नए सिरे से ताकत जुटा रही है मायावती की पार्टी। मायावती ने 21 साल में 19 प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए।
उत्तराखंड में कभी मायावती की बहुजन समाज पार्टी की ताकत इतनी बढ़ गयी थी कि वह तीसरी शक्ति और किंग मेकर की भूमिका में आगे बढ़ने लगी
थी। कभी उत्तराखंड में 12.29 प्रतिशत वोट लेकर अपने आठ-आठ विधायक जिताकर लाने वाली बसपा के पास एक भी विधायक नहीं है। बसपा की सुप्रीमो
मायावती ने एक समय में यूपी के साथ-साथ उत्तराखंड में भी अपनी ताकत बढ़ानी शुरू की थी। 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 7 सीटें
मिली थीं। राज्य में पड़ने वाले वोटों में उन्हें 10.93 प्रतिशत वोट मिले। जब नारायण दत्त तिवारी की सरकार को पूर्ण बहुमत मिला, बसपा ने विपक्ष में
रह कर अपनी ताकत को बढ़ाना जारी रखा।
2007 में बसपा को 11.76 वोटों के साथ आठ सीटें मिलीं। सरकार बीजेपी की बनी, लेकिन 2012 में बसपा को वोट मिले 12.29 प्रतिशत और सीटें आयीं
कुल तीन। इन चुनावों में कांग्रेस को मिलीं 32 सीटें और बसपा को सत्ता में भागीदारी का मौका मिल गया। पार्टी के एक विधायक मंत्री बने, लेकिन उनकी
मृत्यु के उपरांत कांग्रेस ने दांव खेला और उपचुनाव में विजय हासिल कर के बसपा के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्ध तोड़ लिए। 2017 के चुनाव में मोदी
लहर में बसपा का वोट प्रतिशत एकदम गिरा और 6.90 प्रतिशत पर जा पहुंचा, एक भी सीट बसपा को नहीं मिली। हरिद्वार और उधमसिंह नगर की 22
सीटों पर बसपा का जनाधार रहा। पहाड़ की सीटों पर भी बसपा ने कांग्रेस बीजेपी की हार-जीत के समीकरण प्रभावित किये हैं।
उत्तराखंड में 2022 में विधान सभा चुनाव आ रहे हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने राज्य प्राभारी शमशुद्दीन को यहां भेज कर सबसे पहले प्रदेश
अध्यक्ष बदल दिया। नरेश गौतम की जगह चौधरी शिशुपाल को नया अध्यक्ष बनाया गया है। उत्तराखंड में कांग्रेस बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच
बसपा अपना वजूद कायम रखने के लिए पूरी ताकत से चुनाव लड़ना चाहती है। यह बात मायावती को भी मालूम है कि उत्तराखंड में सत्ता नहीं भी मिली
लेकिन सत्ता में भागीदारी जरूर मिल सकती है। हरिद्वार जिले में 25.80 और उधमसिंह नगर जिले में 21.83 तक बसपा का वोट बैंक रहा है। बसपा इसी
को अगले चुनाव में टटोलना चाहती है। इसके लिए बसपा कैडर के पूर्णकालिक कार्यकर्ता अपने वोट बैंक में जाकर बैठकें करने लगे हैं। उत्तराखंड में चार
विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें बहुत से सीटें दोनों दलों के उम्मीदवारों ने एक हजार से भी कम बढ़त से हासिल की थीं। यदि उनकी विधानसभा को मिले
मतों का आंकलन करें तो बसपा को मिले वोटों ने कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के उम्मीदवारों की हार-जीत का खेल बिगाड़ा था। बसपा इस बार भी 70 की
70 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने जा रही है। यानी इस बार भी वो कई नेताओं के लिए सिरदर्द बनने जा रही है। राजनीतिक समीक्षक मानते
हैं कि बसपा का वोट बैंक हमेशा उत्तराखंड की राजनीति को प्रभावित करता आया है और अगले चुनाव में भी बसपा की अनदेखी नहीं की जा सकती।
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