भारत के सीमांत धारचूला क्षेत्र में झूला पुल पार कर नेपाल का दार्चुला क्षेत्र है, जहां चीन की कंपनी चमेलिया हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर पिछले 11 सालों से काम कर रही है, जबकि ये प्रोजेक्ट 2014 में पूरा हो जाना चाहिए था। काम की सुस्त रफ्तार और बढ़ती लागत की वजह से नेपाल में चीनी कम्पनी का विरोध हो रहा है।
भारत के नेपाल मामलों के विशेषज्ञ इस परियोजना को चीन के जासूसी केंद्र के रूप में देखते रहे हैं। जानकारी के मुताबिक इस प्रोजेक्ट के चीनी कंपनी के अधिकारी आवागमन के लिये भारतीय सीमा क्षेत्र का उपयोग भी करते रहे हैं। नेपाल से मिली जानकारी के अनुसार दार्चुला जनपद में रन ऑफ द रिवर परियोजना के तहत चीन की कंपनी चाइना गेझोआ ग्रुप को चमेलिया जल विद्युत परियोजना पर काम करने का ठेका 2007 में मिला था और इसका पहला चरण 2010 में पूरा होना था। 30 मेघावाट की इस योजना पर काम शुरू होते ही भारत ने इस पर नेपाल को आगाह किया था। प्रोजेक्ट 2014 में पूरा होना था और इस पर 6 मिलियन नेपाली रुपए लागत आनी थी। किंतु ये परियोजना 2021 तक भी पूरी नही हुई और इस पर 16 मिलियन नेपाली रुपए लगने के बाद भी काम 2017 से अधूरा पड़ा है।
जहां काम करती है वहां की सरकार को फंसा देती है यह कंपनी
जानकारी के अनुसार चाइना गेझोआ ग्रुप ने यहां एक सुरंग बनाये जाने के बदले 500 मिलियन नेपाली रुपए की मांग की है। साथ ही जब परियोजना शुरू हुई थी और अब पूरा होने की स्थिति में डॉलर और नेपाली रुपए में 1.9 बिलियन नेपाली रुपए का फर्क आने की भरपाई का पैसा दिए जाने पर ही काम खत्म करने की बात कही जा रही है। जो नेपाल शासन को स्वीकार नही है। विरोध की वजह ये भी है कि लागत बढ़ने से इससे पैदा होने वाली बिजली इतनी महंगी हो जाएगी कि प्रोजेक्ट की लागत सरकार को निकालनी मुश्किल हो जाएगी। सिंगापुर पोस्ट में छपे एक लेख के मुताबिक चीन की इस कंपनी का पूर्व इतिहास यही रहा है कि वो जहां काम करती है वहां सरकार को फंसा देती है। अब यह कंपनी सुरंग बनाने के नाम पर नेपाल सरकार को तंग कर रही है।
यहां से भारत की गतिविधियों पर नजर रखना चाहता है चीन
जानकारी के मुताबिक चाइना गेझोआ ग्रुप ने नेपाल सरकार से परियोजना स्थल तक सड़कें भारत के लिए इस प्रोजेक्ट पर चीनी कंपनी का काम करना हमेशा से ही सिरदर्द बन रहा है। दार्चुला से नेपाल के मैदानी क्षेत्रों तक आने जाने के लिए रास्ता सुगम नहीं होने की वज़ह से इस प्रोजेक्ट के चीनी अधिकारियों ने कई बार भारत के रास्तों का उपयोग किया। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक भारत इन्हें आने जाने से तब तक नहीं रोक सकता जब तक इनके पास कोई दस्तावेज कम न हो। धारचूला भारत का वो संवेदनशील कस्बा है जो कि सीमांत इलाके में है। यहीं से नेपाल और चीन सीमाओं के लिए भारत की सेना की रसद जाता है। कुछ साल पहले तक धारचूला, सुरक्षा की दृष्टि से इनरलाइन में था यहां भारत के नागरिकों को भी जाने से पहले अस्थायी परमिट लेना होता था। चीन की भारत तक पहुंच हिमालय की वजह से आसान नही है, लेकिन वो नेपाल के रास्ते भारत तक आने के कोई रास्ते नहीं छोड़ता है। नेपाल में ओली सरकार के दौरान भारतीय सीमा पर नेपाल की आड़ में चीन की गतिविधियां किसी से छिपी नही रही। नेपाल मामलो में भारतीय विशेषज्ञ कृष्णा गर्बियाल कहते हैं कि चमेलिया हाइड्रो प्रोजेक्ट यदि भारत कर रहा होता तो कब का काम पूरा हो गया होता। दरअसल चीन यहां रुक कर सिविल कंपनी के जरिये भारत की गतिविधियों पर नजर रखना चाहता है। नेपाल भी इस कंपनी की लागत बढ़ाये जाने के खेल में फंस चुका है। चीन इस प्रोजेक्ट में अपनी आर्थिक मदद के शर्तो पर लंबे समय के लिए यहां टिके रहना चाहेगा।
पंचेश्वर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर भी है चीन की नजर
जानकारी के मुताबिक चीन की नजर भारत और नेपाल के बीच बन रहे एशिया के सबसे बड़े पंचेश्वर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर भी है। भारत और नेपाल के चीन समर्थक वामपंथी दल इस परियोजना का विरोध करते हैं, उन्हें फंडिंग कौन करता है? इस पर दोनों देशों के खुफिया अधिकारियों को जानकारियां मिलने लगी हैं। नेपाल में ओली सरकार के जाने के बाद देउपा सरकार ने आते ही भारत-नेपाल सीमा पर चल रही चीन की कंपनियों की गतिविधियों की समीक्षा की है। समाचार पत्रिका आउटलेट के अनुसार देउपा सरकार ने चमेलिया जल विद्युत परियोजना की समीक्षा कर इसको बनाने वाली चाइना गेझौआ कंपनी के अधिकारियों को काम समेटने को कह दिया है। जानकारी के अनुसार नेपाल सरकार और कंपनी के बीच तनातनी का दौर चल रहा है। जिसे सुलझाने के लिए चीन दूतावास के अधिकारियों को भी मशक्कत करनी पड़ रही है। बहरहाल इस प्रोजेक्ट को लेकर नेपाल शासन से खासा विरोध चाइना गेझोआ ग्रुप को झेलना पड़ रहा है।
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