यूपी के पश्चिमी क्षेत्र में डॉ असदुद्दीन ओवैसी की जनसभाओं से सियासी दल परेशान होने लगे हैं। ओवैसी की जनसभाओं में भीड़ स्वतः उमड़ रही है। अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस का मीडिया तंत्र उन्हें बीजेपी की बी टीम प्रचारित करने पर आमादा है। जबकि ओवैसी अपने सामने सभी दलों को मुस्लिम वोट बैंक का इस्तेमाल करने के उदाहरण पेश कर जवाब दे रहे हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष डॉ असदुद्दीन ओवैसी ने पिछले कुछ सालों में अपने आप को मुस्लिमों का हितैषी बताने के लिए जो राजनीतिक अभियान छेड़ा है, उससे यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में असर देखा जाएगा। कांग्रेस, सपा और बसपा सबसे ज्यादा ओवैसी की जनसभाओं की लोकप्रियता से परेशान हैं। ओवैसी कहते हैं कि इन दलों ने यूपी में मुस्लिम नेता ही तैयार नहीं किये जो मुसलमानों के हितों को बात की लड़ाई लड़ें।
बीजेपी को हिंदुओ की पार्टी बताने वाले ओवैसी अपने बयानों से खासे चर्चित रहे हैं। अलीगढ़ में ओवैसी कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा अमेठी में उन्हें हिन्दू हरवा देते हैं और केरल में उनकी सीट पर 35 फीसदी मुस्लिम थे, जिन्होंने उन्हें जिता दिया। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को अपनी एकजुटता दिखाकर अपनी वोटों की अहमियत समझनी चाहिए।
ओवैसी को इस बात का भी फायदा मिल रहा है कि सपा के मुस्लिम नेता आजम खां जेल में हैं, कांग्रेस और बसपा ने अपनी पार्टी में मुस्लिम नेताओं को उभारा ही नहीं। कांग्रेस के मुस्लिम नेता दिल्ली में बैठे हैं। वे ड्राईंग रूम पॉलटिक्स करते रहे हैं, उनका यूपी में कोई जनाधार भी नहीं रहा। ये दल अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए ओवैसी की पार्टी को बीजेपी की "बी"टीम बताने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका परिणाम उल्टा हो रहा है क्योंकि ओवैसी की जनसभाएं मुस्लिमों की भारी संख्या में खींच रही हैं।
मुजफ्फरनगर, सहरानपुर, बिजनौर आदि जिलों में ओवैसी की जनसभाओं ने राजनीतिक समीक्षकों को भी हैरान किया है। उनकी सभाओं में भीड़ अपने आप पहुंच रही है। ये एक तरह का ओवैसी की पार्टी का यूपी की राजनीति में उभार कहा जा सकता है, जोकि मुस्लिम वोट बैंक के भरोसे राजनीति करने वाली सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन सकता है।
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