछ समय से अस्पृश्यता के विजातीय द्रव्य ने हमारे समाज जीवन को प्रभावित किया है। अब यह धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। इन तीर्थस्थलों पर सबकी पहचान केवल एक भक्त के रूप में ही  रहती है। इन्हीं सब कारणों से ही कहा जाता है कि भारत की आत्मातीर्थों में ही निवास करती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारत की चिति के रूप में जिस तत्व की चर्चा की थी, हमारे तीर्थ उस तत्व को मजबूत बनाते हैं। तीर्थों के इस महत्व को समझे बिना भारत को नहीं समझा जा सकता।

           (लेखक विश्व हिंदू परिषद् के संयुक्त महामंत्री हैं)

 

इस खबर को भी पढ़ें:-

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

आरोपी

उत्तराखंड: 125 क्विंटल विस्फोटक बरामद, हिमाचल ले जाया जा रहा था, जांच शुरू

रामनगर रेलवे की जमीन पर बनी अवैध मजार ध्वस्त, चला धामी सरकार का बुलडोजर

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

स्वामी दीपांकर

1 करोड़ हिंदू एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने की “भिक्षा”

दिल्ली-एनसीआर में 3.7 तीव्रता का भूकंप, झज्जर था केंद्र

उत्तराखंड : डीजीपी सेठ ने गंगा पूजन कर की निर्विघ्न कांवड़ यात्रा की कामना, ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के लिए दिए निर्देश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

आरोपी

उत्तराखंड: 125 क्विंटल विस्फोटक बरामद, हिमाचल ले जाया जा रहा था, जांच शुरू

रामनगर रेलवे की जमीन पर बनी अवैध मजार ध्वस्त, चला धामी सरकार का बुलडोजर

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

स्वामी दीपांकर

1 करोड़ हिंदू एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने की “भिक्षा”

दिल्ली-एनसीआर में 3.7 तीव्रता का भूकंप, झज्जर था केंद्र

उत्तराखंड : डीजीपी सेठ ने गंगा पूजन कर की निर्विघ्न कांवड़ यात्रा की कामना, ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के लिए दिए निर्देश

काशी में सावन माह की भव्य शुरुआत : मंगला आरती के हुए बाबा विश्वनाथ के दर्शन, पुष्प वर्षा से हुआ श्रद्धालुओं का स्वागत

वाराणसी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पर FIR, सड़क जाम के आरोप में 10 नामजद और 50 अज्ञात पर मुकदमा दर्ज

Udaipur Files की रोक पर बोला कन्हैयालाल का बेटा- ‘3 साल से नहीं मिला न्याय, 3 दिन में फिल्म पर लग गई रोक’

कन्वर्जन की जड़ें गहरी, साजिश बड़ी : ये है छांगुर जलालुद्दीन का काला सच, पाञ्चजन्य ने 2022 में ही कर दिया था खुलासा

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies