राष्ट्र का सामर्थ्य, आध्यात्मिक शक्ति पर ही टिका होता है और यह आध्यात्मिक शक्ति को वृद्धिंगत करने हेतु साधु-संतों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। संपूर्ण विश्व को संतुलित रखने और वास्तविक धर्म समझाने हेतु संतों ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। हमारे यहां भक्ति के, उपासना के मार्ग अलग अवश्य होंगे, भाषा, परंपरा भिन्न होंगी, परंतु, अंततः सभी भारतीयों की श्रद्धा एक ही है, अंतिम सत्य एक ही है और यही भारत की विशेषता है। उक्त बात राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कही। वे महाराष्ट्र स्थित हिंगोली में श्री गुरुद्वारा दर्शन पश्चात, स्थानीय नागरिक, संत, सज्जन वृंद से संवाद कर रहे थे। बता दें कि श्री भागवत संत नामदेव महाराज के जन्म से पुनीत नरसी नामदेव स्थान पर गए थे।
संवाद के दौरान उन्होंने कहा कि भक्तिमार्ग का भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्व है। महाराष्ट्र में अनेक संतों की परंपरा रही है। श्री संत नामदेव जी ने सरल भाषा में लोगों को भक्तिमार्ग सिखाया। उन्होंने पंजाब तक वारकरी संप्रदाय की पताका लहराई। इसी से हिन्दू समाज के आपस में समन्वय, सद्भाव और आत्मीयता का दर्शन होता है। अत्यंत सामान्य पारंपरिक कथाओं में भी अध्यात्म और सामाजिक जागृति भारत में आज भी दिखाई देती है। इसलिए पंजाब की पावन भूमि ने संत नामदेव जी के मार्ग को सहज स्वीकार किया। संत नामदेव जी की 61 पंक्तियां गुरु ग्रंथ साहब में भी समाविष्ट हैं। श्री गुरुनानक देव जी, श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने संत नामदेव जी को सदैव आदर और सम्मान का स्थान दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी यही भूमिका है। एक जन, एक संघ। इसमें से ही मूलभूत साक्षात्कार होता है। नरसी में श्री संत नामदेव महाराज के जन्मस्थान, गुरुद्वारा के दर्शन और संत नामदेव जी की समाधि स्थान के दर्शन से मैं धन्य हुआ।
टिप्पणियाँ