1826 में बर्मा युद्ध के बाद अंग्रेज असम में अपने पैर पसार रहे थे। इसी दौरान अंग्रेज समझ गए कि नगाओं को अधीनस्थ करना टेढ़ी खीर है। नगाओं के विरुद्ध सीधी कार्रवाई से बचते हुए अंग्रेजों ने दूसरे तरीके अपनाए।
कभी उनके पहाड़ से मैदान में आने के रास्ते रोक दिए जाते, तो कभी आस-पास के जमींदारों को नगाओं के विरुद्ध भड़का दिया जाता था। 1840 के बाद अंग्रेज सेना के बल पर नगाओं का दमन करने लगे। अब नगा अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होने लगे।
1849 में दीमापुर के पास एक थाने पर हमला कर नगाओं ने थानेदार को मार डाला। शुरू में आंदोलन को दबाने में अंग्रेज सफल हुए। फिर भी नगाओं का विरोध जारी रहा और वे अंग्रेजों पर हमले करते रहे। नगा शक्ति 1878 में एक संगठित आंदोलन के रूप में फूट पड़ी। कितने ही अंग्रेज अफसर मार डाले गए।
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