उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों की सड़कों को तीस मीटर तक चौड़ा करने के विरोध में दायर याचिका में केंद्र ने कोर्ट में कहा जब सड़कों से मिसाइल लांचर ही सीमा तक नही पहुंचेंगे तो देश युद्ध कैसे लड़ेगा? सड़क चौड़ीकरण से हो रहे पर्यावरण को नुकसान को देखते हुए कोर्ट ने 15 के बजाय का साढ़े पांच मीटर सड़क बनाये जाने की अनुमति देते हुए इसके निगरानी के लिए कमेटी बना दी थी। केन्द्र ने कोर्ट से इसमें संशोधन की मांग की है।
उत्तराखंड में सीमांत क्षेत्रों तक बारहों महीने रक्षा उपकरण और सेना की रसद पहुंचे, इसके लिए केंद्र सरकार की 900 किमी की 12000 करोड़ की सड़क योजनाएं चल रही हैं। सरकार की सड़कों को चौड़ा करने की योजना पर सिटीजन फिर ग्रीन दून संस्था ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की हुई है, जिसमें संस्था ने हिमालय क्षेत्र में इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान का विषय रखा है। उच्चतम न्यायालय में जस्टिस डी वॉई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच के समुख भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपालन ने और संस्था की तरफ से कोलिन गोंजाल्विस ने अपना-अपना पक्ष रहा। संस्था का कहना था कि सड़क परियोजना में 45 हज़ार पेड़ काट दिए गए और इससे रोड से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।
अटॉर्नी जनरल का कहना था कि देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए ये सड़क चौड़ी होनी जरूरी है। उन्होंने ये भी दलील दी कि शत्रु देश ने सीमा तक पहले ही रक्षा जरूरतों का बुनियादी ढांचा खड़ा किया हुआ है। उन्होंने ये भी कहा कि सीमा तक मिसाइल लांचर ही नहीं ले जा पाए तो हम युद्ध कैसे लड़ेंगे? दो दिन की लंबी बहस के बाद कोर्ट ने केंद्र और संस्था दोनों को ये आदेश दिया कि सड़कों के निर्माण के बाद पर्यावरण संतुलन बना रहे और भूस्खलन न हो इसके लिए क्या अतिरिक्त सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं। इसे कोर्ट के सम्मुख रखा जाए। फिलहाल सरकार कोर्ट द्वारा जारी पिछले आदेश का अनुपालन करें। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इससे न सिर्फ सीमांत क्षेत्र में बारहों महीने रसद पहुंच जाएगी। बल्कि, चारधाम तीर्थ स्थल तक तीर्थाटन साल भर जारी रहने की उम्मीदें हैं।
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