अरविन्द
इन दिनों पाकिस्तान की फौज और आजादी के लिए संघर्ष कर रहे बलूच लड़ाकों के बीच आए दिन छोटी-मोटी झड़पें हो रही हैं। बेशक दो माह पहले खैबर पख्तूनख्वा में चीनियों पर हुए जोरदार हमले के बाद कोई बड़ी वारदात नहीं हुई है लेकिन एक बात शीशे की तरह साफ है कि बलूचिस्तान ही नहीं, पाकिस्तान के दूसरे इलाकों में भी चीनी महफूज नहीं है।
खास तौर पर सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के लिए तो यही कहा जा सकता है कि लंबे घुमावदार समुद्री रास्ते और मलक्का जलडमरूमध्य पर निर्भरता कम करने की कोशिशों के तहत बनाया गया यह रूट बारूद के ढेर पर है और कभी भी कोई बड़ी वारदात हो सकती है।
बलूचिस्तान की आजादी के लिए छापामार संघर्ष कर रहे लोकप्रिय नेता डॉ. अल्लाह नजर बलोच कहते हैं, ‘‘सीपीईसी सिर्फ और सिर्फ चीन और पंजाब की भलाई के लिए बनाया जा रहा है। अब तक जितने प्रोजेक्ट बने और बन रहे हैं, वे सारे पंजाब में ही बने हैं।
सीपीईसी के किनारे हमारे लोगों को बसने तो नहीं ही दिया जा रहा है, उलटे मकामी (स्थानीय) लोगों को वहां से भाग जाने को मजबूर किया जा रहा है। उनका कत्ल हो रहा है, उन्हें गायब किया जा रहा है। हालात यह है कि सीपीईसी से सटे इलाकों में रहने वाले लोगों की बड़ी तादाद दूसरे इलाकों में जाकर बसने को मजबूर है। यहां की डेमोग्राफी बदली जा रही है। बलूच अपनी कौमी शिनाख्त से महरूम हो रहे हैं और दुनिया का इस तरफ ख्याल नहीं है।’’
हाल ही में चीन ने कराची को सीपीईसी योजना के अंतर्गत विकसित करने का फैसला किया है। इसका दूसरा पहलू यह है कि ग्वादर की सुरक्षा में बलूच लगातार सेंध लगाने में कामयाब होते रहे हैं। दो साल पहले वहां के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल से लेकर दो माह पूर्व एक चीनी बस पर हुए हमले तक, बलूच खौफ का माहौल बनाने में कामयाब रहे हैं और इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान-चीन ने अपनी योजना में ग्वादर को थोड़ा पीछे कर दिया है। लेकिन पाकिस्तान किसी भी तरह सीपीईसी के बाकी हिस्से की सुरक्षा को पुख्ता करना चाहता है।
इसी वजह से उसने सीपीईसी पर तैनात फौजियों की संख्या में खासा इजाफा किया है। बलूच नेशनल मूवमेंट के नेता हुनक बलोच कहते हैं, ‘‘पाकिस्तान ने ग्वादर की हिफाजत के लिए अपने बेहतरीन फौजियों को लगा रखा है। इसके बावजूद कौमी आजादी के लिए सिर पर कफन बांधकर जद्दोजहद करने वाले बलूच यह बताने में कामयाब रहे हैं कि वहां रहने वाले चीनी महफूज नहीं हैं। सीपीईसी में कराची को शामिल करना बताता है कि चीन और पाकिस्तान ग्वादर में जो कुछ भी करना चाह रहे थे, वैसा नहीं हो पा रहा। इसीलिए पाकिस्तान पूरी ताकत लगाकर सीपीईसी के बाकी रास्ते को महफूज करना चाहता है।’’
डॉ. अल्लाह नजर बलोच का मानना है कि जिस तरह से पाकिस्तानी फौज बलूचों का हौसला तोड़ने के लिए औरतों और मासूमों को निशाना बना रही है, उससे बलूचों में आजादी हासिल करने का जज्बा और मजबूत हुआ है। यह दिखता भी है। हाल ही में तुरबत के होशाब इलाके में पाकिस्तान फौज के मोर्टार हमले में 5 साल के अल्लाहबख्श और उसकी 7 साल की बहन शरतून की मौत हो गई तो इसके खिलाफ जगह-जगह लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी।
तुरबत इलाके में ही एक साल पहले 4 साल की ब्रम्श को पाकिस्तान फौज की रहनुमाई में काम करने वाले डेथ स्क्वायड ने गोली मारकर घायल कर दिया था। तब भी लोगों में काफी उबाल था और ब्रम्श एक तरह से बलूचिस्तान को पाकिस्तान के अवैध कब्जे से छुड़ाने की लड़ाई की प्रतीक बन गई थी। डॉ. अल्लाह कहते हैं, ‘‘इन्सानी हुकूक की पैरोकारी करने वाले अमेरिका को यह सोचना चाहिए कि अगर जॉर्ज वाशिंगटन ने जद्दोजहद नहीं की होती तो वह आज कहां होता? हम भी अपनी कौमी आजादी की जंग लड़ रहे हैं और बलूचों को इस बात का पूरा हक है कि वे अपनी जमीं से पाकिस्तान के गैर-वाजिब कब्जे को हटाने की लड़ाई लड़ें।’’
सीपीईसी पर सुरक्षा बढ़ाने के मामले में हुनक कहते हैं, ‘‘वैसे तो पूरा बलूचिस्तान ही सुलग रहा है। लेकिन खास तौर पर सीपीईसी का पूरा रास्ता तो जैसे बारूद के ढेर पर है। मकामी लोगों में कई बातों को लेकर गुस्सा है। इनमें एक वजह यह भी है कि बलूचिस्तान की कुदरती वसाइल को लूटा जा रहा है और इस पर पूरा पाकिस्तान गुजर कर रहा है लेकिन उन्हें ही इसका फायदा नहीं मिल रहा, जहां से इन्हें निकाला जा रहा है। वे हथियार से लड़ रहे हैं और बलूच जुनून से। जाहिर है, सीपीईसी पर कोई बड़ी वारदात का होना बस वक्त की बात है।’’
बलूचिस्तान के पास जो कुदरती वसाइल हैं, ऐसा लगता है कि वही इसके दुश्मन साबित हुए हैं। अंग्रेजों के इस इलाके में आने के पहले से ही यह इलाका बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता था। सन् 1908 के गजट में अंग्रेजों ने इस बात का जिक्र किया है कि बलूचिस्तान में 1887 से 1903 के बीच कुल मिलाकर 2,46,426 टन कोयले का उत्पादन हुआ और तकरीबन यह पूरा कोयला नॉर्थ-वेस्टर्न रेलवे के काम आया।
अंग्रेजों ने खनिजों की ढुलाई के लिए यहां भी जमकर रेलवे का इस्तेमाल किया था। पेट्रोलियम के मामले में भी बलूचिस्तान धनी रहा है और अंग्रेजों ने 1886 में 27,700 गैलन पेट्रोलियम निकाला था जो 1891 तक बढ़कर 40,465 गैलन हो गया था। 1886 से 1892 के बीच 7,77,225 गैलन पेट्रोलियम निकाला गया। इसके अलावा भी चूना पत्थर, तांबा, लोहा जैसे तमाम खनिजों का बलूचिस्तान में विशाल भंडार है।
वक्त बदल गया लेकिन नहीं बदला तो पाकिस्तान का इनसानों को लेकर नजरिया। एक वक्त था जब उसे पूर्वी पाकिस्तान की जमीन चाहिए थी, वहां के लोग नहीं और इसका नतीजा यह हुआ कि स्थानीय लोगों ने विद्रोह कर दिया और कालांतर में उसी जमीन पर नए देश बांग्लादेश ने जन्म ले लिया। आज बलूचिस्तान में उसे बलूचों की जमीन चाहिए, उनके प्राकृतिक संसाधन चाहिए जिससे वह पूरे देश को सुविधा दे सके, लेकिन उसे बलूच नहीं चाहिए। यही कारण है कि वह पूरे इलाके की जनसांख्यिकी को बदलना चाहता है।
बलूचों को डरा-धमकाकर, उनके साथ जोर-जबर्दस्ती करके, उनके खिलाफ तरह-तरह के जुल्म करके उन्हें बलूचिस्तान से हटाना चाह रहा है। डॉ. अल्लाह नजर बलोच के अनुसार, ‘‘वे बलूचों की नस्लकुशी कर रहे हैं। बलूचों की रवायतों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी जिंदा कौम की ही तरह बलूच कभी भी अपनी औरतों, अपने बच्चों के साथ हो रहे जुल्म को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
बलूचों ने अब तक अपनी लड़ाई खुद लड़ी है। आगे भी लड़ेंगे। लेकिन दुनिया को जितनी जल्दी यह बात समझ में आ जाए उतना बेहतर कि बलूचों की जद्दोजहद दरअसल इन्सानियत की लड़ाई है, इन्साफ की लड़ाई है। क्या आपने पाकिस्तान के दहशतगर्द रुख को नहीं देखा? क्या नहीं देखा कि पाकिस्तान ऐसा मुल्क है जो दहशतगर्दी को सियासी औजार की तरह इस्तेमाल करता है?’
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