उत्तराखंड कांग्रेस में विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदारों के बीच घमासान युद्ध शुरू हो गया है। किच्छा में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के खिलाफ टिकट के दावेदार धरने पर बैठ गए तो दूसरी ओर बीजेपी से कांग्रेस में आये विधायकों के खिलाफ भी कांग्रेस में विरोध के स्वर सुने जा रहे हैं।
पहले कांग्रेस से छोड़ कर बीजेपी में आये और अब पुनः बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में जाने वाले मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक पुत्र संजीव आर्य के खिलाफ कांग्रेस में आवाजे उठ रही हैं। बाजपुर से बीजेपी विधायक रहे यशपाल आर्य का अब फिर से कांग्रेस से टिकट दिए जाने की संभावना को देखते हुए स्थानीय कांग्रेसी नेताओं ने विरोध करना शुरू कर दिया है। ठीक इसी तरह उनके पुत्र और नैनीताल से विधायक संजीव आर्या के खिलाफ भी नैनीताल में माहौल गरम है। यहां कांग्रेस की महिला प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य टिकट की दावेदार थीं। उनका कहना है कि जो कांग्रेस में आये उनका स्वागत है, किंतु जो टिकट के दावेदार हैं उनकी सेवाओं को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
हरीश रावत ने केदारनाथ बाबा से मांगा आशीर्वाद, नेता प्रतिपक्ष हुए नाराज
किच्छा में दावेदारों की लंबी सूची है, वहां रुद्रपुर सीट छोड़कर कांग्रेस की दावेदारी कर रहे प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष तिलक राज बेहड़ के खिलाफ उन्ही की पार्टी के अन्य दावेदार धरने पर बैठ गए। रामनगर में हरीश रावत के विरोधी रंजीत रावत प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उनकी खिलाफत संजय नेगी कर रहे हैं। संजय नेगी हरीश रावत के करीबी माने जाते हैं। हरीश रावत ने पहले कहा था कि वो मुख्यमंत्री के पद का चेहरा नही हैं और किसी दलित को यहां का मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। इसके बाद वो खुद केदारनाथ जाकर बाबा से मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद ले आये, जिसपर नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह नाराज हो गए। जो कि मुख्यमंत्री की दौड़ में पहले से शामिल हैं। वे कहते हैं कि हरीश रावत खुद ये तय नहीं कर सकते कि वो मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी हैं। इसे कांग्रेस हाई कमान तय करेगा।
गुटबाज़ी कांग्रेस को अंदर ही अंदर कर रही कमजोर
हरीश रावत के दलित प्रेम ने पहले राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा और यशपाल आर्य को सब्जबाग दिखाए और वो सपने हफ्ते भर में ही टूटते दिखाई दिए। हरीश रावत पिछले विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर हार गए। इसके बावजूद पार्टी हाई कमान ने उन्हें चुनाव की बागडोर जिस दिन से सौंपी है, उसी दिन से कांग्रेस में असंतोष उभरने लगा था। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाधयाय भी उनके खिलाफ थे और प्रीतम सिंह भी। ये दोनों मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में जाने जाते थे। इनके गृह जिलों में हरीश रावत कोई बड़ा कार्यक्रम अभी तक नहीं कर पाए हैं। वजह साफ है कांग्रेस में अंदरूनी असंतोष, जिसे लेकर राजनीतिक अटकलों का बाजार हमेशा से गर्म रहता आया है। पिछला विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस अंदरूनी गुटबाजी की वजह से ही हारी थी। इस बार भी वही गुटबाज़ी कांग्रेस को अंदर ही अंदर कमजोर करने में लगी है।
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